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किंग के दरबारी ऋषि सुनक प्रधानमंत्री हुए

हिंदुस्तान को ऋषि सुनक के मुग़ालते में नहीं रहना चाहिए

ऋषि सुनक की लिज़ ट्रस सेभी बुरी स्थिति हो सकती है

Tuesday 25 October 2022 05:45:28 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

rishi sunak meets king charles

मत भूलिए कि ब्रिटेन के सम्राट ही वहांके सर्वेसर्वा हैं और उनकी मर्जीके बगैर वहां एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, तथापि दुनिया को अपनी लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता दर्शाने केलिए ब्रिटेन में बाकायदा एक लोकतांत्रिक सरकार चुने जाने की रस्मअदायगी होती आई है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पदपर निर्वाचन केबाद ब्रिटेन के राजा ही प्रधानमंत्री नियुक्त करते हैं। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में लगातार अस्थिरता के संकट केबीच अपनो केही विरोध और वादेमें विफल होनेके कारण 44 दिन की प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस के इस्तीफे केबाद ब्रिटेन की सत्तारूढ़ कंर्जवेटिव पार्टी ने आज उसी ऋषि सुनक को अपना प्रधानमंत्री मान लिया है, जो लिज़ ट्रस से प्रधानमंत्री का चुनाव हार गए थे। आखिर लिज़ ट्रस केपास कोई जादुई छड़ी नहीं थी, जिससे वह चुटकियों में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था संभाल पातीं। बहरहाल यह पखवाड़ा दुनिया के सामने ब्रिटेन की बड़ी ही नाटकीय जगहंसाई सिद्ध हुआ है और आगेभी ऐसाही लग रहा है, अर्थात ब्रिटेन के अच्छे दिन अभी बहुत मुश्किल हैं।
ब्रिटेन में आज राजपरिवार की रबर स्टैंप सत्ता के खेल में जो कुछभी हो रहा है, पूरी दुनिया उसे अच्छी तरह समझती है और उसपर मज़ा ले रही है। ब्रिटेन का राजपरिवार चाहता रहा हैकि उनका प्रधानमंत्री उसकी अंगुलियों पर ही नाचे, चाहे वहां कंर्जवेटिव पार्टी का राज हो या लेबर पार्टी का राज हो। ब्रिटेन में जब सत्ता का तमाशा होही रहाहै तो किंग चार्ल्स कोभी दुनिया को यह भरमाने का बढ़िया मौका मिल गया हैकि उनके यहां लोकतंत्र है और कोई अल्पसंख्यक भी ब्रिटेन का प्रधानमंत्री हो सकता है। किंग चार्ल्स ने ऋषि सुनक के पीछे खड़ेहोकर उनकी महत्वाकांक्षा को परवान चढ़ा दिया है, जिसपर भारतीय समुदाय तो झूम ही रहा है, मगर किंग चार्ल्स जानते हैंकि डूबते टाइटेनिक जहाज की तरह दिवालिया होनेके कगार पर पहुंचे ब्रिटेन को बचापाना ऋषि सुनक केलिए आसान नहीं होगा। ब्रिटेन के हालात ऐसे बन चुके हैं, जिसमें ऋषि सुनक को यश की जगह अपयश ही मिलने का ज्यादा खतरा लगता है, अगर ऋषि सुनक भी विफल हुएतो भविष्य में इस प्रकार किसीको ऐसा सुनहरा मौका नहीं मिलना है।
भारतीय मीडिया और ब्रिटेन में दिलचस्पी लेनेवाले बाकी देशोंके मीडिया में ब्रिटेन के इस राजनीतिक घटनाक्रम और वहांकी डूबती अर्थव्यवस्था और रूस-यूक्रेन युद्ध की विभीषिका पर ब्रिटेन की भूमिका, ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की वंशावली को लेकर कि कोई उन्हें भारतीय मूल का कहता है तो कोई केन्या मूल का बतारहा है। फिलहाल भारत के पंजाब से उनकी वंशावली सुनाकर कहाजा रहा हैकि ऋषि सुनक भारतीय मूल के हैं और हां वे पैदा ब्रिटेन में हुए हैं। फुलब्राइट स्कॉलरशिप पर अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में एमबीए करने के दौरान उनकी दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस कंपनी के अरबपति मालिक के नारायण मूर्ति की बेटी अक्षता मूर्ति से मुलाकात हुई, जो शादी में बदली। ऋषि सुनक और अक्षता मूर्ति की दो बेटियां हैं। कहनेवाले कुछ यहभी कह रहे हैंकि ऋषि सुनक ब्रिटेन के लोगों और वहांके सांसदों में बहुत लोकप्रिय नेता हैं, हिंदू हैं, कलाई में कलावा बांधते हैं, लेकिन हिंदू होने का ढोंग नहीं करते। यहां यह सवाल भी उठता हैकि तोफिर वे लिज़ ट्रस से चुनाव क्यों हार गए थे?
ऋषि सुनक केलिए भारत के बारेमें उनकी विचारधारा पर बात हो रही है। कहा जाता हैकि ऋषि सुनक, विंस्टन चर्चिल की विचारधारा के हैं, जो कहा करते थेकि भारत केसभी नेता बेहद कम क्षमता वाले होंगे। ये वही चर्चिल हैं, जो भारत की आज़ादी और महात्मा गांधी के घोर विरोधी थे, जोहर समय गांधीजी को बुरा-भला कहा करते थे। ऋषि सुनक उस मार्गेट थैचर के भी पदचिन्हों पर चलते हैं, जिन्होंने हेल्थ सर्विस को छोड़ ब्रिटेन में हर सर्विस का निजीकरण कर दिया था। ऋषि सुनक ब्रिटेन के वित्तमंत्री भी हुए हैं, लेकिन वे इस रूपमें सफल नहीं हो सके। कहा जाता हैकि ये भारत के बारेमें न सोचते हैं और न ही इनके बनने से भारत को कोई फायदा होने वाला है। वैसेभी भारतीय मूल केकिसी विदेशी का ऐसा इतिहास उज्जवल नहीं हैकि जिसने किसी देशके महत्वपूर्ण पदपर बैठकर या उसके किसीभी क्षेत्रमें काम करते हुए भारत को किसीभी प्रकार का अनुकरणीय और रत्तीभर लाभ भी पहुंचाया हो। भारत के लोग आज जिस प्रकार ऋषि सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनजाने के उत्साह के नगाड़े बजा रहे हैं, वह मात्र मन समझाने की खुशी हो सकती है, लेकिन सच्चाई नहीं।
दुनिया के देशों को गुलाम बनाकर और उन देशोंकी सम्पत्तियों को हड़पकर चमकीले बने ब्रिटेन में इस समय जो हाहाकार मचा हुआ है, वह थमने का नाम नहीं लेरहा है, क्योंकि ऐश्वर्यभोगी ब्रिटेन केपास वो रणनीतियां नहीं हैं और ना ही वैसे रणनीतिकार हैं, जिन्होंने कभी पंद्रह-बीस साल प्रधानमंत्री रहकर ब्रिटेन को चलाया है। ब्रिटेन के किंग के सामने ऋषि सुनक का गीता की शपथ लेकर शासन करने का सिद्धांत कमसे कम ब्रिटेन पर तो लागू नहीं होता और अनेक विद्वानों ने कहाभी हैकि सच यही हैकि गीता हाथ में लेकर शासन कभी नहीं होता। ऋषि सुनक जिस उत्साह से लबरेज़ दिखाई पड़ रहे हैं, उसमें वह समझते हैंकि ब्रिटेन उन्हें आसानी से पचा लेगा। क्या ब्रिटेन सह्रदयी देश है? भारत में ब्रिटिश शासनकाल के अत्याचारों को भुलाया जा सकता है और यह माना जा सकता हैकि अंग्रेज बहुत मानवतावादी हो गए हैं? ब्रिटेन का राजपरिवार सदियों से फूट डालो और राज करो की नीति पर चलता आया है। भारतीयों को मूर्ख बनाने का एक मौका उसके हाथ आया और ब्रिटेन के अस्थिर शासन में ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री बनवाकर उसे खुशकर दिया और इसी तरह आगे यहभी सुनने को मिलेगाकि ऋषि सुनक विफल हो गए हैं और इस्तीफा देकर भाग लिए हैं।
ऋषि सुनक भारत के कितने काम आएंगे, यहतो समय ही बताएगा, लेकिन ऋषि सुनक के नामपर भारत को ब्रिटेन के कूटनीतिक लेवल पर बहुत सावधान रहना होगा, क्योंकि ब्रिटेन के राजपरिवार की राजनीतियों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता। नहीं भूलना चाहिए कि ज्यादातर भारत के आर्थिक और आपराधिक एवं विघटनकारी भगोड़े ब्रिटेन में ही शरण पाए हुए हैं, जिन्हें ब्रिटेन में भारत के खिलाफ कुछभी बोलने, अभियान चलाने और करनेकी आज़ादी भी है। ब्रिटेन उन्हें वारंट के बावजूद भारत को सौंपने में कोई भी मदद नहीं करता है, बल्कि भारत के संवेदनशील मामलों में ब्रिटेन अंतर्राष्ट्रीय मंचपर भारत को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता है और दावा यह करता हैकि भारत और ब्रिटेन के बहुतही अच्छे संबंध हैं और भारत सरकार भी इसपर ताली बजाती है। सत्तारूढ़ कंर्जवेटिव पार्टी में ऋषि सुनक को ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनाए जाने का अवसर कोई यूंही नहीं दिया गया है, उसके पीछे भी बड़ी कूटनीति और राजनीति ही है। भारत को ऋषि सुनक के मुगालते में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि वैसेभी जल्दही ऋषि सुनक काभी लिज़ ट्रस सेभी बुरा हस्र हो सकता है।

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