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Friday 23 September 2022 10:17:16 PM
शिकागो। अमेरिका में भारतीय मुसलमानों के एक समूह इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) ने अमरीकी राज्य इलिनॉइस में यूएस-भारतीय मुस्लिम कानून बनाने की निंदा की है, जिसमें भारत को मुख्य रूपसे गैरमुस्लिम देश कहा गया है। आईएएमसी ने आरोप लगाया हैकि यह एक इस्लामोफोबिया है और अमेरिका में भारतीय अमरीकियों केलिए एक सरकारी आयोग से मुसलमानों को बाहर करने का एक खुला प्रयास है। गौरतलब हैकि जून 2022 में इलिनॉइस राज्य में इंडियन अमेरिकन एडवाइजरी काउंसिल एक्ट (HB4070) बनाया गया है। आईएएमसी यह कहकर इसका विरोध कर रही हैकि संयुक्तराज्य अमेरिका के इलिनॉइस में हिंदू वर्चस्ववाद घृणित कट्टरता और इस्लामोफोबिया को आगे बढ़ाने केलिए हिंदू वर्चस्ववादियों का एक स्पष्ट प्रयास है। आईएएमसी ने इस कानून की धारा 5 पर घोर आपत्ति जताई है, जिसमें कहा गया हैकि 'भारतीय' का अर्थ भारतीय उपमहाद्वीप के किसीभी देशसे मूल रूपसे मुस्लिम नहीं है, जिसमें भारत, भूटान, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं।
आईएएमसी सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म पर सक्रिय है और इसका मुख्य एजेंडा भारत में भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध मुसलमानों के मामलों की सक्रिय रूपसे वकालत करना है। यह काउंसिल भारत में मुसलमानों की तथाकथित बेचारगी और उनपर अत्याचारों का बढ़ा-चढ़ाकर अमेरिका और खासतौर से दुनिया के मुस्लिम देशों मेंभी प्रचार-प्रसार करती है। आईएएमसी के कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद ने कहा हैकि यह चौंकाने वाली बात हैकि इलिनॉइस राज्य अब भारत को मुख्य रूपसे गैर-मुस्लिम देशके रूपमें वर्णित करेगा, जबकि भारत का अपना संविधान धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता है और सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है, चाहे उनकी आस्था कुछभी हो। रशीद अहमद जो शिकागो में हैंने कहाकि भारत मुख्य रूपसे गैर-मुस्लिम नहीं है, भारत मुख्य उनसभी धर्मों के लोगों केलिए है, जो वहां रहते हैं और सदियों से वहां रहते हैं। रशीद अहमद ने कहाकि इलिनॉइस राज्य के कानून ने भारत की परिभाषा का दुरुपयोग किया है, ताकि मुसलमानों को अधिनियमित भारतीय अमेरिकी सलाहकार परिषद से बाहर रखा जा सके।
रशीद अहमद का कहना हैकि इससे भी ज्यादा हास्यास्पद बात यह हैकि यह कानून श्रीलंका, नेपाल और भूटान को भारतीय उपमहाद्वीप बताता है, जो इनमें से कोई भी देश भारतीय नहीं है। रशीद अहमद का कहना हैकि यह इंडियन-अमेरिकन एडवाइजरी काउंसिल, भारतीय अमेरिकियों और अप्रवासियों को प्रभावित करने वाले नीतिगत मुद्दों पर इलिनॉइस के गवर्नर और महासभा को सलाह देने केलिए बनाई गई है, जिसका उद्देश्य इस राज्य में भारतीय अमेरिकियों की भूमिका और नागरिक भागीदारी को आगे बढ़ाना, भारतीय-बहुल देशों और इस राज्य केबीच व्यापार और सहयोग बढ़ाना, राज्य की एजेंसियों बोर्डों और आयोगों के सहयोग से राज्य में भारतीय अमेरिकी और अप्रवासी समुदायों केसाथ संबंध बनाना और उनमें जानकारी का प्रसार करना है। रशीद अहमद का आरोप हैकि इलिनॉइस में इस भेदभावपूर्ण प्रकृति के कानून को पारित होते देखना बेहद निराशाजनक और परेशान करने वाला है, इस कानून को पारित करने केलिए कई विधायकों को प्रेरित किया गया था, जो मुस्लिम समुदाय के मित्र रहे हैं और उनको यहां के मुसलमानों का समर्थन भी प्राप्त हुआ है। रशीद अहमद ने कहा हैकि यह कानून न केवल हमारे पहले संशोधन अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका में हिंदू वर्चस्ववाद को आगे बढ़ाने की दिशा में एक खुला कदम है, इसकी व्यापक रूप से निंदा की जानी चाहिए।
हाउस में कानून के प्रायोजक प्रतिनिधि सेठ लुईस, डीनएम माज़ोची और जोनाथन कैरोल हैं। सीनेट के प्रायोजकों में सीनेटर राम विलीवलम, लौरा एलमैन, जूली ए मॉरिसन, किम्बर्ली ए लाइटफोर्ड, माइक सीमंस, डेविड कोहलर, क्रिस्टीना कास्त्रो, मेग लॉफ्रेन कैपेल, सूजी ग्लोविक हिल्टन, मैटी हंटर, करीना विला, जॉन कॉनर और लौरा फाइन हैं। रशीद अहमद का कहना हैकि धार्मिक मान्यताओं के कारण मुसलमानों को उनकी राष्ट्रीयता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहाकि हम इलिनॉइस राज्य विधानमंडल से इस कानून की घृणित और भेदभावपूर्ण प्रकृति पर गौर करने का आग्रह करते हैं और मांग करते हैंकि परिषद में मुसलमानों को शामिल करने केलिए इस कानून में बदलाव किए जाएं। आईएएमसी का दावा हैकि वह अमेरीका में भारतीय मुसलमानों का भारत में बहुलवादी और सहिष्णु लोकाचार की रक्षा केलिए समर्पित संगठन है। गौरतलब हैकि भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद की तरह संयुक्तराज्य अमेरिका में भारतीय मुसलमानों की वकालत करने वाले वाले ऐसे और भी संगठन चल रहे हैं।