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सदन के निराशाजनक प्रदर्शन पर विचार करें!

'जनता के मन में हम तिरस्कार और उपहास के पात्र बन रहे हैं'

राज्यसभा के 259वें सत्र के समापन पर सभापति का संबोधन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 6 April 2023 05:22:28 PM

speaker jagdeep dhankhar

नई दिल्ली। भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा का 259वां सत्र आज समाप्त हो गया है। सभापति जगदीप धनखड़ ने इस अवसर पर सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा हैकि यह बहुत चिंताजनक और पीड़ादायक है, संसद में होनेवाली बहस, संवाद और विचार-विमर्श का स्थान व्यवधान और शोर शराबे ने ले लिया है। उन्होंने कहाकि संसद के कामकाज को ठप करके उसे एक राजनीतिक हथियार बनाना, हमारी राजनीति केलिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। सभापति ने कहाकि संसद के ठप रहने से उन्हें और बड़े पैमाने पर जनता को घोर निराशा हुई है, जनता के मन में हम तिरस्कार और उपहास के पात्र बन रहे हैं, जो एक चिंता का विषय भी है।
सभापति जगदीप धनखड़ ने कहाकि संसद लोकतंत्र की प्रहरी है, जनता हमारी प्रहरी है और हम जनता के प्रति जवाबदेह हैं। उन्होंने कहाकि जनता की सेवा करना हमारा प्राथमिक कर्तव्य है, संसद के पवित्र सदन लोगों के समग्र कल्याण, चर्चा और विचार-विमर्श और बहस केलिए हैं। उन्होंने कहाकि यह कितनी बड़ी विडंबना हैकि आज संसद में अव्यवस्था एक नई परंपरा बनती चली जा रही है, एक नया मानदंड बन रहा है, जो लोकतंत्र केलिए खतरनाक साबित हो रहा है, हमें लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की आवश्यकता है। सभापति ने कहाकि भावी पीढ़ी नारों और शोर शराबे से नहीं, बल्कि राष्ट्र के विकासपथ को मजबूत करने की दिशा में हमारे किएगए विविध योगदानों से हमें आंकेगी।
जगदीप धनखड़ ने कहाकि बजट सत्र के पहले भाग की उत्पादकता 56.3 प्रतिशत थी, जबकि दूसरे भाग में यह उत्पादकता घटकर मात्र 6.4 प्रतिशत रह गई, समग्र रूपसे सदन की उत्पादकता केवल 24.4 प्रतिशत रही। उन्होंने कहाकि राज्यसभा के 103 घंटे 30 मिनट व्यवधानों और शोर शराबे की भेंट चढ़ गए। उन्होंने कहाकि आइए सदन के इस निराशाजनक प्रदर्शन पर विचार करें और इसका कोई रास्ता निकालें। सभापति ने उपसभापति और उपाध्यक्षों के पैनल के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त की और सदन के संचालन में उनके प्रयासों केलिए महासचिव और उनके अधिकारियों की टीम को भी धन्यवाद दिया। सभापति जगदीप धनखड़ ने इस अवसर पर सभीको ईस्टर, बुद्ध पूर्णिमा और ईद पर्व की अग्रिम बधाई भी दी।

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