स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Thursday 21 December 2023 03:43:33 PM
नई दिल्ली। अंग्रेजों के ज़माने की 150 साल पुरानी दंड संहिता की जगह भाजपा गठबंधन की नरेंद्र मोदी सरकार की ऐतिहासिक नई भारतीय दंड संहिता को संसद ने मंजूरी दे दी है। अंग्रेजों ने इसे देश में दंड देने केलिए लागू किया था, जबकि नरेंद्र मोदी सरकार ने इसमें न्याय प्रदान करने केलिए आमूलचूल बदलाव किया है। कल यह लोकसभा में पारित हो गई। अब यह राज्यसभा होते हुए क़ानून का रूप देने केलिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के पास जाएगी, जिसपर उनके हस्ताक्षर अधिसूचित होने के बाद जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी एवं द्वारिका से असम तक पूरे देश में यह क़ानून लागू हो जाएगा। नई भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता-2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक-2023 लोकसभा में पेश होने के बाद 20 दिसंबर 2023 को चर्चा हुई, जिसके बाद सदन में ये तीनों विधेयक पारित हो गए। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहाकि आपराधिक न्याय प्रणाली को चलाने वाले लगभग 150 वर्ष पुराने तीनों क़ानूनों में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीयता, भारतीय संविधान औऱ भारत की जनता की चिंता करने वाले परिवर्तन किए गए हैं। उन्होंने कहाकि 1860 में बनी भारतीय दंड संहिता का उद्देश्य न्याय देना नहीं, बल्कि दंड देना था।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहाकि अब भारतीय़ न्याय संहिता-2023, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 और इंडियन एवीडेंस एक्ट 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक-2023 देश में क़ानून बन जाएंगे, भारतीय आत्मा में आत्मसात केसाथ बनाए गए इन तीन क़ानूनों से भारतीय क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा। इन विधेयकों पर 35 सांसदों ने अपने विचार व्यक्त किए, जबकि 97 विपक्षी सदस्य सदन में मौजूद नहीं थे। गृहमंत्री ने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुलामी की मानसिकता और निशानियों को जल्द से जल्द मिटाने एवं आत्मविश्वास केसाथ महान भारत की रचना का रास्ता प्रशस्त करने का आग्रह रखा है, प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से कहा थाकि कोलोनियल कानूनों से इस देश को जल्दी मुक्ति मिलनी चाहिए, उसीके तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2019 से इन तीनों पुराने कानूनों में परिवर्तन लाने केलिए गहन विचार-विमर्श शुरू किया था। अमित शाह ने कहाकि वे क़ानून भारत पर विदेशी शासनकर्ता ने अपना शासन चलाने और गुलाम बनाई गई प्रजा को बलपूर्वक नियंत्रित करने केलिए बनाए थे। उन्होंने कहाकि इन तीनों पुराने क़ानूनों के स्थान पर लाए गए नए क़ानून भारतीय संविधान की तीन मूल भावनाओं-व्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार और सबके साथ समान व्यवहार के सिद्धांतों के आधार पर बनाए गए हैं।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहाकि वर्तमान तीनों क़ानूनों में न्याय की कल्पना ही नहीं थी, बल्कि उनमें दंड देने को ही न्याय माना गया था। उन्होंने कहाकि दंड देने का उद्देश्य पीड़ित को न्याय देना और समाज में ऐसा उदाहरण स्थापित करना था, ताकि कोई गलती न करे। अमित शाह ने कहाकि इन तीनों क़ानूनों का आज़ादी के इतने वर्ष बाद पहलीबार मानवीकरण हो रहा है। अमित शाह ने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल ने इन तीनों क़ानूनों को गुलामी की मानसिकता और चिन्हों से मुक्त कराया है। उन्होंने कहाकि पुराने क़ानून इस देश के नागरिकों के हितों की रक्षा केलिए नहीं, बल्कि अंग्रेज़ों के मनमर्जी राज की सुरक्षा केलिए बने थे, पुराने क़ानूनों में मानव वध और महिला केसाथ दुर्व्यवहार को प्राथमिकता न देकर अपने खज़ाने की रक्षा, रेलवे की रक्षा और ब्रिटिश ताज की सलामती को प्राथमिकता दी गई थी। उन्होंने कहाकि नए क़ानूनों में सबसे पहले महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों, मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले विषयों, देश की सीमाओं की सुरक्षा, सेना, नौसेना और वायुसेना से संबंधित अपराध, इलेक्टोरल अपराध, सिक्के, करेंसी नोट और सरकारी स्टांप केसाथ छेड़खानी आदि को रखा गया है। अमित शाह ने कहाकि मोदी सरकार ने इन क़ानूनों में आतंकवाद की व्याख्या करके सभी लूपहोल्स खत्म कर दिए हैं, जैसे राजद्रोह को देशद्रोह में बदलने का काम किया गया है और ऐसी दृढ़ता भी रखी गई हैकि देश को नुकसान पहुंचाने वालेको कभी नहीं बख्शा जाएगा।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहाकि आनेवाले 100 साल में होनेवाले या संभावित टेक्निकल इनोवेशन की कल्पना से सुसज्जित भारतीय न्यायिक पद्धति केलिए सभी प्रोविज़न नए क़ानूनों में किए गए हैं। गृहमंत्री ने कहाकि मॉब लिंचिंग एक घृणित अपराध है, इसलिए नए क़ानूनों में इसके लिए मत्युदंड का प्रावधान किया गया है और इनमें पुलिस औऱ नागरिक के अधिकारों केबीच अच्छी तरह से संतुलन रखा गया है, सज़ा की दर बढ़ाने और साइबर क्राइम पर प्रोविज़न किए गए हैं। उन्होंने कहाकि जेलों पर बोझ कम करने केलिए कम्युनिटी सर्विस को सज़ा के रूपमें शामिल करके इसे क़ानूनी जामा पहनाया गया है। अमित शाह ने कहाकि नए क़ानूनों केलिए सरकार को कुल 3200 सुझाव प्राप्त हुए थे और इनपर विचार केलिए स्वयं उन्होंने 158 बैठकें कीं। उन्होंने कहाकि 11 अगस्त 2023 को इन तीनों विधेयकों को गृह मंत्रालय की स्थायी समिति के विचारार्थ भेजा गया था। उन्होंने कहाकि ये क़ानून न्याय, समानता और निष्पक्षता के मूल सिद्धांतों के आधार पर लाए गए हैं। अमित शाह ने कहाकि फॉरेंसिक साइंस को इनमें बहुत तवज्जो दी गई है, जिससे जल्द न्याय मिले, इसके लिए नए क़ानूनों में पुलिस, वकील और न्यायाधीश केलिए समयसीमा रखने का काम भी किया गया है।
पुराने क़ानून की 484 धाराओं वाली CRPC को रिप्लेस करने वाली भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में अब 531 धाराएं रहेंगी, 177 धाराओं को बदल दिया गया है, 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 14 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता, जो IPC को रिप्लेस करेगी, उसमें पहले की 511 धाराओं के स्थान पर अब 358 धाराएं होंगी, 21 नए अपराध जोड़े गए हैं, 41 अपराधों में कारावास की अवधि बढ़ाई गई है, 82 अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है, 25 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सज़ा शुरू की गई है, 6 अपराधों में सामुदायिक सेवा का दंड रखा गया है और 19 धाराओं को निरस्त किया गया है। इसी प्रकार नया भारतीय साक्ष्य विधेयक, पुराने साक्ष्य क़ानून को रिप्लेस करेगा, जिसमें 167 के स्थान पर अब 170 धाराएं होंगी, 24 धाराओं में बदलाव किया गया है, 2 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 6 धाराएं निरस्त की गई हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में उल्लेख कियाकि उन्होंने कहा थाकि धारा 370 और 35ए को हटा देंगे तो उन्हें हटा दिया है, हमने कहा थाकि आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएंगे औऱ सुरक्षाबलों को फ्री हैंड देंगे, हमने नए क़ानून में कर दिया है। उन्होंने कहाकि इसके कारण जम्मू-कश्मीर, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों और नॉर्थईस्ट में हिंसक घटनाओं में 63 प्रतिशत और मृत्यु में 73 प्रतिशत की कमी आई है। अमित शाह ने कहाकि पूर्वोत्तर के 70 प्रतिशत से ज़्यादा क्षेत्र से AFSPA को हटा लिया गया है, क्योंकि वहां क़ानून और व्यवस्था की स्थिति ठीक हुई है।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहाकि हमने कहा थाकि अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनाएंगे और 22 जनवरी 2024 को श्रीराम मंदिर में राम लला विराजमान होंगे सो यह होने जा रहा है। उन्होंने कहाकि हमने कहा थाकि संसद औऱ विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देंगे, हमने सर्वानुमति से महिलाओं को आरक्षण देकर देश की मातृशक्ति को सम्मानित शक्तिवान करने का काम कर दिया है। उन्होंने कहाकि हमने कहा थाकि तीन तलाक मुस्लिम माताओं-बहनों के साथ अन्याय है, उसे समाप्त कर देंगे, हमने वो वादा भी पूरा कर दिया है। उन्होंने कहाकि हमने कहा थाकि न्याय मिलने की गति बढ़ाएंगे और न्याय दंड के आधार पर नहीं होगा, ये भी कर दिखाया है। गृहमंत्री ने कहाकि न्याय एक अंब्रेला टर्म है और ये एक सभ्य समाज की नींव डालता है। उन्होंने कहाकि आज तीनों नए विधेयकों से जनता की न्याय की अपेक्षा को पूरा करने का प्रयास किया है। उन्होंने कहाकि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका मिलकर इस देश में भारतीय विचार की न्याय प्रणाली को प्रस्थापित करेंगे। अमित शाह ने कहाकि पहले दंड देने की सेन्ट्रलाइज़्ड सोच वाले क़ानून थे, अब विक्टिम-सेंट्रिक जस्टिस की शुरूआत होने जा रही है, ईज़ ऑफ जस्टिस को सरल, सुसंगत, पारदर्शी और जवाबदेह प्रोसीजर के माध्यम से साकार किया गया है और एनफोर्समेंट केलिए निष्पक्ष, समयबद्ध, एवीडेंस-बेस्ड स्पीडी ट्रायल रखा गया है, जिससे अदालतों और जेलों पर बोझ कम होगा।
अमित शाह ने कहाकि जांच में फॉरेंसिक साइंस के आधार पर प्रॉसीक्यूशन को बल देने का काम किया गया है और बलात्कार से पीड़ित महिला का ऑडियो-वीडियो माध्यम से बयान लेना अनिवार्य किया गया है। उन्होंने कहाकि कश्मीर से कन्याकुमारी औऱ द्वारिका से असम तक देशभर में एक ही न्याय प्रणाली होगी, इसमें डायरेक्टर ऑफ प्रॉसीक्यूशन का एक्सटेंशन और उसके महत्व एवं उसे अनिवार्य करने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने बतायाकि अब हर ज़िले में एक स्वतंत्र डायरेक्टर ऑफ प्रॉसीक्यूशन बनेगा, राज्यस्तर पर बनेगा जो पारदर्शिता के साथ केस में अपील का निर्णय करेगा। कई मामलों में पुलिस की जवाबदेही तय की गई है और गिरफ्तार व्यक्ति की सूचना अनिवार्य रूप से हर पुलिस स्टेशन में रखनी होगी। अमित शाह ने कहाकि भारतीय न्याय संहिता में मानव और शरीर संबंधित अपराधों जैसे-बलात्कार, गैंगरेप, बच्चों के खिलाफ अपराध, हत्या, अपहरण और ट्रैफिकिंग आदि को प्राथमिकता दी गई है। उन्होंने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राजद्रोह की धारा को पूरी तरह से हटाने का काम किया है, हमने राजद्रोह की जगह देशद्रोह को रखा है, जिसके अंतर्गत देश के खिलाफ कोई नहीं बोल सकता और इसके हितों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता। अमित शाह ने कहाकि भारत के ध्वज, सीमाओं और संसाधनों केसाथ अगर कोई खिलवाड़ करेगा तो उसे निश्चित रूपसे जेल जाना होगा, क्योंकि देश की सुरक्षा सबसे ऊपर है। उन्होंने कहाकि हमने देशद्रोह की परिभाषा में उद्देश्य और आशय की बात की है और अगर उद्देश्य देशद्रोह का है, तो आरोपी को कठोर से कठोर दंड मिलेगा।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहाकि कुछ लोग इस नई पहल को अपना रंग देने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार संविधान की स्पिरिट के हिसाब से चलने वाली सरकार है और अगर देश के खिलाफ कोई कुछ भी करेगा तो उसे उसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी। गृहमंत्री ने कहाकि हज़ारों स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेज़ों को देश से निकालने केलिए राजद्रोह के आरोप में अपने जीवन का स्वर्णकाल जेल में काटा है, आज उनकी आत्मा को नरेंद्र मोदी सरकार की इस पहल से ज़रूर संतुष्टि मिलेगी कि आज़ाद भारत में आज इस अन्यायिक प्रोविज़न को समाप्त कर दिया गया है। गृहमंत्री ने कहाकि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा केलिए भी नए क़ानूनों में कई प्रावधान किए गए हैं। उन्होंने कहाकि भारतीय न्याय संहिता में इसमें एक नया चैप्टर जोड़ा गया है, जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र की महिला के बलात्कार के अपराध में आजीवन कारावास औऱ मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहाकि गैंगरेप के मामले में 20 साल या ज़िंदा रहने तक की सज़ा का प्रावधान किया गया है। अमित शाह ने कहाकि आज़ादी के 75 साल बाद पहली बार आतंकवाद को आपराधिक न्याय प्रणाली में जगह देने का काम किया गया है। उन्होंने कहाकि आतंकवादी ही मानवाधिकार का हनन करता है और उसे कठोर से कठोर सज़ा मिलेगी। उन्होंने कहाकि डायनामाइट, विस्फोटक पदार्थ, ज़हरीली गैस, न्यूक्लीयर का उपयोग जैसी घटनाओं में कोई भी मृत्यु होती है, तो इसका ज़िम्मेदार आतंकवादी कृत्य माना जाएगा। उन्होंने कहाकि इस परिभाषा से इस कानून के दुरूपयोग की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती है, लेकिन जो आतंकवादी कृत्य करते हैं, उन्हें कठोर से कठोर सज़ा मिलनी चाहिए, इस धारा से आतंकवाद के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस का संदेश जाएगा।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहाकि नए क़ानून में संगठित अपराध की व्याख्या की गई है, ग़ैरइरादतन हत्या के मामले में पुलिस के पास जाने और पीड़ित को अस्पताल ले जाने के मामले में कम सज़ा का प्रावधान किया है, हिट एंड रन केस में 10 साल की सज़ा का प्रावधान किया गया है। अमित शाह ने कहाकि अब पुलिस को शिकायत के 3 दिन में ही FIR दर्ज करनी होगी और 3 से 7 साल की सज़ा वाले मामले में प्रारंभिक जांच करके एफआईआर दर्ज करनी होगी। उन्होंने कहाकि अब बिना किसी देर के बलात्कार पीड़िता की मेडिकल जांच रिपोर्ट को 7 दिन के अंदर पुलिस थाने और न्यायालय में सीधे भेजने का प्रावधान किया गया है। चार्जशीट दाखिल करने की समयसीमा तय करके इसे 90 दिन रखा गया है, इसके बाद और 90 दिन ही आगे जांच हो सकेगी। उन्होंने कहाकि मजिस्ट्रेट को 14 दिन में मामले का संज्ञान लेना ही होगा और कार्रवाई शुरू हो जाएगी। अमित शाह ने कहाकि आरोपी को आरोपमुक्त करने का निवेदन भी 60 दिन में ही करना होगा, कई मामले ऐसे हैं जिनमें 90 दिन में आरोपी की अनुपस्थिति में भी ट्रायल कर उन्हें सज़ा सुनाई जा सकेगी, अब मुकदमा खत्म होने के 45 दिन में ही न्यायाधीश को निर्णय देना होगा, निर्णय औऱ सज़ा के बीच 7 ही दिन का समय मिलेगा। उच्चतम न्यायालय द्वारा अपील खारिज करने के 30 दिन के अंदर ही दया याचिका दाखिल की जा सकती है। अमित शाह ने कहाकि कोई भी महिला ई-एफआईआर से थाने में एफआईआर करा सकती है, उसका संज्ञान लिया जाएगा और दो दिन के अंदर ही घर आकर इसका जवाब लेने की व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहाकि पुलिस के अधिकारों के दुरुपयोग को रोकने केलिए टेक्नोलॉजी का उपयोग भी किया है।
अमित शाह ने कहाकि क्राइम सीन, इन्वेस्टिगेशन और ट्रायल के तीनों चरण में टेक्नोलॉजी के उपयोग को तवज्जो दी गई है, जिससे पुलिस जांच में पारदर्शिता और जवाबदेही तो निश्चित रूपसे सुनिश्चित होगी ही, सबूत की गुणवत्ता में भी सुधार होगा और विक्टिम और आरोपी दोनों के अधिकारों की रक्षा होगी। एविडेंस, तलाशी और जब्ती में वीडियो रिकॉर्डिंग का आवश्यक प्रोविजन किया गया है, जिससे किसीको फ्रेम करने की संभावनाओं में बहुत कमी आएगी, बलात्कार के मामले में पीड़िता का बयान कंपलसरी किया गया है। गृहमंत्री ने कहाकि देश में दोषसिद्धि की दर बहुत कम है और इसे बढ़ाने केलिए साइंटिफिक एविडेंस पर जोर देना पड़ेगा। नए क़ानून में क्वालिटी ऑफ इन्वेस्टिगेशन में सुधार करने, इन्वेस्टिगेशन साइंटिफिक पद्धति से करने, 90 प्रतिशत का कन्विक्शन रेट का लक्ष्य रखते हुए प्रावधान किया गया हैकि 7 साल से ज्यादा सजा वाले अपराधों में FSL टीम की विज़िट जरूरी होगी। गौरतलब हैकि नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने गुजरात फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाई थी और जब वे प्रधानमंत्री बने तो नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाई, नेशनल फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी के तहत अबतक 9 राज्यों में एनएफएसयू के 7 परिसर और दो ट्रेनिंग अकादमी खुल चुकी हैं, इनसे 5 साल बाद हर साल 35000 फॉरेंसिक एक्सपर्ट निकलेंगे जो ज़रूरत को पूरा करेंगे, यह भी उल्लेखनीय हैकि मोदी सरकार 6 अत्याधुनिक सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री बना रही है। अमित शाह ने कहाकि अब पीड़ित किसी भी पुलिस स्टेशन में जाकर ज़ीरो एफआईआर करा सकता है, जोकि 24 घंटे में संबंधित पुलिस स्टेशन में अनिवार्य रूपसे ट्रांसफर करनी होगी। इसके साथ ही हर ज़िले और थाने में पुलिस अधिकारी को पदनामित किया गया है, जो गिरफ्तार लोगों की सूची बनाकर उनके संबंधियों को इन्फॉर्म करेगा।
अमित शाह ने बताया कि अभीतक जमानत और बांड को स्पष्ट नहीं किया गया था, लेकिन अब जमानत और बांड को स्पष्ट कर दिया गया है, घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की केलिए भी प्रावधान किया गया है, पहले 19 अपराधों में ही भगोड़ा घोषित कर सकते थे, अब 120 अपराधों में भगोड़ा घोषित करने का प्रावधान किया गया है। गृहमंत्री ने बतायाकि ट्रायल इन एब्सेंशिया के तहत भी अब अपराधियों को सज़ा होगी और उनकी संपत्ति भी कुर्क हो सकेगी। एक तिहाई कारावास काट चुके अंडर ट्रायल कैदी केलिए ज़मानत का प्रोविजन किया गया है। अमित शाह ने बतायाकि सजा माफी को भी तर्कसंगत बनाने का काम किया गया है, अगर मृत्युदंड की सजा है तो ज्यादा से ज्यादा आजीवन कारावास हो सकता है, इससे कम सजा नहीं हो सकेगी, आजीवन कारावास है तो 7 साल की अवधि तक सज़ा भोगनी ही पड़ेगी और 7 वर्ष या उससे अधिक सजा है तो कम से कम 3 साल जेल में रहना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि पुलिस स्टेशनों पर बड़ी संख्या में पड़ी हुई संपत्ति की मजिस्ट्रेट के सामने वीडियोग्राफी फोटोग्राफी करवाकर अदालत की सहमति से 30 दिन के अंदर इसे बेच दिया जाएगा और पैसे कोर्ट में जमा होंगे। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कई बदलाव किए गए हैं, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को दस्तावेज की परिभाषा में शामिल कर दिया गया है, अब किसीभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को दस्तावेज माना जाएगा। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक रूपसे प्राप्त बयान को साक्ष्य की परिभाषा में शामिल कर दिया है, जब इसका पूर्ण अमल देश के हर थाने में हो जाएगा तब हमारी न्यायिक प्रक्रिया दुनिया में सबसे आधुनिक न्याय प्रक्रिया हो जाएगी। अमित शाह ने बताया कि अब तक आईसीजेएस के माध्यम से देश के 97 प्रतिशत पुलिस स्टेशन कम्प्यूराइज्ड करने का काम समाप्त कर दिया गया है, अदालतों का भी आधुनिकीकरण हो रहा है।
केंद्रीय गृहमंत्री ने बताया कि आईसीजेएस के माध्यम से फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी, थाना, गृह विभाग, पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ऑफिस, जेल और कोर्ट एक ही सॉफ्टवेयर के तहत ऑनलाइन होने वाले हैं, स्मार्टफोन, लैपटॉप, मैसेज वेबसाइट और लोकेशनल साक्ष्य को सुबूत की परिभाषा में शामिल किया गया है और आरोपियों, विशेषज्ञों पीड़ितों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी कोर्ट के सामने उपस्थित होने की अनुमति दी गई है। गृहमंत्री ने कहाकि एक आतंकवादी कृत्य केलिए एक ही जगह गुनाह रजिस्टर होगा, लेकिन सीआरपीसी में आज तक आतंकवाद की व्याख्या नहीं की गई थी और आतंकवादी बचकर निकल जाते थे, उनके बचने के सारे रास्ते इस क़ानून के माध्यम से बंद कर दिए हैं। गृहमंत्री ने कहाकि दया का अधिकार उसी का बनता है जो अपने कृत्य पर पछतावा करता है। उन्होंने कहाकि फॉरेंसिक साइंस को इतनी दृढ़ता केसाथ कानून में जगह देने वाला एकमात्र देश भारत होगा। अमित शाह ने कहाकि ब्रिटिश काल के सारे गुलामी के चिन्हों को समाप्त कर अब ये संपूर्ण भारतीय कानून हो गए हैं। लोकसभा में जिस समय ये नए क़ानून पेश किए गए उस समय विपक्ष केवल संसद के भीतर दर्शकदीर्घा से कूदे गए मामले पर राजनीति करने में लगा था और संसद नहीं चलने दे रहा था, जबकि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला बार-बार कह रहे थेकि इस मामले में कार्रवाई की जा रही है, जिसका निष्कर्ष जल्द ही सामने आएगा, मगर विपक्ष संसद की सुरक्षा चूक के बहाने सरकार को घेरने, संसद में हंगामा करने या बायकाट करने में लगा हुआ था। इसका परिणाम यह हुआकि विपक्ष खुद ही इन तीन क़ानूनों पर गंभीर चर्चा से वंचित रह गया और देशहित के ये महत्वपूर्ण क़ानून उसकी ग़ैर मौजूदगी में पारित हुए।