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'बस बहुत हुआ' को राष्ट्रीय आह्वान बनाएं!

महिला-बेटी के मन में डर राष्ट्रीय चिंता का विषय-उपराष्ट्रपति

'विकसित भारत में महिलाओं की भूमिका' विषय पर व्याख्यान

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 30 August 2024 04:57:13 PM

jagdeep dhankhar addressed the at bharati college

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा को ‘लक्षणात्मक रोग’ कहे जाने की निंदा की है। दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कॉलेज में ‘विकसित भारत में महिलाओं की भूमिका’ विषय पर व्याख्यान में उपराष्ट्रपति ने छात्रों और फैकल्टी सदस्यों को संबोधित करते हुए कहाकि मैं आश्चर्यचकित हूं, मैं दुखी हूंकि सर्वोच्च न्यायालय के बार के एक सदस्य और संसद के एक सदस्य महिलाओं के खिलाफ हिंसा को ‘लक्षणात्मक रोग’ कहते हैं और यह भी कहते हैंकि ऐसी घटनाएं सामान्य हैं? उपराष्ट्रपति ने कहाकि ऐसा कथन शर्मनाक है और इसकी निंदा करने केलिए शब्द भी कम हैं, यह उस उच्च पद केसाथ सबसे बड़ा अन्याय है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि ऐसे बयान महिलाओं और बेटियों की पीड़ा को तुच्छ बनाते हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नागरिकों से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के ‘बस बहुत हुआ’ आह्वान को दोहराने की अपील की। उन्होंने कहाकि आइए इसे राष्ट्रीय आह्वान बनाएं। उपराष्ट्रपति ने कहाकि संकल्प लें कि हम एक ऐसा सिस्टम बनाएंगे, जिसमें कोई भी लड़की या महिला पीड़ित न हो, हर नागरिक इस समय की सटीक चेतावनी को सुने। उपराष्ट्रपति ने कहाकि हमारी बेटियों और महिलाओं के मन में डर एक राष्ट्रीय चिंता का विषय है। उन्होंने कहाकि जहां महिलाएं और लड़कियां अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं, वह समाज सभ्य नहीं है, वहां लोकतंत्र भी धूमिल हो जाता है और यह सब हमारे विकास में सबसे बड़ी बाधा है। उन्होंने कहाकि लड़कियां देश के विकास में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सेदार हैं, वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था, कृषि अर्थव्यवस्था और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। लिंग आधारित असमानताओं को समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि क्या हम कह सकते हैंकि आज लिंग आधारित असमानता नहीं है? समान योग्यता के बावजूद भिन्न वेतन, बेहतर योग्यता के बावजूद समान अवसर नहीं, यह मानसिकता बदलनी चाहिए, पारिस्थितिकी तंत्र को समान होना चाहिए, असमानताएं समाप्त होनी चाहिएं।
उपराष्ट्रपति ने भारत की विकास यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहाकि इस प्रगति को महिलाओं की पूर्ण भागीदारी के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहाकि भारत को एक विकसित देशके रूपमें सोचने का विचार, बिना लड़कियों और महिलाओं की भागीदारी के तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि उनके पास ऊर्जा और प्रतिभा है और उनकी भागीदारी केसाथ भारत के विकसित होने का सपना 2047 से पहले पूरा हो जाएगा। यूनिफॉर्म सिविल कोड की आवश्यकता पर उपराष्ट्रपति ने कहाकि यह एक संवैधानिक आदेश है, यह निदेशक सिद्धांतों में है। उन्होंने जिक्र कियाकि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा हैकि इसे विलंबित किया जा रहा है, यूनिफॉर्म सिविल कोड एक न्याय का उपाय है, यह कई तरीकों से मदद करेगा, लेकिन मुख्य रूपसे यह आपके लिए मददगार होगा। महिलाओं के प्रतिनिधित्व में महत्वपूर्ण प्रगति की सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं केलिए एक तिहाई आरक्षण गेम चेंजर होगा, यह पहल नीति निर्धारण को क्रांतिकारी बना देगी और सुनिश्चित करेगीकि सही लोग निर्णय लेने की पदों पर हों।
सरकारी नौकरियों पर युवाओं की निरंतर ध्यान केंद्रित करने पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि मैंने देखा है और अनुभव किया हैकि लड़के और लड़कियों केलिए बहुत सारी संभावनाएं हैं, फिरभी सरकारी नौकरियों केप्रति उनका मोह बहुत पीड़ादायक है। कोचिंग के वाणिज्यीकरण की आलोचना करते हुए उन्होंने युवाओं से साइलो को खत्म करने और उपलब्ध संभावनाओं का उपयोग करने की अपील की। राष्ट्रीय हित के खिलाफ संभावित चुनौतियों को पूर्वानुमानित करने और नष्ट करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि दुनिया भारत की प्रशंसा कर रही है, फिरभी कुछ नकारात्मकता फैलाते हैं, क्या वे राष्ट्रीय हित को अपने स्वयं के हितों के ऊपर रख रहे हैं? उन्होंने नागरिकों से अपील कीकि जब राष्ट्रीय हित और विकास की बात होतो हमें राजनीतिक, पार्टी और व्यक्तिगत हितों को अलग रखना चाहिए। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न अस्तित्व संकट पर उपराष्ट्रपति ने हमारे ग्रह की सुरक्षा केलिए तात्कालिक कार्रवाई की आवश्यकता को बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री की ‘एक पेड़ मां के नाम’ पहल का आह्वान किया। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह, भारती कॉलेज की अध्यक्ष प्रोफेसर कविता शर्मा, भारती कॉलेज की प्रिंसिपल प्रोफेसर सलोनी गुप्ता, छात्र, फैकल्टी सदस्य और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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