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Friday 16 September 2022 01:00:52 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से 62वें राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय पाठ्यक्रम के शिक्षक, कमांडेंट और संकाय सदस्यों ने राष्ट्रपति भवन में मुलाकात की। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर एनडीसी पाठ्यक्रम के संकाय एवं पाठ्यक्रम सदस्यों को संबोधित करते हुए कहाकि राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय में सामरिक सुरक्षा के क्षेत्रमें सैन्य और सिविलसेवा पृष्ठभूमि के वरिष्ठ पेशेवरों को प्रशिक्षित करनेकी एक समृद्ध परंपरा है, मैं इस परंपरा को जारी रखने केलिए एनडीसी को बधाई देती हूं और मुझे बताया गया हैकि यह पाठ्यक्रम 62वें वर्ष में है, इससे जुड़ी प्रतिष्ठा पिछली आधी सदी से लगातार बनी हुई है, जिसके लिए यह प्रशंसा का पात्र है। राष्ट्रपति ने कहाकि सुरक्षा एक ऐसा शब्द है, जिसका हम अक्सर अपनी बातचीत में प्रयोग करते हैं, लेकिन इसके व्यापक प्रभाव हैं। उन्होंने कहाकि बीते दशक में इसकी व्याख्या में काफी विस्तार हुआ है, यह पहले केवल क्षेत्रीय अखंडता तक सीमित थी, लेकिन अब इसे राजनीतिक और आर्थिक संदर्भों में भी देखा जाने लगा है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि इस प्रकार सामरिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय रक्षा के औद्योगिक पहलुओं का अध्ययन करने संबंधी एनडीसी पाठ्यक्रम का उद्देश्य आज और भी अधिक प्रासंगिक हो चुका है। उन्होंने इस बातपर प्रसन्नता जताई कि बीते वर्षों में एनडीसी पाठ्यक्रम अपने प्रतिभागियों में इन मुद्दों केप्रति गहन समझ रखने केलिए शिक्षित करने के अपने उद्देश्य पर खरा उतरा है। उन्होंने कहाकि हितोपदेश से संस्कृत शब्द 'बुद्धिर्यस्य बालमतास्य', जिसका अर्थ है-ज्ञान शक्ति है, एनडीसी का आदर्श वाक्य है। उन्होंने कहाकि नि:संदेह एनडीसी वर्षों से अपने प्रतिभागियों को ज्ञान प्रदान करके अपने आदर्श वाक्य का अक्षरशः पालन कर रहा है। राष्ट्रपति ने कहाकि 62वें एनडीसी पाठ्यक्रम में सशस्त्र बलों से 62, सिविल सेवाओं से 20, मित्र देशों से 35 और कॉरपोरेट क्षेत्र से एक प्रतिभागी शामिल हैं, यह इस पाठ्यक्रम की अनूठी विशेषता है, जिसने अत्यधिक सराहना बटोरी है। उन्होंने कहाकि यह पाठ्यक्रम के सदस्यों को विभिन्न दृष्टिकोणों को जानने का अवसर देता है, जिससे उनके विचारों और समझ के क्षितिज का विस्तार होता है। उन्होंने कहाकि संगोष्ठियों, बातचीत और अध्ययन दौरों केसाथ संयुक्त व्याख्यान कक्षों में विश्लेषण किएगए सिद्धांतों को एक व्यावहारिक आकार देते हैं, यह जानकर अच्छा लगाकि हमारा दृष्टिकोण व्यावहारिक वास्तविकताओं के अनुरूप है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि हम एक गतिशील दुनिया में निवास करते हैं, जहां एक छोटे से बदलाव काभी व्यापक प्रभाव हो सकता है। उन्होंने कहाकि कभी-कभी इसके सुरक्षा संबंधी निहितार्थ भी हो सकते हैं, कोविड महामारी की गति और वेग महज उस खतरे का एक उदाहरण है, जिसका सामना मानवता को करना पड़ रहा है, यह हमें मानवजाति के असहाय होने का एहसास कराता है और हर खतरा हमें उससे मुकाबला करने एवं उसकी पुनरावृत्ति को रोकने की आवश्यकता के बारेमें सोचने पर मजबूर करता है। राष्ट्रपति ने कहाकि हमें न केवल पारंपरिक खतरों, बल्कि प्रकृति की अनिश्चितताओं सहित अनदेखे खतरों का भी सामना करने केलिए खुदको तैयार करने की जरूरत है। उन्होंने कहाकि जलवायु परिवर्तन और सतत विकास के मुद्दे आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं, आज जरूरत इस बात की हैकि सभी देश एकसाथ आएं और उनके समाधान की दिशामें काम करें, यही वह बिंदु है, जिसपर रणनीतिक नीतियों को देशोंकी विदेश नीतियों के अनुरूप होना चाहिए, यह एक बहुविषयक और बहुआयामी दृष्टिकोण है, जिसके लिए हमें स्वयं को तैयार करने की जरूरत है। राष्ट्रपति ने कहाकि यह जानकर प्रसन्नता हैकि एनडीसी पाठ्यक्रम में संकाय इन संवेदनशील पहलुओं को चर्चा और विश्लेषण केलिए पाठ्यक्रम में ला रहा है।
राष्ट्रपति ने कहाकि सशस्त्र बलों, प्रशासनिक और राजनयिक पृष्ठभूमि के संसाधन व्यक्ति वास्तव में इनसभी मुद्दों पर अच्छी जानकारी दे रहे हैं, मैं उन्हें पाठ्यक्रम के प्रतिभागियों को अच्छा प्रशिक्षण देने केलिए बधाई देती हूं। उन्होंने कहाकि यह आश्चर्य की बात नहीं हैकि इस पाठ्यक्रम के पिछले प्रतिभागियों में रक्षा और नीतिनिर्माण के क्षेत्रके दिग्गज शामिल हैं। उन्होंने विशेष रूपसे उल्लेख कियाकि पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत इस कॉलेज के छात्र थे, रक्षा और सामरिक मामलों के क्षेत्रमें उनके अपार योगदान केलिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने कहाकि एनडीसी केलिए यह निश्चित रूपसे गर्वकी बात हैकि कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी इस कॉलेज के छात्र रहे हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि भारत एक राष्ट्रके रूपमें आत्मनिर्भर बनने की दिशामें है, इस विजन को साकार करने केलिए विभिन्न नीतिगत कदम उठाए जा रहे हैं, यही वह विजन है, जो भारत को विकास और प्रगति के पथपर ले जाता है। उन्होंने कहाकि हाल हीमें जब स्वदेशी तकनीक से निर्मित पहले विमानवाहक पोत विक्रांत को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया तो प्रत्येक भारतीय केलिए यह गर्व का क्षण था, इस तरह के कदम भारत के लोगों में नई उम्मीद और प्रेरणा का संचार करते हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि हम प्रगति के पथपर निरंतर यूंही बढ़ते रहेंगे।