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Tuesday 11 October 2022 03:58:14 PM
सैफई/ लखनऊ। समाजवादी पार्टी के संस्थापक संरक्षक और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनकर श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन पर हल्ला बोलकर राज्य और देशकी नई राजनीतिक धर्मनिर्पेक्ष तस्वीर और दिशाएं बनाने वाले समाजवादी राजनेता 'धरतीपुत्र' नेताजी मुलायम सिंह यादव आज शाम अपने जन्मगांव सैफई में पंचतत्व में विलीन हो गए। मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उनके राजपुत्र अखिलेश यादव ने उन्हें मुलायम सिंह यादव अमर रहे, धरतीपुत्र अमर रहे, नेताजी अमर रहे, जबतक सूरज-चांद रहेगा मुलायम तेरा नाम रहेगा जैसे नारों के बीच मुखाग्नि दी। मुलायम सिंह यादव की अंत्येष्टि सैफई के मेला मैदान पर की गई, जहां बड़े जनसमुदाय, नेताओं-राजनेताओं अभिनेताओं सपा कार्यकर्ताओं का आना हुआ। अखिलेश यादव पिताश्री को मुखाग्नि देने के तुरंत बाद अपने परिवार सहित वहां से चले गए।
सैफई में अंत्येष्टि स्थल पर ही अब सपा में आगे क्या होगा, एक-दूसरे से प्रश्न भी होते रहे और विश्लेषण भी सुने जाते रहे। मीडिया के लोग तो मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव एवं उनकी रणनीतियों पर कमेंट्री कर ही रहे थे। मुख्यरूपसे यह तथ्य सामने आया कि मुलायम सिंह यादव युग तो चला गया है, लेकिन उत्तर प्रदेश में उनकी सजातीय मार्शल कौम के सामने यह दुविधा बढ़ गई हैकि वह अपने मान-सम्मान और स्वाभिमान केलिए राजनीतिक रूपसे क्या मार्ग अपनाए? क्योंकि भलेही मुलायम सिंह यादव की विरासत के उत्तराधिकारी उनके राजपुत्र और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं, तथापि वे अभीसे इस विरासत को संभालने में विफल होते दिखाई दे रहे हैं। राजनीति में मुस्लिम तुष्टिकरण और हदसे ज्यादा भ्रष्टाचार के कारण अखिलेश यादव के राजनीतिक फैसले यादव समाज को भी बहुत कमजोर कर रहे हैं, यही कारण हैकि इस समाज का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ता जा रहा है जो अखिलेश यादव से ज्यादा भाजपा में अपना भविष्य ज्यादा सुरक्षित सम्मानित समझ रहा है।
कहना न होगाकि मुलायम सिंह यादव के रहते और अखिलेश यादव की भी 'धर्मनिर्पेक्ष राजनीति' से असहमत यादव समाज में भाजपा पहले ही तगड़ी सेंधमारी कर चुकी है। यही वो समाज है, जिसने मुलायम सिंह यादव को धरतीपुत्र बनाया और एकजुटता से मुलायम सिंह यादव के साथ खड़े होकर उन्हें राजनीतिक सफलताएं दिलाईं। अखिलेश यादव केलिए भी यादव समाज ने गलीचे बिछाए, लेकिन अखिलेश यादव ने अपनी कार्यप्रणाली से अपने ही समाज को असहज कर दिया। प्रमाण सामने हैकि उत्तर प्रदेश के इस विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव भाजपा के खिलाफ लगभग सभी क्षेत्रीय छत्रपों, क्षेत्रीय दलों एवं मुसलमानों को एक मंच पर लाकर चुनाव में अधिकतम 125 सीटें ही जीत पाए, जिसका मतलब हैकि अब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव जितने चाहे जोर लगा लें, उनके लिए इससे आगे का आंकड़ा छूना बहुत मुश्किल है। यादव समाज को भी इस सच्चाई का अंदाजा हो गया है।
मुलायम सिंह यादव केजाने केबाद अब लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव की रणनीतियों और फैसलों की परीक्षा होनी है। मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक संघर्ष में हर जगह सदैव उनके साथ रहने वाले भाई शिवपाल सिंह यादव तो उनसे अलग ही अपना रास्ता चुन चुके हैं और कहने वाले कहते हैंकि देश और उत्तर प्रदेश में इस समय जो सामाजिक और राजनीतिक वातावरण चल रहा है, उसके सामने समाजवादी पार्टी या अखिलेश यादव का टिकना संभव नहीं है। भाजपा केलिए उत्तर प्रदेश में यादवों को साधने की चुनौती और स्वर्णिम अवसर भी है, क्योंकि यादव समाज मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व से विहीन हो चुका है। यादव समाज के सामने अब कोई शक्तिशाली विकल्प है तो भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं। राजनीतिक जानकार कहते हैंकि भाजपा को यह समझ लेना चाहिएकि उत्तर प्रदेश में यदि मार्शल कौम ठाकुर उसके साथ है तो देशकी दूसरी मार्शल कौम में शुमार यादव समाज भी अपने पर आजाए तो वह किसीभी राजनीतिक समीकरण को उलट-पलट देने की क्षमता रखता है, इसलिए भाजपा को इसमें तुरंत अपना जनाधार बढ़ाने की आवश्यकता है।
यादव समाज यह महसूस करता आ रहा हैकि मुलायम परिवार में कलह के चलते समाज में एकजुटता कठिन होगी और यादव समाज भविष्य केलिए अपना राजनीतिक भविष्य सुनिश्चित करना चाहता है। वह मुलायम सिंह यादव के सम्मान और उनकी राजनीतिक विरासत को बचाए रखने केलिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को ढोता आ रहा है। वह अखिलेश यादव से संतुष्ट नहीं है। इस समय उसके सर्वाधिक अनुकूल भारतीय जनता पार्टी है, बहुजन समाज पार्टी केसाथ वह जाना नहीं चाहेगा, कांग्रेस में कोई दम नहीं बचा है और यादव समाज अपवाद को छोड़कर किसीभी कीमत पर मुसलमान केसाथ चलने या उसे वोट देने अथवा उसका वोट लेने कोभी तैयार नहीं है। देशका पिछड़ा वर्ग मुठ्ठी बांधकर भाजपा और नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा है और बाकी सवर्ण की पहली प्राथमिकता बीजेपी हैही। इस सच्चाई से कोई इनकार नहीं कर सकता है, यह भाजपा भी समझ रही है यही कारण हैकि भाजपा नेतृत्व सबसे ज्यादा मुलायम सिंह यादव के कसीदे पढ़ रहा है।
मुलायम सिंह यादव की अंत्येष्टि में भीड़ से ज्यादा राजनेताओं और अभिनेताओं के आने की होड़ देखी गई। मुंबई से कई राजनेता और अभिनेता एक प्लेन से पहुंचे। इनमें प्रमुख रूपसे उद्योगपति अनिल अंबानी, सपा की राज्यसभा सांसद जया बच्चन, अभिषेक बच्चन, किरीत सोमैया, राजनेता शरद पवार और उनकी पुत्री सुप्रिया सुले शामिल हैं। इनके अलावा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, मध्यप्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, कांग्रेस नेता मल्लिकाअर्जुन खड़गे, प्रफुल्ल पटेल, सहाराश्री सुब्रत राय सहारा, एसपी सिंह बघेल, किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत, भाजपा के मंत्री और बड़े नेता, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य, भाजपा सांसद वरुण गांधी और मेनका गांधी, शिवपाल सिंह यादव, प्रोफेसर रामगोपाल यादव, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह आदि अंतिम संस्कार में पहुंचे। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने मीडिया के सामने मुलायम सिंह यादव को एक निश्चल और सरल स्वभाव का नेता बताया। कई नेताओं में टीवी मीडिया के कैमरों के सामने आने और अपना कमेंट देने की उत्सुकता देखी गई।