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Monday 15 July 2024 05:47:30 PM
नई दिल्ली/ काठमांडू। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज केपी शर्मा ओली को नेपाल का प्रधानमंत्री नियुक्त होने पर बधाई दी है। नरेंद्र मोदी ने उनसे भारत एवं नेपाल के बीच मित्रता के गहरे संबंधों को मजबूत करने तथा पारस्परिक रूपसे लाभकारी सहयोग पर मिलकर काम करने की उम्मीद जताई है। नरेंद्र मोदी ने एक्स पर केपी शर्मा ओली को बधाई पोस्ट की है। गौरतलब हैकि करीब 72 वर्षीय केपी शर्मा ओली चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं और उन्हें चीन का समर्थक माना जाता है। केपी शर्मा ओली के नेपाल के पिछले प्रधानमंत्री कार्यकाल में बार-बार चीन की तरफदारी और नेपाल में भारतविरोधी अभियान के कारण भारत और नेपाल के बीच बहुत ख़राब रिश्ते रहे हैं, जिससे दोनों देशों में कई बार गंभीर टकराव देखने को मिला है। तल्खी तो कम्युनिस्ट पुष्पकमल दहल प्रचंड के प्रधानमंत्रित्वकाल में भी देखी गई है, जबकि गिरिजा प्रसाद कोइराला के प्रधानमंत्रित्व में और नेपाल की राजशाही के शासन में भारत और नेपाल केबीच अच्छे संबंध रहे हैं।
वस्तुत: भारत और नेपाल केबीच ख़राब संबंधों का दौर भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार में शुरू हुआ। कहा जाता हैकि प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपने व्यक्तिगत कारणों से नेपाल पर कुछ प्रतिबंध लगा दिए, जिससे नेपाल की जनता भारत के खिलाफ हो गई। ऐसा अबतक चल रहा है और अभीतक जो नेपाल के प्रधानमंत्री हुए हैं, उनका भारत से अच्छा संबंध नहीं रहा, नेपाल की तत्कालीन सरकार से भारत के खराब संबंधों का दोनों ही देशों पर बहुत बुरा असर पड़ा है, जो अभीतक जारी है। भारत में भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार ने दोनों देशों के बिगड़े संबंध सुधारने की भरसक कोशिशें की हैं। नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप में तथा विविध प्रकार से भारत ने नेपाल और उसके नागरिकों की सबसे ज्यादा सहायता करके यह सिद्ध भी किया है, किंतु सच तो यह हैकि नेपाल भारत से ज्यादा चीन पर ही भरोसा करता आ रहा है और चीन भी नेपाल में सड़क पानी बिजली और आर्थिक क्षेत्र में उसकी सहायता करता है। यही नहीं चीन नेपाल में बैठकर नेपाली जनता को भारत के खिलाफ भड़काने की हरकतें करता है, साथ ही वह सुरक्षा सहित भारत विरोधी गतिविधियों में भी नेपाल की जमीन का इस्तेमाल करता है।
नेपाल का राजनीतिक घटनाक्रम कोई आर्श्चयजनक नहीं है, बल्कि राजशाही के बाद नेपाल भी विघटनकारी शक्तियों से घिरता जा रहा है। एक हिंदू राष्ट्र रहे नेपाल में बहुत तेजी से मुसलमानों की संख्या बढ़ी है और यहां के नेता मुसलमानों के वोट हासिल करने केलिए उनसे किसी भी समझौते को तैयार रहते हैं। नेपाल का हिंदूवादी इन राजनेताओं से बहुत परेशान है और अपने देश की अखंडता को लेकर बहुत चिंतित है, यही वह वर्ग है, जो भारत से नेपाल के अच्छे संबंध चाहता है, लेकिन वह राजनीतिक रूपसे कमजोर ही होता जा रहा है। नेपाल को इसका नुकसान भी उठाना पड़ रहा है, क्योंकि वहां पर अभीतक कोई स्थिर सरकार नहीं आ पाई है। पुष्पकमल दहल प्रचंड का विश्वास मत हासिल नहीं कर पाना और बड़े अंतर से उनकी सरकार का पतन इसका एक बड़ा प्रमाण है। केपी शर्मा ओली की सरकार की भी कोई गारंटी नहीं है, लेकिन वह जोड़तोड़ करके सरकार चला ले जाएंगे और जाहिर हैकि इसमें चीन उनकी काफी मदद करेगा। नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता और वहां चीन का दखल हमेशा भारत केलिए चिंता का विषय रहा है। भारत के अधिकार क्षेत्र में एक भूभाग भी भारत और नेपाल के बीच गंभीर विवाद बना हुआ है, जिसे चीन हवा दिए हुए है।
केपी शर्मा ओली की नेपाल में फिर से सरकार बनते ही नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल शुरू हो गई है। केपी शर्मा ओली चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। वे 11 अक्टूबर 2015 से 3 अगस्त 2016 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रहे, फिर पांच फरवरी 2018 से 13 मई 2021 तक प्रधानमंत्री हुए जिसके बाद नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें उनके पद पर बने रहने को असंवैधानिक कहा था। केपी शर्मा ओली अब फिर नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। यह भी उल्लेखनीय हैकि केपी शर्मा ओली ने अपने पहले कार्यकाल में भारत पर नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने और उनकी सरकार गिराने का आरोप लगाया था। कारण थाकि नेपाल ने चीन के इशारों पर बॉर्डर एरिया के भारत के कुछ इलाकों को अपने नक्शे में दिखाया, जिसे भारत सरकार खारिज कर चुकी है। नेपाल ने उस नक्शे में भारत के उत्तराखंड राज्य के लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाल का होने का दावा किया है। भारत की नेपाल के उस नक्शे पर कड़ी आपत्ति है। बहरहाल देखना होगाकि नेपाल की नई सरकार में भारत और नेपाल के रिश्ते कैसे चलते हैं। चूंकि नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता है, जिसका चीन ही सर्वाधिक लाभ उठाता आ रहा है और उठाएगा।