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Thursday 16 February 2023 05:49:53 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम दिल्ली में मेगा राष्ट्रीय जनजातीय उत्सव 'आदि महोत्सव' का उद्घाटन किया, जोकि राष्ट्रीय मंच पर जनजातीय संस्कृति को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है। इसके तहत जनजातीय संस्कृति, शिल्प, खान-पान, वाणिज्य और पांरपरिक कला की भावना का उत्सव मनाया जाता है। यह जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधीन जनजातीय सहकारी विपणन विकास महासंघ लिमिटेड (ट्राइफेड) की वार्षिक पहल है। आयोजन स्थल पर पहुंचने पर प्रधानमंत्री ने भगवान बिरसा मुंडा को पुष्पांजलि अर्पित की और प्रदर्शनी में लगे स्टॉलों का अवलोकन किया। उपस्थितजनों को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि आजादी के अमृत महोत्सव में आदि महोत्सव देश की आदि विरासत की भव्य प्रस्तुति कर रहा है। प्रधानमंत्री ने भारत के जनजातीय समाजों की प्रतिष्ठित झांकियों को रेखांकित किया और विभिन्न रसों, रंगों, सजावटों, परंपराओं, कला और कला विधाओं, रसास्वादन और संगीत को जानने-देखने का अवसर मिलने पर हर्ष व्यक्त किया। उन्होंने कहाकि आदि महोत्सव कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी होनेवाली भारत की विविधता और शान का परिचायक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि आदि महोत्सव अनंत आकाश की तरह है, जहां भारत की विविधता इंद्रधनुष के रंगों की तरह दिखती है, जिस तरह इंद्रधनुष में विभिन्न रंग मिल जाते हैं, इसी तरह राष्ट्र की भव्यता उस समय सामने आती है, जब अंतहीन विविधताएं 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की माला में गुंथ जाती हैं और तब भारत विश्व का मार्गदर्शन करता है। उन्होंने कहाकि आदि महोत्सव भारत की विविधता में एकता को शक्ति देता है तथा साथमें विरासत को मद्देनज़र रखते हुए विकास के विचार को गति देता है। प्रधानमंत्री ने कहाकि 21वीं सदी का भारत 'सबका साथ सबका विकास' के मंत्र केसाथ बढ़ रहा है, जिसे पहले दूर-दराज माना जाता था, आज सरकार खुद वहां जा रही है और उस सुदूर स्थित और उपेक्षित को मुख्यधारा में ला रही है। उन्होंने कहाकि आदि महोत्सव जैसे कार्यक्रम देशमें अभियान बन गए हैं और वे खुद अनेक कार्यक्रमों में सम्मिलित होते हैं। प्रधानमंत्री ने अपने सामाजिक कार्यकर्ता के रूपमें बिताए गए दिनों में जनजातीय समुदायों केसाथ अपने निकट जुड़ाव को याद करते हुए कहाकि जनजातीय समाज का कल्याण मेरे लिए निजी संबंध और भावनाओं का विषय भी है। उमरगाम से अम्बाजी के जनजातीय क्षेत्रों में बिताए अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्षों को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि मैंने आपकी परंपराओं को निकट से देखा है, उन्हें जिया है और उनसे बहुत कुछ सीखा है, जनजातीय जीवन ने मुझे देश और उसकी परंपराओं के बारेमें बहुत-कुछ सिखाया है।
प्रधानमंत्री ने कहाकि देश अपने जनजातीय गौरव के संबंध में अभूतपूर्व गर्व केसाथ बढ़ रहा है। उन्होंने बतायाकि वे जनजातीय उत्पादों को विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को गर्व केसाथ उपहार में देते हैं, जनजातीय परंपरा को भारत वैश्विक मंचों पर भारतीय गौरव और विरासत के अभिन्न अंग के रूपमें प्रस्तुत करता है। प्रधानमंत्री ने कहाकि भारत जनजातीय जीवनशैली में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का समाधान बताता है। उन्होंने कहाकि भारत के जनजातीय समुदाय के पास सतत विकास के संबंध में प्रेरित करने और सिखाने केलिए बहुत कुछ है। प्रधानमंत्री ने जनजातीय उत्पादों को बढ़ावा देने में सरकार के प्रयासों को रेखांकित किया। उन्होंने कहाकि जनजातीय उत्पादों को अधिक से अधिक बाजार तक पहुंचना चाहिए और उनकी पहचान एवं मांग में वृद्धि होनी चाहिए। बांस का उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि पिछली सरकार ने बांस की फसल और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन यह वर्तमान सरकार थी, जिसने बांस को घास की श्रेणी में शामिल किया और प्रतिबंध को समाप्त कर दिया। वन धन मिशन के बारेमें प्रधानमंत्री ने बतायाकि विभिन्न राज्यों में 3000 से अधिक वन धन केंद्र स्थापित किए गए हैं, लगभग 90 लघु वन उत्पादों को एमएसपी के दायरे में लाया गया है, जिनकी संख्या 2014 की संख्या से सात गुना अधिक हो गई है। उन्होंने कहाकि इसी तरह देश में स्व-सहायता समूहों के बढ़ते नेटवर्क से आदिवासी समाज लाभांवित हो रहा है, देश में 80 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों में 1.25 करोड़ आदिवासी सदस्य कार्यरत हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार के प्रयासों पर जोर दिया, जो वह जनजातीय युवाओं को ध्यान में रखकर जनजातीय कलाओं और कौशल विकास को प्रोत्साहित कर रही है। इस वर्ष के बजट का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने बतायाकि पीएम विशवकर्मा योजना को पारंपरिक शिल्पकारों केलिए शुरू किया गया है, जहां कौशल विकास तथा अपने उत्पादों को बाजार में बेचने केलिए समर्थन देने के अलावा आर्थिक सहायता भी दी जाएगी। उन्होंने कहाकि जनजातीय बच्चे देश के किसीभी कोने में हों, उनकी शिक्षा मेरी प्राथमिकता है। उन्होंने बतायाकि 2000-2014 केबीच एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों की संख्या 80 थी, जो पांच गुना बढ़ गई है तथा 2014 से 2022 के बीच उनकी संख्या 500 हो गई है, 400 से अधिक स्कूल शुरू हो चुके हैं, जहां लगभग 1 लाख बच्चे पढ़ रहे हैं, इस वर्ष के बजट में इन स्कूलों केलिए 38 हजार शिक्षकों और स्टाफ की घोषणा की गई है, जनजातीय छात्रों केलिए छात्रवृत्ति भी दुगनी कर दी गई है। भाषाई बाध्यता के कारण जनजातीय युवाओं को होनेवाली परेशानी की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने नई शिक्षा नीति पर प्रकाश डाला, जहां युवा अपनी मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प चुन सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि हमारे जनजातीय बच्चे और युवा अपनी मातृभाषा में पढ़ें और प्रगति करें तो यह अब वास्तविकता बन गया है। उन्होंने दोहरायाकि देश नई ऊंचाइयों को छू रहा है, क्योंकि सरकार वंचितों के विकास को प्राथमिकता दे रही है। उन्होंने कहाकि प्रगति का मार्ग अपने आप खुल जाता है, जब देश अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को प्राथमिकता देता है।
प्रधानमंत्री ने आकांक्षी जिला और ब्लॉक योजना का हवाला देते हुए इसे स्पष्ट किया, जहां अधिकांश लक्षित क्षेत्रों में जनजातीय बहुतायत में हैं। प्रधानमंत्री ने बतायाकि इस वर्ष के बजट में अनुसूचित जनजातियों केलिए किए जानेवाले प्रावधान में भी 2014 की तुलना पांच गुना वृद्धि की गई है। उन्होंने कहाकि जो युवा अलगाव और उपेक्षा के कारण अलगाववाद के जाल में फंस जाते थे, वे अब इंटरनेट और इंफ्रा के माध्यम से मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं, यह 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' का प्रवाह है, जो देश के दूर-दराज के क्षेत्रों के हर नागरिक तक पहुंच रहा है, यह आदि और आधुनिक के संगम की ध्वनि है, जिस पर नए भारत की शानदार इमारत खड़ी होगी। प्रधानमंत्री ने पिछले आठ-नौ वर्ष में जनजातीय समाज की यात्रा पर कहाकि यह इस बदलाव का प्रतीक हैकि देश समानता और समरसता को प्राथमिकता दे रहा है। उन्होंने कहाकि भारत की आजादी के 75 वर्ष में पहलीबार हैकि देश का नेतृत्व एक जनजातीय महिला के हाथों में हैं, जो राष्ट्रपति के रूपमें देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होकर देश को गौरवशाली बना रही हैं। उन्होंने कहाकि जनजातीय इतिहास को पहलीबार देश में उसका पुराना जायज हक मिल रहा है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समाज के योगदान को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने इतिहास के पन्नों में बलिदान और वीरता के गौरवशाली अध्यायों को दबाने के लिए दशकों से किए जा रहे प्रयासों पर अफसोस जताया। उन्होंने कहाकि राष्ट्र ने अतीत के इन भूले-बिसरे अध्यायों को सामने लाने केलिए अमृत महोत्सव में आखिरकार कदम उठाया है। उन्होंने कहाकि पहलीबार देश ने भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने की शुरूआत की है।
झारखंड के रांची में भगवान बिरसा मुंडा को समर्पित संग्रहालय का उद्घाटन करने के अवसर को याद करते हुए उन्होंने कहाकि विभिन्न राज्यों में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों से संबंधित संग्रहालय बन रहे हैं, भले ही यह पहलीबार हो रहा है, लेकिन इसकी छाप आनेवाली कई पीढ़ियों को नज़र आएगी और कई शताब्दियों तक देश को प्रेरणा प्रदान करेगी एवं दिशा देगी। प्रधानमंत्री ने कहाकि आदि महोत्सव जैसे कार्यक्रम इस संकल्प को बढ़ाने का एक शक्तिशाली माध्यम हैं। उन्होंने कहाकि हमें अपने अतीत की सुरक्षा करनी है, वर्तमान में अपना स्थान बनाने केलिए कर्तव्य भावना से काम करना है और भविष्य के लिये अपने सपनों को साकार करना है। उन्होंने कहाकि इस अभियान को जनांदोलन बनना चाहिए, विभिन्न राज्यों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने इस वर्ष को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूपमें मनाए जाने का उल्लेख करते हुए कहाकि पोषक अनाज सदियों से जनजातीय खान-पान का हिस्सा रहे। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त कीकि यहां महोत्सव में लगे खान-पान स्टॉलों पर श्री अन्न का स्वाद और महक मौजूद है। उन्होंने जनजातीय क्षेत्रों के भोजन के बारेमें जागरुकता फैलाने पर बल दिया, क्योंकि इससे न केवल लोगों के स्वास्थ्य को लाभ मिलेगा, बल्कि जनजातीय किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी। इस अवसर पर केंद्रीय जनजातीय कार्यमंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्यमंत्री रेणुका सिंह सुरूता और विश्वेश्वर टुडु, ग्रामीण विकास राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्यमंत्री डॉ भारती प्रविण पवार, ट्राइफेड के अध्यक्ष रामसिंह राठवा और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।