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'मानवाधिकार सुनिश्चित करना नैतिक दायित्व'

राष्ट्रपति का प्रकृति की देखभाल पर भी ध्यान देने का आह्वान

एशिया प्रशांत मानवाधिकार फोरम की बैठक और सम्मेलन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 20 September 2023 04:44:15 PM

president droupadi murmu

नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली में आज मानवाधिकार पर एशिया प्रशांत फोरम की वार्षिक आम बैठक और द्विवार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन किया है। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर सभीसे आग्रह कियाकि वे मानव अधिकारों के मुद्दे अलग-थलग न करें और प्रकृति की देखभाल पर भी उतना ही ध्यान दें, जो मानव के अविवेक से बुरी तरह आहत है। उन्होंने कहाकि भारत में हम मानते हैंकि ब्रह्मांड का प्रत्येक कण दिव्यता की अभिव्यक्ति है। उन्होंने कहाकि इससे पहलेकि बहुत देर हो जाए हमें प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन केलिए अपने प्रेम को फिरसे जगाना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहाकि मनुष्य जितना अच्छा निर्माता है, उतना ही अच्छा विध्वंसक भी है। उन्होंने कहाकि वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार यह ग्रह विलुप्त होने के चरण में प्रवेश कर चुका है, जहां मानव निर्मित विनाश अगर नहीं रोका गया तो न केवल मानवजाति, बल्कि पृथ्वी पर अन्य जीवन भी नष्ट हो जाएगा।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि संहिताबद्ध कानून से भी अधिक हर मायने में मानवाधिकार सुनिश्चित करना अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का नैतिक दायित्व है। राष्ट्रपति को यह जानकर प्रसन्नता हुईकि सम्मेलन में एक सत्र विशेष रूपसे पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विषय पर समर्पित है। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि सम्मेलन एक व्यापक घोषणापत्र लेकर आएगा, जो मानवता और ग्रह की बेहतरी का मार्ग प्रशस्त करेगा। राष्ट्रपति ने कहाकि हमारे संविधान ने गणतंत्र की स्थापना केबाद से सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया और हमें लैंगिक न्याय, जीवन और सम्मान की सुरक्षा के क्षेत्र में कई मूक क्रांतियों को शुरू करने में सक्षम बनाया। उन्होंने कहाकि हमने स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं केलिए न्यूनतम 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया है और एक सुखद संयोग में राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय संसद में महिलाओं केलिए समान आरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव अब आकार ले रहा है। उन्होंने साझा कियाकि यह हमारे समय में लैंगिक न्याय केलिए सबसे परिवर्तनकारी क्रांति होगी।
राष्ट्रपति ने कहाकि भारत मानवाधिकारों में सुधार केलिए दुनिया के अन्य हिस्सों में सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने केलिए तैयार है, जो एक चालू परियोजना है। उन्होंने कहाकि दुनियाभर के मानवाधिकार संस्थानों एवं हितधारकों केसाथ विचार-विमर्श और परामर्श के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहमति विकसित करने में एशिया प्रशांत क्षेत्र फोरम की बड़ी भूमिका है। राष्ट्रपति ने उल्लेख कियाकि मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के मसौदे को आकार देने में महात्मा गांधी का जीवन और विचार महत्वपूर्ण थे, उन्होंने मानवाधिकार विमर्श को प्रभावित किया, यह उनके प्रभाव में ही थाकि मानव अधिकारों की धारणा का विस्तार जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं से जीवन की गरिमा तक हो गया। राष्ट्रपति ने कहाकि जैसाकि आप में से बहुत से लोग जानते हैंकि 7 जून 1893 को गांधीजी को नस्लीय भेदभाव के कारण दक्षिण अफ्रीका के पीटरमैरिट्जबर्ग में ट्रेन के प्रथम श्रेणी डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया था, वह तब एक बदले हुए व्यक्ति थे, उन्होंने लाखों लोगों को अपने अधिकारों और सम्मान केलिए लड़ने केलिए प्रेरित किया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि इसी तरह बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर भी मानवाधिकारों के प्रबल समर्थक थे, उन्होंने दलित वर्गों को अपने अधिकारों केलिए खड़े रहना और सम्मान केसाथ जीना सिखाया, उन्होंने भारत के संविधान को आकार देने में भी आगे बढ़कर नेतृत्व किया, जो न केवल अधिकारों, स्वतंत्रता और न्याय की आधुनिक अवधारणा केसाथ जुड़ा हुआ है, बल्कि भारतीय लोकाचार में भी गहराई से निहित है, जो दुनिया को एक परिवार के रूपमें देखता है-वसुधैव कुटुम्बकम, जिसकी प्रतिध्वनि है, जो हालही में संपन्न जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान गूंजा। उन्होंने कहाकि हमारे संविधान ने गणतंत्र की स्थापना केबाद से सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया और कई मूक क्रांतियों को शुरू करने में सक्षम बनाया। राष्ट्रपति ने कहाकि पिछले कुछ वर्ष में सरकार ने आवास, शौचालय, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करने और इस प्रकार गरीबों की गरिमा की रक्षा केलिए भी कई महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की हैं।
राष्ट्रपति ने कहाकि वह उस पृष्ठभूमि से आती हैं, जहां उन्हें पता हैकि अभाव, ग़रीबी और अशिक्षा किस तरह जीवन को दयनीय बना देती है। उन्होंने सबका ध्यान लोकतांत्रिक मूल्यों और व्यक्तिगत अधिकारों केसाथ भारत के ऐतिहासिक अनुभव की ओर आकर्षित किया। राष्ट्रपति ने जिक्र कियाकि पश्चिमी दुनिया के मैग्ना कार्टा के माध्यम से समान मानव अधिकारों की अवधारणा से परिचित होने से बहुत पहले दक्षिणी भारत के एक श्रद्धेय संत और दार्शनिक बसवन्ना ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता की अवधारणा को बढ़ावा दिया था। उन्होंने लोगों की एक सभा बनाई, जिसे अनुभव मंतपा कहा जाता था, जहां लोग अपने वर्ग और लिंग के बावजूद भाग लेते थे और अपने सामूहिक भाग्य का निर्धारण करते थे। राष्ट्रपति ने कहाकि इसी प्रकार गणतंत्र की अवधारणा आधुनिक प्रतीत हो सकती है, लेकिन लगभग 2,800 वर्ष पूर्व भारत के वैशाली में विश्व की पहली जनप्रतिनिधि सरकार थी।
राष्ट्रपति ने कहाकि वे इतिहास का उल्लेख केवल यह बताने केलिए कर रही हैंकि भारत और एशिया प्रशांत क्षेत्र के अन्य राष्ट्र सभ्यतागत रूपसे मानवाधिकारों के संरक्षक हैं, हम मानवाधिकारों में सुधार केलिए दुनिया के अन्य हिस्सों में सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने केलिए भी तैयार हैं। गौरतलब हैकि एशिया प्रशांत फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स में क्षेत्र के 26 देश शामिल हैं। इसका गठन करने वाले अधिकांश राष्ट्र ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूपसे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, इनमें से कई लोग विरासत और मूल्यों को साझा करते हैं, जो इस क्षेत्र को बाकी दुनिया से अलग बनाते हैं। इन सदस्य राष्ट्रों ने मनुष्यों की जीवन स्थितियों में सुधार केलिए एक-दूसरे केसाथ समन्वय किया है। वर्ष 1996 में जब इस फोरम का गठन हुआ था, एशिया प्रशांत देशों के समूह ने अपने उद्देश्य को प्राप्त करने केलिए एकसाथ काफी दूर तक यात्रा की है, लेकिन हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।

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