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Wednesday 15 March 2023 03:18:02 PM
नई दिल्ली। शंघाई सहयोग संगठन के 'साझी बौद्ध विरासत' पर दो दिनी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का नई दिल्ली के विज्ञान भवन में समारोहपूर्वक उद्घाटन हुआ, जिसमें एससीओ राष्ट्रों केसाथ भारत के सभ्यतागत जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित किया गया। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति, पर्यटन और उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास मंत्री जी किशन रेड्डी, संस्कृति और विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी, संस्कृति और संसदीय कार्य राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महानिदेशक अभिजीत हलदर, चीन, पाकिस्तान, रूस, बहरीन, म्यांमार और संयुक्त अरब अमीरात से आए प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। जी किशन रेड्डी ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहाकि यह सम्मेलन न केवल बौद्ध साझी विरासत का जश्न मनाएगा, बल्कि हमारे देशों केबीच संबंधों को और भी अधिक मजबूत करेगा। उन्होंने कहाकि दुनियाभर में शाश्वत सद्भाव की अपनी गहरी दृष्टि केसाथ बौद्ध धर्म दूर-दूर तक फैला है और इसने सदियों पहले एससीओ के देशों के निवासियों के जीवन को प्रभावित किया था।
केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहाकि हमसब यहां अपनी तरह के पहले सम्मेलन में एक-दूसरे को जोड़ने वाले इस अंतर्निहित जुड़ाव के कारण एकत्रित हुए हैं। उन्होंने कहाकि सम्मेलन का उद्देश्य यहां एकत्र हुए राष्ट्रों केबीच दूरस्थ-सांस्कृतिक संबंधों और साझा इतिहास को नवीनीकृत करना है। राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहाकि आत्म अनुभव और आत्म परीक्षण केबारे में भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षाएं 21वीं सदी केलिए भी बहुत प्रासंगिक हैं। उन्होंने सुझाव दियाकि एससीओ देशों को हमारी साझी बौद्ध विरासत पर कार्यक्रम और परियोजनाएं शुरू करनी चाहिएं, जो हमें एकसाथ जोड़ती हैं। उन्होंने पाली में बौद्ध पांडुलिपियों को एससीओ देशों केलिए एक आमभाषा में अनूदित करने और उन्हें सभी देशों केलिए सुलभ बनाने का भी सुझाव दिया। मीनाक्षी लेखी ने कहाकि विरासत और इतिहास सभी एससीओ देशों को एकसाथ जोड़ते हैं। उन्होंने कहाकि भगवान बुद्ध ने मूल्य आधारित जीवन की बात की जो हमारे सह अस्तित्व केलिए आवश्यक है। उन्होंने कहाकि एससीओ सदस्य बौद्ध दर्शन से जुड़े हुए हैं, जो नैतिकता और मूल्य प्रणाली के मामले में एससीओ को एक मजबूत ताकत बना सकता है।
गौरतलब हैकि एससीओ के भारत के नेतृत्व में (एक वर्ष की अवधि केलिए 17 सितंबर 2022 से पूरे सितंबर 2023 तक) यह अपनी तरह का पहला आयोजन है, जो मध्य एशियाई, पूर्वी एशियाई, दक्षिण एशियाई और अरब देशों को साझी बौद्ध विरासत पर चर्चा केलिए एक साझा मंच पर एकसाथ लाता है। एससीओ देशों में चीन, रूस और मंगोलिया सहित सदस्य राज्य, पर्यवेक्षक राज्य और संवाद भागीदार शामिल हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय हैकि कई विद्वान-एससीओ के प्रतिनिधि इस विषय पर शोध पत्रों पर नाराजगी जता रहे हैं, जिनमें दुनहुआंग रिसर्च एकेडमी, चीन, धर्म के इतिहास का राज्य संग्रहालय, अंतर्राष्ट्रीय थेरवाद बौद्ध मिशनरी विश्वविद्यालय, म्यांमार, आदि शामिल हैं। इस कार्यक्रम का आयोजन संस्कृति मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी-संस्कृति मंत्रालय के एक अनुदान प्रदाता निकाय के रूपमें) कर रहा है। कार्यक्रम में बौद्ध धर्म के कई भारतीय विद्वान भाग ले रहे हैं। सम्मेलन का उद्देश्य एससीओ देशों के विभिन्न संग्रहालयों के संग्रह में मध्य एशिया की बौद्ध कला, कला शैलियों, पुरातात्विक स्थलों और पुरातनता के बीच दूरस्थ सांस्कृतिक संबंधों को फिरसे स्थापित करना है।
अनादिकाल से विचारों का विकास और प्रसार दुनिया के स्वाभाविक चमत्कारों में से एक है। सहजता से दुर्जेय पहाड़ों, विशाल महासागरों और राष्ट्रीय सीमाओं को पार करना विचार जो दूर देशों में अपनी जगह बनाते हैं, मौजूदा संस्कृतियों से समृद्ध हो रहा है, बुद्ध के उपदेशों की यही अद्वितीय विशिष्टता है। इसकी व्यापकता समय और स्थान दोनों को पार कर गई, इसका मानवतावादी दृष्टिकोण कला, वास्तुकला, मूर्तिकला और मानव व्यक्तित्व की करुणा, सह-अस्तित्व, सतत जीवन और व्यक्तिगत विकास में अभिव्यक्ति प्राप्त करने के सूक्ष्म गुणों में व्याप्त है। यह सम्मेलन मस्तिष्कों का एक अनोखा मिलन है, जहां विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के देश, लेकिन एक साझा सभ्यता विरासत के आधार पर उन्हें जोड़ने वाले एक सामान्य सूत्र केसाथ, बौद्ध मिशनरियों के मजबूत किए गए, जिन्होंने विभिन्न संस्कृतियों, समुदायों और क्षेत्रों को समग्र रूपसे एकीकृत करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई। आशा व्यक्त की गई हैकि भारतीय उपमहाद्वीप और एशिया दो दिन विभिन्न विषयों पर चर्चा करेंगे और भविष्य में सदियों पुराने बंधनों को कायम रखने के तरीकों की रूपरेखा तैयार करेंगे।