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पीएफआई का गज़वा-ए-हिंद चकनाचूर!

केंद्र सरकार की सख्त कार्रवाई में पीएफआई प्रतिबंधित

देश में सांप्रदायिक हत्याओं और विध्वंस के सबूत मिले

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 28 September 2022 03:39:23 PM

pfi's ghazwa-e-hind shattered (file photo)

नई दिल्ली। भारत में मुसलमानों के वेलफेयर केनाम पर उनमें अलगाववादी गज़वा-ए-हिंद और धार्मिक सांप्रदायिक रूपसे उनको उकसाकर हिंसक विध्वंसक गतिविधियों और भारत के राजनीतिक और हिंदूवादी संगठनों के नेताओं की सुनियोजित हत्याओं को अंजाम देने के अभियान एवं योजनाओं में संलिप्तता के पुख्ता सबूत पाए जाने पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उसके सहयोगियों को गैरकानूनी संगठन घोषित करते हुए उन्हें 5 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। गृह मंत्रालय ने कहा हैकि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उसके सहयोगी संगठनों या संबद्ध संस्थाओं या अग्रणी संगठनों को गंभीर अपराधों में लिप्त पाया गया है, जिनमें आतंकवाद और उसका वित्तपोषण, नृशंस हत्याएं, देशके संवैधानिक ढांचे की अवहेलना, सार्वजनिक व्यवस्था बिगाड़ना आदि शामिल हैं, जोकि देशकी अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता केलिए घातक हैं। पीएफआई और उसके जिन सहयोगी संगठनों या संबद्ध संस्थाओं या अग्रणी संगठनों को गैरकानूनी संगठन घोषित किया गया है, उनमें रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, अखिल भारतीय इमाम परिषद, मानवाधिकार संगठन का राष्ट्रीय महासंघ, राष्ट्रीय महिला मोर्चा, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रीहैब फाउंडेशन केरल शामिल हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की एनफोर्समेंट एजेंसियों एनआईए, ईडी और दूसरी एजेंसियों ने 22 सितंबर को 15 राज्यों में पीएफआई के सैकड़ों ठिकानों पर छापेमारी की थी, फिर 27 सितंबर को 9 राज्यों मे पीएफआई के ठिकानों पर ताबड़तोड़ रेड डाली, जिसके बाद पीएफआई के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले और गृह मंत्रालय ने पीएफआई और उससे जुड़े 8 संगठनों पर पाबंदी लगा दी। देशभर में पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों या संबद्ध संस्थाओं या अग्रणी संगठनों के बैन का कहीं स्वागत तो किसी ने आक्रोश एवं देश में अघोषित आपातकाल कहा जा रहा है। वर्ष 2010 में केरल की लेफ्ट सरकार और 2013 में कांग्रेस सरकार भी पीएफआई को खतरा बता चुकी है। पीएफआई और उससे जड़े संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर अजमेर दरगाह के आध्यात्मिक प्रमुख जैनुल आबेदीन अली खान ने कहा हैकि पिछले कई दिन से लगातार पीएफआई की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की खबरें आ रही हैं और इसपर लगाया गया बैन देश के हित में है। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (बादमें पीएफआई के रूपमें संदर्भित) को दिल्लीमें पंजीकरण संख्या एस/226/जिला दक्षिण/2010 केतहत सोसायटी पंजीकरण अधिनियम-1860 (1860 का 21) केतहत पंजीकृत किया गया था। इसके कई सहयोगी संगठन हैं।
पीएफआई ने समाज के विभिन्न वर्गों युवाओं, छात्रों, महिलाओं, इमामों, वकीलों या समाज के कमजोर वर्गों केबीच अपनी पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से उपर्युक्त सहयोगियों व मोर्चों का निर्माण किया हुआ है, जिसका एकमात्र उद्देश्य इसकी सदस्यता, प्रभाव और फंड जुटाने की क्षमता का विस्तार करना है। पीएफआई गैरकानूनी गतिविधियों केलिए अपनी क्षमता को मजबूत करने केलिए अपने सहयोगियों की सामूहिक पहुंच और धन जुटाने की क्षमता का उपयोग करता है, ये सहयोगी या सहयोगी या फ्रंट पीएफआई को पोषित और मजबूत करते हैं और कहते हैंकि पीएफआई और उसके सहयोगी सामाजिक और आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक संगठन के रूपमें काम करते हैं, लेकिन वे लोकतंत्र की अवधारणा को कम करने की दिशामें काम कर रहे समाज के एक विशेष वर्ग को कट्टरपंथी बनाने केलिए एक देशविरोधी गुप्त एजेंडा चला रहे हैं, संवैधानिक सत्ता और देश के संवैधानिक ढांचे केप्रति अनादर, गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त हैं, जो देशकी अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा केलिए हानिकारक हैं और देश की सार्वजनिक शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने और आतंकवाद फैलाकर अघोषित रूपसे भारत को इस्लामिक देश बनाने का समर्थन करते हैं।
इस्लामिक इतिहास बताता हैकि टीपू सुल्तान भी यही कर रहा था। वह इस्लाम केलिए अंग्रेजों से लड़ा था, नाकि हिंदुस्तान की आजादी के लिए। वास्तव में अपवाद को छोड़कर मुसलमान भी हिंदुस्तान के स्वतंत्रता आंदोलन में इसलिए शामिल नहीं थेकि उन्हें हिंदुस्तान आजाद कराना है। स्वतंत्रता आंदोलन की वास्तविकता बहुत कड़वी है, जिसमें मुसलमान नेता हिंदुओं को स्वतंत्रता संग्राम के नामपर गुमराह करके अंग्रेजों से बदला ले रहे थे, जिनके कारण हिंदुस्तान पर मुसलमानों की सत्ता का अंत हुआ था और उसके फलस्वरुप हिंदुस्तान में अंग्रेजों की सत्ता आई थी। मुसलमान हिंदुस्तान से अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर भारत में इस्लाम की सत्ता पुनः स्थापित करना चाहते थे। उनकी पूर्व नियोजित योजना थीकि जब हिंदुस्तान अंग्रेजों से आजाद होगा तो मुस्लिम देशों और इस्लामिक कबीलों की मदद से उसपर फिर से कब्जा कर लिया जाएगा, लेकिन हिंदुस्तान को आजाद करके अंग्रेज जाते-जाते उसका विभाजन कर गए, जिस कारण पाकिस्तान बना और भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमान दो हिस्सों में बट गए। इस बात के प्रमाण मौजूद हैं, जिनमें तत्कालीन मुस्लिम लीडरों ने कहा हैकि पाकिस्तान एक देश नहीं, बल्कि एक शिविर है, जहांसे हिंदुस्तान पर फिर से कब्जा करने केलिए आक्रामक इस्लामिक जेहाद चलाया जाएगा और धर्म के नामपर वह आक्रामक इस्लामिक जेहाद आजतक चल रहा है, जिसे गजवा-ए-हिंद भी कहा जाता है। हिंदुस्तान के विभाजन के कारण मुसलमानों का हिंदुस्तान पर फिरसे कब्जा करने का सपना आजतक पूरा नहीं हो सका है और यह कभी पूरा नहीं हो सकेगा।
भारत के रहते दुनिया के इस्लामिक देशों का भी पूरे विश्व में इस्लामिक सत्ता का ख्वाब पूरा होना असंभव है, क्योंकि इस्लाम की सत्ता के सामने नया भारत नाम का एक महान 'हिमालय' खड़ा हो चुका है, इसलिए दुनिया अगर इस्लाम को सारे विश्व पर सत्ता से दूर रखना सुनिश्चित करना चाहती है, तो उसे पूरी तरह भारत का ही साथ देना होगा, यद्यपि भारत अपने बूते पर यह लड़ाई लड़ रहा है और अखंड भारत के रहते इस्लाम पूरी दुनिया पर कभी भी शासन नहीं कर सकेगा। पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के नेता हैं और पीएफआई के जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) केसाथ संबंध हैं, जो दोनों प्रतिबंधित संगठन हैं और जबकि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) जैसे वैश्विक आतंकवादी समूहों केसाथ पीएफआई के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के कई उदाहरण हैं। पीएफआई और उसके सहयोगी देशमें असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देकर कट्टरपंथ को बढ़ाने केलिए गुप्त रूपसे काम कर रहे हैं, जो इस तथ्य से प्रमाणित होता हैकि कुछ पीएफआई कैडर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों में शामिल हो गए हैं। केंद्र सरकार के गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम-1967, (1967 का 37) की धारा 3 की उप-धारा (1) केतहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए तथ्यों से प्रमाणित होता है अर्थात पीएफआई कई आपराधिक और आतंकवादी मामलों में शामिल है और सरासर अनादर दिखाता है।
भारत के संवैधानिक अधिकार केप्रति और बाहर से धन और वैचारिक समर्थन केसाथ यह देशकी आंतरिक सुरक्षा केलिए एक बड़ा खतरा बन गया है। विभिन्न मामलों में जांच से पता चला हैकि पीएफआई और उसके कार्यकर्ता बार-बार हिंसक और विध्वंसक कृत्यों में लिप्त रहे हैं। पीएफआई के आपराधिक हिंसक कृत्यों में अन्य धर्मों को मानने वाले संगठनों से जुड़े व्यक्तियों की निर्मम हत्याएं, प्रमुख लोगों और स्थानों को निशाना बनाना और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना शामिल है। पीएफआई कैडर कई आतंकवादी कृत्यों सहित कई व्यक्तियों की हत्या में शामिल रहे हैं। वैश्विक आतंकवादी समूहों केसाथ पीएफआई के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के कई उदाहरण हैं, पीएफआई के कार्यकर्ता आईएसआईएस में शामिल हैं और सीरिया, इराक, अफगानिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों में भाग लिया है। गृह मंत्रालय का कहना हैकि पीएफआई के प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश केसाथ भी संबंध हैं। पीएफआई के पदाधिकारी और कार्यकर्ता अन्य लोगों केसाथ मिलकर एक सुनियोजित आपराधिक साजिश केतहत बैंकिंग चैनलों और हवाला, दान आदि के माध्यम से भारत और विदेशों से धन जुटा रहे हैं और फिर स्थानांतरित कर रहे हैं। इन निधियों को वैध के रूपमें प्रोजेक्ट करने केलिए कई खातों के माध्यम से लेयरिंग, एकीकृत करना और अंततः इन निधियों का उपयोग भारतमें विभिन्न आपराधिक, गैरकानूनी और आतंकवादी गतिविधियों केलिए करते हैं।
दरअसल पीएफआई और उसके सहायक संगठनों की गतिविधियों को उनके घोषित उद्देश्यों के अनुसार नहीं चलाया जा रहा था, इसलिए आयकर विभाग ने आयकर अधिनियम-1961 (1961 का 43) की धारा 12ए या 12एए के तहत पीएफआई को दिएगए पंजीकरण को रद्दकर दिया। आयकर विभाग ने रिहैब इंडिया फाउंडेशन के पंजीकरण को भी रद्द कर दिया। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात की राज्य सरकारों ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। केरल के कोल्लम से आज पीएफआई के महासचिव अब्दुल सत्तार को भी गिरफ्तार किया गया है। पीएफआई और उसके सहायक संगठनों के लोगों में इस समय तीव्र बौखलाहट है और इसकी उतनी ही प्रतिक्रिया पाकिस्तान एवं तुर्की जैसे देशों में हो रही है। भारत में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल कम्युनिष्ट जैसी मुस्लिम परस्त पार्टियों के नेताओं ने तो आरएसएस आदि के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, लेकिन भारत के बहुसंख्यक समुदाय में भारत सरकार के फैसले की तारीफ हो रही है।

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