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Saturday 14 September 2024 05:58:47 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज नई दिल्ली में राजभाषा हीरक जयंती समारोह और चतुर्थ अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने कहाकि हिंदी को संघर्ष केसाथ नहीं, बल्कि साहसिक स्वीकार्यता केसाथ बढ़ावा दें। गृहमंत्री ने राजभाषा हीरक जयंती पर विशेष रूपसे तैयार राजभाषा भारती पत्रिका के हीरक जयंती विशेषांक, स्मारक डाक टिकट और स्मारक सिक्के का लोकार्पण किया। गृहमंत्री ने राजभाषा गौरव तथा राजभाषा कीर्ति पुरस्कार प्रदान किए और भारतीय भाषा अनुभाग का भी शुभारंभ किया। अमित शाह ने कहाकि 75 साल की यात्रा, हिंदी को राजभाषा के रूपमें स्वीकारकर इसके माध्यम से देशकी सभी स्थानीय भाषाओं को जोड़ते हुए अपने संस्कार, संस्कृति, भाषाओं, साहित्य, कला एवं व्याकरण को संरक्षित और संवर्धित करने की यात्रा है। उन्होंने कहाकि हिंदी की 75 वर्ष की यह उल्लेखनीय यात्रा अब अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के अंतिम पड़ाव पर खड़ी है और आजका दिन हिंदी को संपर्क, जन भाषा, तकनीक और अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाने का दिन है।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहाकि आज भारतीय भाषा अनुभाग का शुभारंभ हुआ है और हमसब जिस छोटे से बीज के बोए जानेके साक्षी बने हैं, वह आनेवाले वर्षों में एक वटवृक्ष बनकर हमारी भाषाओं की सुरक्षा का केंद्र बनेगा, भारतीय भाषा अनुभाग राजभाषा विभाग का पूरक अनुभाग बनेगा। अमित शाह ने कहाकि राजभाषा का प्रचार-प्रसार तबतक नहीं हो सकता, जबतक हम अपनी सभी स्थानीय भाषाओं को मज़बूत न करें और राजभाषा का इनके साथ संवाद स्थापित न करें। उन्होंने कहाकि हिंदी और स्थानीय भाषाओं केबीच कभी स्पर्धा नहीं हो सकती, क्योंकि हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सखी है। उन्होंने कहाकि हिंदी और स्थानीय भाषाएं एकदूसरे की पूरक हैं, इसीलिए भारतीय भाषा अनुभाग के माध्यम से हिंदी और सभी स्थानीय भाषाओं केबीच संबंध को और मज़बूत किया जाएगा। उन्होंने कहाकि भारतीय भाषा अनुभाग हिंदी के किसीभी लेख, भाषण या पत्र भावानुवाद देश की सभी भाषाओं में करेगा, इसी प्रकार देशकी सभी भाषाओं के साहित्य, लेख और भाषणों का अनुवाद हिंदी में होगा, जो समय की ज़रूरत है। गृहमंत्री ने कहाकि जो स्वराज, स्वधर्म और स्वभाषा को समाहित नहीं करता वो अपनी आने वाली पीढ़ियों को ग़ुलामी से मुक्त नहीं कर सकता। उन्होंने कहाकि स्वराज की व्याख्या में ही स्वभाषा समाहित है। अमित शाह ने कहाकि भारतीय भाषाएं हिंदी से ही मजबूत हैं और हिंदी भी भारतीय भाषाओं सेही मजबूत है। उन्होंने कहाकि भाषा अभिव्यक्ति है और जब अपनी भाषा में अभिव्यक्ति, तभी वह मुखर होती है।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहाकि जो देश और जनता अपनी भाषाओं की रक्षा नहीं कर सकते, वो अपने इतिहास, साहित्य तथा संस्कार से कट जाते हैं और उनकी आनेवाली पीढ़ियां गुलामी की मानसिकता केसाथ आगे बढ़ती हैं। अमित शाह ने कहाकि ये बहुत ज़रूरी हैकि आज़ादी के 75 वर्ष केबाद भी हम आज शिवाजी महाराज के स्वराज, स्वभाषा और स्वधर्म के सिद्धांत पर बल देकर काम करें। उन्होंने कहाकि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पर बल देने का काम किया गया है। उन्होंने कहाकि बच्चे की अभिव्यक्ति, सोचने, समझने, तर्क, विश्लेषण और निर्णय पर पहुंचने की प्रक्रिया की सबसे सुगम भाषा उसकी मातृभाषा होती है, इसी कारण से मातृभाषा में शिक्षा पर जोर दिया गया है। गृहमंत्री ने कहाकि आजका दिन भारत की सभी भाषाओं को मज़बूत करने और राजभाषा को देश की संपर्क भाषा बनाने का दिन है, जिसके माध्यम से हम अपनी भाषाओं में अपने देश का कामकाज कर सकें। अमित शाह ने कहाकि हमारे आज़ादी के आंदोलन में भी हिंदी का बहुत बड़ा योगदान है, वर्ष 1857 की क्रांति के विफल होनेके पीछे एक प्रमुख कारण किसी संपर्क भाषा का न होना था। उन्होंने कहाकि हमारा देश जियोपॉलिटिकल नहीं, बल्कि भूसांस्कृतिक देश है और संस्कृति हमारे देशको जोड़ने वाली एक मज़बूत कड़ी है। अमित शाह ने कहाकि हमारे देश की एकता संस्कृति से बनी है, हमारी संस्कृति भाषाओं से जुड़ी और बनी है, जिस दिन हम अपनी भाषाओं को गंवा देंगे, उस दिन देशकी एकता पर बहुत बड़ा खतरा मंडराने लगेगा।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहाकि चाहे डॉ भीमराव अंबेडकर हों, राजगोपालाचारी, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, केएम मुंशी, लाला लाजपत राय, नेताजी सुभाषचंद्र बोस या फिर आचार्य कृपलानी हों हिंदी को बढ़ावा देनेवाले हमारे नेताओं में अधिकतर गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों से आते थे, इन सभीकी मातृभाषा अलग थी, मगर वे समझते थेकि हिंदी भाषा देश को एक करने का एक माध्यम है, इसलिए उन्होंने हिंदी को राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनाकर राजभाषा का स्वरूप दिया। अमित शाह ने कहाकि हमारी भाषाओं को अगर कोई बचा सकता है तो वो केवल माताएं ही बचा सकती हैं। गृहमंत्री ने सभी अभिभावकों से अनुरोध कियाकि वे अपने बच्चों केसाथ अपनी मातृभाषा में ही बात करें। उन्होंने कहा कि अगर हम ये करते हैं तो हमारी भाषाओं को कोई समाप्त नहीं कर सकता, हमारी भाषाएं चिरकाल तक देश और दुनिया की सेवा करती रहेगीं। अमित शाह ने कहाकि आनेवाला समय भारत की भाषाओं और सभी भाषाओं का है। उन्होंने कहाकि अब भारत को कोईभी किसीभी प्रकार की गुलामी में नहीं रख सकता और भाषा की गुलामी में तो कभी नहीं रख सकता। गृहमंत्री ने कहाकि राजभाषा विभाग ने हिंदी को लचीली और स्वीकार्य बनाने में बहुत काम किया है। उन्होंने कहाकि कई शब्द हिंदी में नहीं हैं, लेकिन अन्य स्थानीय भाषाओं में हैं और हमने उन्हें स्वीकार किया है, हिंदी जब इन शब्दों को स्वीकार करती है तो हमारी स्थानीय भाषाएं भी हिंदी के कई शब्दों को स्वीकारती हैं।
गृहमंत्री ने कहाकि हमने शब्द सिंधु शब्दकोष में भारत की हर भाषा के शब्दों को समाहित किया है, हमें हिंदी को स्वीकार्य, लचीली और बोलचाल की भाषा बनाना चाहिए। गृहमंत्री ने विश्वास व्यक्त कियाकि अगले लोकसभा चुनाव से पहले शब्द सिंधु शब्दकोष विश्व का सबसे बड़ा शब्दकोष बनेगा। अमित शाह ने कहाकि केंद्र सरकार शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और न्यायपालिका में हिंदी के प्रयोग की दिशामें काम कर रही है। अमित शाह ने कहाकि न्यायालय के निर्णयों का भी कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है। उन्होंने कहाकि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड ने मेडिकल शिक्षा को संपूर्ण पाठ्यक्रम हिंदी में तैयार कर लिया है, भारत की लगभग 13 भाषाओं में इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम तैयार होने का काम जारी है और आनेवाले दिनों में हिंदी ही निश्चित रूपसे अनुसंधान की भाषा भी बनेगी। गृहमंत्री ने कहाकि हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ाने का हमारा रोडमैप आगे बढ़ रहा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के बड़े से बड़े मंच पर विश्वास और गौरव केसाथ हिंदी में अपना संबोधन देकर हिंदी की स्वीकृति को बढ़ाने का काम किया है। उन्होंने कहाकि जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्तराष्ट्र महासभा को हिंदी में संबोधित किया था, तब पूरी दुनिया अचंभित रह गई थी। अमित शाह ने कहाकि आज हिंदी संयुक्तराष्ट्र की भाषा बन चुकी है और 10 से अधिक देशों की द्वितीय भाषा भी बन चुकी है, हिंदी अब अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनने की दिशा में आगे बढ़ रही है।