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'जम्मू-कश्मीर में आजीविका की नई बैंगनी क्रांति'

लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों के नवाचार सम्मेलन में बोले राज्यमंत्री

'लैवेंडर खेती के आकर्षक अवसरों से घाटी के लोग बदल रहें भाग्य'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 14 October 2022 02:03:07 PM

minister of state at the innovation conference on flexible agri-food systems

जम्मू। प्रधानमंत्री कार्यालय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और कार्मिक विभाग में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा हैकि जम्मू-कश्मीर से शुरू हुआ 'पर्पल रिवॉल्यूशन' स्टार्टअप के विभिन्न अवसरों के आकर्षक मार्ग प्रशस्त कर रहा है और जो लोग लैवेंडर खेती के क्षेत्रमें प्रवेश कर चुके हैं, वे अब इससे अपना भाग्य बदल रहे हैं। उन्होंने कहाकि हालके वर्षोंमें आजीविका की इस नई बैंगनी क्रांति के अवसरों के बारेमें व्यापक प्रचार तथा जागरुकता की आवश्यकता है। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि भारतमें नवाचार की गति वैश्विक स्तरपर पहुंच चुकी है, लेकिन पूर्वाग्रहों में परिवर्तन लाने कोभी उसी गतिसे प्रोत्साहित करने की जरूरत है। डॉ जितेंद्र सिंह शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में 'लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों केलिए सतत कृषि नवाचार' विषय पर सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार के कृषिक्षेत्र से संबंधित सुधारों की एक श्रृंखला के बारेमें बताया।
राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि 20वीं शताब्दी में कृषि में नाटकीय रूपसे बदलाव आए थे, क्योंकि नई प्रौद्योगिकियों, मशीनीकरण, रासायनिक उपयोग में वृद्धि, विशेषज्ञता और सरकारी नीतियों के कारण खाद्य तथा फाइबर उत्पादकता बढ़ गई है। उन्होंने कहाकि इसके बावजूद यह सबकुछ उत्पादन को अधिकतम करने और खाद्य कीमतों को कम करने के पक्ष में रहा है, लेकिन 21वीं सदी की जलवायु परिवर्तन से लेकर कीटों के हमलों और संघर्षों तक की चुनौतियां कई अन्य खतरे पैदा कर सकती हैं। राज्यमंत्री ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहाकि कृषि वैज्ञानिक भारत को बढ़ने में सहयोग करने केलिए पर्याप्त रूपसे सक्षम हैं। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी के नए दिशानिर्देश और ड्रोन विकसित करने हेतु नियमों में छूट जैसे कई महत्वपूर्ण निर्णय आजके कृषि उद्यमियों तथा कृषि-स्टार्टअप केलिए खाद्य आपूर्ति जैसे कार्यों को पूरा करने में इन्हें सक्षम बना रहे हैं। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि मौजूदा सरकार ने सौ साल पुराने उस भारतीय वन अधिनियम में एक संशोधन किया है, जिसे ब्रिटिश सरकार ने लागू किया था।
राज्यमंत्री ने बतायाकि इस संशोधन के अमल में आने केबाद घरेलू बांस को वन अधिनियम से छूट मिल गई है, जिससे देशका युवा बांस के बहुमुखी गुणों का उपयोग कृषि उद्यमिता केसाथ अन्य क्षेत्रों मेभी कर सकता है। राज्यमंत्री ने कहाकि हमारे पड़ोस के कठुआ और रियासी जैसे जिलों मेभी बांस के विशाल भंडार हैं, लेकिन इनकी पर्याप्त खोज अभी तक नहीं हो पाई है। सम्मेलन के विषय का उल्लेख करते हुए डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि स्थायी नवाचार सतत स्टार्टअप और आजीविका के स्थायी साधनों की प्राप्ति केलिए प्राथमिक आवश्यकताएं हैं। इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उन्होंने शुरू सेही कृषि उद्योग से जुड़ने और कृषिक्षेत्र को एक समान हितधारक बनाने के महत्व पर बल दिया, ताकि अनुसंधान से जुड़ी हुई परियोजनाएं उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार निर्धारित हो सकें। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि अमृतकाल के अगले 25 वर्ष में जम्मू-कश्मीर और कई अन्य पर्वतीय क्षेत्रों केसाथ हिमालयी राज्य भविष्य की भारतीय अर्थव्यवस्था के निर्माण केलिए एक महत्वपूर्ण मूल्य संस्करण बनने जा रहे हैं, ये ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके संसाधनों का अतीत में कम उपयोग किया गया। उन्होंने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन क्षेत्रों पर व्यापक ध्यान दिया है, जिसके बाद ये क्षेत्र वर्ष 2047 तक भारत को विश्व स्तरपर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहे हैं।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि कृषि का विकास होना सही मायनों में आर्थिक बाधाओं को दूर करने, साझा समृद्धि को बढ़ावा देने और साल 2050 तक 9.7 अरब लोगों को भोज्य पदार्थ उपलब्ध कराने केलिए सबसे शक्तिशाली उपकरणों में से एक है। उन्होंने कहाकि स्वस्थ, टिकाऊ और समावेशी खाद्य प्रणाली वैश्विक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने केलिए काफी महत्वपूर्ण है। राज्यमंत्री ने कृषिक्षेत्र पर उनके प्रतिकूल प्रभावों से बचने केलिए जलवायु संबंधी मुद्दों को भी हल करने की आवश्यकता पर बल दिया। राज्यमंत्री ने कहाकि कृषि, वानिकी और भूमि उपयोग में होनेवाले परिवर्तन लगभग 25 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन केलिए जिम्मेदार हैं और कृषिक्षेत्र में शमन करनाही जलवायु परिवर्तन के समाधान का हिस्सा है। उन्होंने कहाकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अजीबसी दुविधा का सामना करना पड़ रहा है, प्रश्न यह हैकि क्या विश्व को उन नवाचारों केसाथ रहना है, जो पैदावार में सफल थे, लेकिन विनाशकारी जलवायु परिवर्तन के जोखिम से खाद्य पैदावार को खतरे में डाल सकते हैं या फिर कृषि प्रौद्योगिकी में नवाचारों को जारी रखना है, ताकि हम जलवायु परिवर्तन से उन जोखिमों को कम कर सकें। डॉ जितेंद्र सिंह ने हरित क्रांति काभी उदाहरण दिया, जिसकी वजह से उपज वास्तव में बढ़ी थी और यह एक लाभ है, दूसरी तरफ कई लाभ गंभीर परिणामों केसाथ आए और कुछ मामलों में आर्थिक विकास तो असमान पर था, लेकिन लोग पहलेकी तुलना में बहुत परेशान हो गए थे।
राज्यमंत्री ने कहाकि कुछ अन्य मामलों में हमारे पास कृषि रसायनों से गंभीर कृषि प्रदूषण हुआ था और कीटनाशकों के प्रतिरोधी भी बन गए, जो उच्च पैदावार को कम करने का जोखिम रखते हैं। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि वे क्षेत्र, जो कृषिकी स्थिरता सुनिश्चित करेंगे उनमें जलवायु-लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियां, कीट प्रबंधन के नवाचार, जैव विविधता संरक्षण, कार्बन तटस्थता और कृषि कार्यों में जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को न्यूनतम करने केलिए नवीन उपाय शामिल हैं। उन्होंने कहाकि विश्व और भारतमें खाद्य सुरक्षा तथा उत्पादकता को स्थायी तरीके से बढ़ाने केलिए कृषि नवाचार, जलवायु से जुड़े लोचदार खाद्य समाधान, प्राकृतिक संसाधनों की बहाली, खेती का भविष्य, कृषि सेंसर, कृषि ड्रोन और सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा खाद्य सुरक्षा कृषि जगत से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि भारतमें नीति निर्माता और कृषि वैज्ञानिक आजीविका में सुधार लाने तथा महिलाओं एवं युवाओं सहित अन्य को अधिक से अधिक बेहतर रोज़गार सृजित करने, सभी केलिए खाद्य सुरक्षा में सुधार, सुरक्षित व पौष्टिक भोजन तक पहुंच और कृषि लाभ तथा अधिक खाद्य पदार्थ उत्पादित करने केलिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, इसके अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करते हुए टिकाऊ एवं सतत विकास केसाथ ही अधिक जलवायु स्मार्ट प्रयास किए जा रहे हैं।

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