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Wednesday 19 June 2024 04:00:49 PM
मुंबई। मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का 18वां संस्करण सिनेमाप्रेमियों को राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम और भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार के संग्रह से लघु, एनिमेशन फिल्मों और वृत्तचित्रों का अनुभव प्राप्त करने का एक उल्लेखनीय अवसर प्रदान कर रहा है। भारत की समृद्ध सिनेमाई विरासत को रेखांकित करते हुए इन फिल्मों को राष्ट्रीय फिल्म धरोहर मिशन के तहत डिजिटल रूपसे पुनर्स्थापित किया गया है। मुख्य आकर्षण में 1980 में सत्यजीत रे निर्देशित 'पीकू' है। सत्यजीत रे की 26 मिनट की यह बंगाली फिल्म उनकी लघु कहानी पिकूर डायरी का सिनेमाई रूपांतरण है। यह युवा पीकू के जीवन के एक दिन को दर्शाता है, जब वह अपने माता-पिता के बिगड़ते संबंधों की जटिलताओं को प्रकट करता है। वह अपनी एकांत दुनिया की मासूमियत को मार्मिक रूपसे चित्रित करता है।
बीआर शेंडगे निर्देशित वर्ष 1981 में बनी 'द आर्ट ऑफ एनिमेशन' एनिमेशन की श्रमसाध्य प्रक्रिया पर प्रकाश डालती है। दस मिनट की इस हिंदी फिल्म में कागज पर स्थिर छवियों से लेकर आकर्षक चलित छवियों तक की यात्रा को दिखाया गया है। वर्ष 1965 में ऋत्विक घटक निर्देशित 'फियर' को बहुत कम देखा गया होगा, यह फिल्म भविष्य पर आधारित है तथा इसे भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान में अभिनय करने वाले छात्रों केलिए एक अभ्यास है। सोलह मिनट की यह हिंदी फिल्म आसन्न परमाणु हमले का सामना कर रहे एक सैन्य शहर पर आधारित है। वर्ष 1988 में संतोष सिवन निर्देशित 'द स्टोरी ऑफ टिब्लू' अरुणाचल प्रदेश के सुदूर गांव इदु में एक नौ वर्षीय लड़की की प्रेरक यात्रा का चित्रण करती है। चौरासी मिनट की इस हिंदी फिल्म में शिक्षा केलिए टिब्लू के प्रेम और उसके समुदाय पर इसके परिवर्तनकारी प्रभाव को दर्शाया गया है। वर्ष 2018 में संध्या सूरी निर्देशित 'अराउंड इंडिया विद ए मूवी कैमरा' में स्वतंत्रता से पहले ब्रिटिश और भारतीय उपमहाद्वीप के साझा इतिहास की पड़ताल करने केलिए अभिलेखीय छवियों का उपयोग किया गया है, जिसमें साबू और गांधी जैसी हस्तियां हैं। छियासी मिनट की यह अंग्रेजी फिल्म एक काव्यात्मक और सम्मोहक कथा प्रस्तुत करती है।
दीपक हल्दनकर निर्देशित 'व्हेयर टाइम स्टैंड्स स्टिल' अभुजमाड और बस्तर क्षेत्र के पड़ोसी क्षेत्रों में जनजातीय समुदायों का एक मानवशास्त्रीय चित्र प्रस्तुत करता है। यह हिंदी फिल्म वर्ष 1978 में बनी है और 11 मिनट की है, जो उनकी आत्मनिर्भर कृषि प्रथाओं, सामाजिक रीति-रिवाजों और सामुदायिक जुड़ाव पर प्रकाश डालती है। एमआईएफएफ 2024 के जरिए एक समृद्ध सिनेमाई अनुभव होता है, जो भारतीय फिल्म निर्माण के विभिन्न विषयों और युगों में विस्तारित पुनर्स्थापित फिल्मी रत्नों को प्रकाश में लाता है। यह प्रदर्शन भारत की सिनेमाई विरासत को संरक्षित करने और उसके महोत्सव केप्रति समर्पण को रेखांकित करता है। गौरतलब हैकि एनएफडीसी-एनएफएआई का मुख्यालय पुणे में है। यह संस्था भारत और दुनियाभर से फिल्मों के संग्रह, सूचीकरण एवं संरक्षण केलिए जिम्मेदार है। मूक क्लासिक, वृत्तचित्र, फीचर फिल्म और लघु फिल्मों सहित 30 हजार से अधिक फिल्मों के विशाल संग्रह केसाथ एनएफएआई भारत के सिनेमाई इतिहास के संरक्षक के रूपमें कार्य करता है। फिल्म संरक्षण केलिए एनएफएआई की प्रतिबद्धता की मिसाल इसकी अत्याधुनिक फिल्म भंडारण सुविधाएं, तापमान नियंत्रित भंडारण और विशेषज्ञ कर्मचारी हैं, जो फिल्म रीलों की कुशलतापूर्वक देखभाल केलिए समर्पित हैं।
राष्ट्रीय फिल्म धरोहर मिशन 2015 में शुरू किया गया था, जो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तत्वावधान में एक सरकारी पहल है। इसका प्राथमिक उद्देश्य भारत की विशाल सिनेमाई विरासत का संरक्षण और डिजिटलीकरण करना है। एनएफएचएम एक विशाल उपक्रम है, जिसमें फिल्म संरक्षण के विभिन्न पहलू शामिल हैं। इनमें पुरानी फिल्मों की बहाली, फिल्म प्रिंटों का डिजिटलीकरण, प्रलेखन और निवारक संरक्षण शामिल हैं। ये समस्त कार्य एनएफडीसी-एनएफएआई के पुणे परिसर में अत्याधुनिक पुनर्स्थापन और डिजिटलीकरण सुविधाओं में किए जाते हैं। एनएफडीसी-एनएफएआई बीते कई महीने से पुनर्स्थापना पर काम कर रहा है, जहां प्रत्येक फिल्म को कुशलतापूर्वक पुनर्स्थापित किया जा रहा है, इसका उद्देश्य भारतीय सिनेमाई इतिहास और आज हम जिस तरह से सामग्री को देखते हैं, उसे 4के रिज़ॉल्यूशन में संरक्षित करना है।