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Wednesday 26 April 2023 06:21:52 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज वीडियो कॉंफ्रेंसिंग के जरिए सौराष्ट्र तमिल संगमम् के समापन समारोह को संबोधित करते हुए इस तथ्य पर ध्यान आकर्षित कियाकि अतिथि का स्वागत-सत्कार करना एक विशेष अनुभव है, लेकिन दशकों केबाद वापस घर पहुंचने का अनुभव और खुशी अतुलनीय है। उन्होंने जिक्र कियाकि सौराष्ट्र के लोगों ने तमिलनाडु के दोस्तों का गर्मजोशी से स्वागत किया है, जो समान उत्साह केसाथ राज्य की यात्रा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने याद कियाकि मुख्यमंत्री के रूपमें उन्होंने 2010 में मदुरै में एक ऐसा ही सौराष्ट्र तमिल संगमम् का आयोजन किया था, जिसमें सौराष्ट्र के 50000 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए थे। उन्होंने सौराष्ट्र में आए तमिलनाडु के अतिथियों में वैसा ही स्नेह और उत्साह देखा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह देखते हुए कि अतिथि पर्यटन भी कर रहे हैं और केवडिया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का दौरा पहले हीकर चुके हैं, कहाकि सौराष्ट्र तमिल संगमम् में अतीत की अनमोल यादें, वर्तमान केलिए आत्मीयता और अनुभव तथा भविष्य केलिए संकल्प और प्रेरणाएं देखी जा सकती हैं। उन्होंने कहाकि आजादी के अमृतकाल में हम सौराष्ट्र तमिल संगमम् जैसे सांस्कृतिक आयोजनों की एक नई परंपरा के गवाह बन रहे हैं, जो सिर्फ तमिलनाडु और सौराष्ट्र का संगम नहीं है, बल्कि देवी मीनाक्षी और देवी पार्वती के रूपमें शक्ति की उपासना का उत्सव भी है, साथही यह भगवान सोमनाथ और भगवान रामनाथ के रूपमें एक शिव की भावना का उत्सव भी है, इसी तरह यह सुंदरेश्वर और नागेश्वर का संगम है, यह श्री कृष्ण और श्री रंगनाथ, नर्मदा और वैगई, डांडिया और कोलाट्टम का संगम है तथा द्वारका और मदुरै जैसी पुरियों की पवित्र परंपराओं का भी संगम है।
प्रधानमंत्री ने कहाकि तमिल सौराष्ट्र संगमम् सरदार वल्लभभाई पटेल और सुब्रमण्यम भारती की देशभक्ति के संकल्पों का संगम है, हमें इस विरासत केसाथ राष्ट्र निर्माण के पथ पर आगे बढ़ना है। प्रधानमंत्री ने देश की विभिन्न भाषाओं और बोलियों, कला रूपों और शैलियों का जिक्र करते हुए कहाकि भारत एक ऐसा देश है, जो अपनी विविधता को एक विशेषता के रूपमें देखता है, भारत अपनी आस्था और आध्यात्मिकता में विविधता पाता है। उन्होंने भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा की पूजा करने और अपने विविध तरीकों से देश की पवित्र नदियों के समक्ष सिर झुकाने का उदाहरण दिया। प्रधानमंत्री ने कहाकि यह विविधता हमें बांटती नहीं है, बल्कि हमारे बंधनों और संबंधों को मजबूत करती है। उन्होंने रेखांकित कियाकि विभिन्न धाराओं के एकसाथ आने पर एक संगम बनता है और भारत सदियों से कुंभ जैसे आयोजनों के द्वारा नदियों के संगम से विचारों के संगम तक की धारणा का पोषण करता रहा है।
नरेंद्र मोदी ने कहाकि यह संगम की शक्ति है, जिसे सौराष्ट्र तमिल संगमम् आज एक नए रूपमें आगे बढ़ा रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दियाकि यह उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को भी पूरा करता है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी थी और 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' का सपना देखा था। प्रधानमंत्री ने विरासत के गौरव के 'पंच प्रण' को याद करते हुए कहाकि हमारी विरासत का गौरव तब बढ़ेगा, जब हम इसे जानेंगे, गुलामी की मानसिकता से मुक्त होकर स्वयं को जानने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहाकि काशी तमिल संगमम् और सौराष्ट्र तमिल संगमम् जैसे आयोजन इस दिशा में प्रभावी अभियान बन रहे हैं। उन्होंने गुजरात और तमिलनाडु केबीच गहरे संबंध की उपेक्षा पर टिप्पणी की। प्रधानमंत्री ने कहाकि पौराणिककाल सेही इन दोनों राज्यों केबीच गहरे संबंध हैं, सौराष्ट्र और तमिलनाडु, पश्चिम और दक्षिण का यह सांस्कृतिक संगम एक प्रवाह है, जो हजारों वर्षों से गतिमान है।
प्रधानमंत्री ने मार्ग से भटकाने वाली और विनाशकारी शक्तियों के प्रति आगाह किया। उन्होंने कहाकि भारत के पास कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी नवोन्मेष करने की शक्ति है, सौराष्ट्र और तमिलनाडु का साझा इतिहास हमें इस बात का आश्वासन देता है। प्रधानमंत्री ने सोमनाथ पर हुए हमले और परिणामस्वरूप तमिलनाडु की ओर पलायन को याद करते हुए कहाकि देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जानेवाले कभीभी नई भाषा, लोगों और पर्यावरण से चिंतित नहीं हुए। उन्होंने दोहरायाकि अपनी आस्था और पहचान की रक्षा केलिए बड़ी संख्या में लोग सौराष्ट्र से तमिलनाडु गए और तमिलनाडु के लोगों ने खुले दिल से उनका स्वागत किया तथा नए जीवन केलिए उन्हें सभी सुविधाएं प्रदान कीं। प्रधानमंत्री ने कहाकि एक भारत श्रेष्ठ भारत का इससे बड़ा और अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है? महान संत थिरुवल्लवर को उद्धृत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि सुख, समृद्धि और सौभाग्य उन्हें मिलता है, जो खुशी-खुशी दूसरों का अपने घरों में स्वागत करते हैं।
नरेंद्र मोदी ने सद्भाव और सांस्कृतिक संघर्ष से दूर रहने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहाकि हमें संघर्षों को आगे नहीं बढ़ाना है, हमें संगमों और समागमों को आगे बढ़ाना है। प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु के लोगों, जिन्होंने सौराष्ट्र मूल के लोगों का तमिलनाडु में आकर बसने का स्वागत किया का जिक्र करते हुए कहाकि हम मतभेद नहीं ढूंढना चाहते, हम भावनात्मक संबंध बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहाकि सबको साथ लेकर बढ़ने की समावेशी भावना से जुड़ी भारत की अमर परंपरा का प्रदर्शन उन लोगों ने किया है, जिन्होंने तमिल संस्कृति को अपनाया, लेकिन सौराष्ट्र की भाषा, खान-पान और रीति-रिवाजों कोभी याद रखा। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त कीकि हमारे पूर्वजों के योगदान को कर्तव्य की भावना केसाथ आगे बढ़ाया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने सभी से स्थानीय स्तरपर देश के विभिन्न हिस्सों के लोगों को आमंत्रित करने और उन्हें साथ रहने का अवसर देने का आग्रह किया, ताकि वे भारत देश को महसूस कर सकें। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि सौराष्ट्र तमिल संगमम् इस दिशा में एक ऐतिहासिक पहल साबित होगा।
सौराष्ट्र तमिल संगमम् की उत्पत्ति एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को बढ़ावा देने के प्रधानमंत्री के विज़न में निहित है। यह कार्यक्रम देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों केबीच सदियों पुराने संबंधों को सामने लाने और उनके बारे में फिरसे जानने में मदद करता है। इसे ध्यान में रखते हुए पहले काशी तमिल संगमम् आयोजित किया गया था और सौराष्ट्र तमिल संगमम्, गुजरात और तमिलनाडु केबीच साझा संस्कृति और विरासत का उत्सव मनाते हुए इस विज़न को आगे बढ़ाता है। ज्ञातव्य हैकि सदियों पहले बड़ी संख्या में लोग सौराष्ट्र क्षेत्र से तमिलनाडु चले गए थे। सौराष्ट्र तमिल संगमम् ने सौराष्ट्र के तमिलों को अपनी जड़ों से फिरसे जुड़ने का अवसर प्रदान किया। दस दिवसीय संगम में 3000 से अधिक सौराष्ट्री तमिल एक विशेष ट्रेन से सोमनाथ आए। यह कार्यक्रम 17 अप्रैल से शुरू हुआ था, जिसका समापन समारोह सोमनाथ में आयोजित किया गया था।