दिनेश शर्मा
नई दिल्ली। देश में अगर कोई राजनीतिक अनहोनी नहीं हुई तो अगले साल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश का अगला राष्ट्रपति और उनके साथ ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है। अगले साल 2012 में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव होने के बाद, राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का कार्यकाल पूरा हो रहा है, तब कांग्रेस के सामने यह सुअवसर होगा, जब सत्ता हस्तांतरण करते हुए, नेहरू-इंदिरा राजवंश के उत्तराधिकारी राहुल गांधी को आसानी से देश का नया प्रधानमंत्री बनाया जा सकेगा और इस संभावित रणनीति से अलग हटकर कांग्रेस शायद ही सोचे। राजनीतिक विश्लेषकों का सोचना है कि देश के पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव और उसके बाद होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव से पहले, मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद से हटाकर, राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना बेवजह का राजनीतिक विवाद ही होगा।
अपने समय से पूर्व ही यह विषय इसलिए बेपर्दा हो रहा है, क्योंकि देश में सिविल सोसायटी के मुख्य नेतृत्वकर्ता अण्णा हजारे का भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चल रहा है और उससे सहमी कांग्रेस के मौजूदा हालात कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। जानकारों का कहना है कि इसके बावजूद यूपीए गठबंधन को कोई ख़तरा नज़र नहीं आता है, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी इस अवसर का राजनीतिक लाभ उठाते हुए आज चाहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस्तीफा मांग रहे हों या भ्रष्टाचार के खिलाफ देश के एक जुट दिखने से वे समय पूर्व लोक सभा चुनाव की आशा कर रहे हों। देश में और भी कई आवाज़ें उठ रही हैं कि अण्णा की आंधी में केंद्र सरकार उड़ सकती है, मगर ऐसा होना इतना आसान नहीं लगता है। यूपीए गठबंधन अपने स्थायित्व को लेकर आश्वस्त है और कांग्रेस की रणनीति के तहत, देश के प्रधानमंत्री पद पर बदलाव का समय और उसका तरीका पहले से ही सुनिश्चित है। कांग्रेस के कुछ लीडर भी भले ही अभी से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, मगर उन्हें इसके लिए राष्ट्रपति के चुनाव तक प्रतीक्षा करनी होगी।
कदाचित यह कांग्रेस की योजना में है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाकर मनमोहन सिंह को प्रतीक्षा में न रखा जाए, बल्कि इधर मनमोहन सिंह की राष्ट्रपति के पद पर और उधर राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पर साथ-साथ ताज़पोशी हो। इस कारण, कांग्रेस गठबंधन, इस समय किसी भी दबाव में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद से हटाने वाला नहीं है और न ही समय पूर्व लोक सभा चुनाव कराने वाला है। जानकारों का सोचना है कि देर सवेर अण्णा हजारे की आंधी निकल जाएगी और राजनीतिक स्थिति सामान्य हो जाएगी।
कांग्रेस की भावी योजना में जहां तक मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री से राष्ट्रपति पद पर ले जाने की संभावना है तो जब समय आएगा तो राजनीतिक दलों में देश के राष्ट्रपति पद के लिए मनमोहन सिंह के नाम पर सहमति भी आसानी से बन जाएगी। अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी अभियान और जन लोकपाल बिल के दबाव से सहमे और बदनामी के फलस्वरूप यह बात अभी भी कायम है कि मनमोहन सिंह व्यक्तिगत रूप से ईमानदार हैं और वे आज भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का जो भी कलंक ढो रहे हैं और विपक्ष का लगातार निशाना बन रहे हैं तो वह केवल कांग्रेस के लिए है, इसलिए व्यक्तिगत छवि के मामले में उन्होंने कुछ भी नहीं खोया है, चूंकि वे लगातार दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री हैं, इसलिए भारत के अगले राष्ट्रपति पद पर उनकी पात्रता को कोई दूसरा चुनौती भी नहीं दे सकता है।
जब यह विषय विश्लेषण में आ गया है तो यह समझना होगा कि देश की राजनीतिक स्थितियों को देखते हुए, राष्ट्रपति पद के लिए, कांग्रेस के पास मनमोहन सिंह से ज्यादा योग्य और भरोसेमंद कोई और दिखाई भी नहीं देता है। कांग्रेस चाहती है, कि जिस प्रकार प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के रूप में उसके लिए अनुकूल राष्ट्रपति मिला, उसी प्रकार की आदर्श स्थिति आगे भी बनी रहे, जिसमें सरदार मनमोहन सिंह को सब तरफ से सौ नंबर दिए जा सकते हैं। आख़िर, कांग्रेस को अगले साल राष्ट्रपति पद के लिए अपने अनुकूल प्रत्याशी चाहिए जो मनमोहन सिंह हैं और प्रधानमंत्री पद के लिए पहले से ही प्रतीक्षारत एक मात्र उम्मीदवार राहुल गांधी हैं ही, जिन्हें प्रधानमंत्री बनाने पर यूपीए गठबंधन में किसी को ऐतराज भी नहीं हो सकता और यह गठबंधन इस पद पर फेरबदल करने या राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी का चयन करने के लिए लोकसभा में पूर्ण बहुमत भी रखता है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए सदैव से मनमोहन सिंह न केवल एक वफादार कांग्रेसी हैं, बल्कि वफादार प्रधानमंत्री भी साबित हुए हैं। वे सोनिया गांधी के इशारे पर कभी भी देश का प्रधानमंत्री पद त्याग सकते हैं, इसलिए सोनिया गांधी को कांग्रेस गठबंधन के रहते, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद पर किसी को भी पदस्थापित करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। राहुल गांधी के लिए जब भी उनसे पद छोड़ने को कहा जाएगा तो मनमोहन सिंह सहर्ष तैयार हो जाएंगे। ऐसा करते हुए उनके दिल में यह भी अपार खुशी होगी कि भारत के प्रधानमंत्री पद के बाद अब उन्हें देश का राष्ट्रपति भी बनाया जा रहा है। इतना बड़ा सम्मान और देश का सर्वोच्च पद पाने वाले किसी भी नागरिक को अपने जीवन में और क्या चाहिए? उनकी किस्मत का चक्र धीरे-धीरे इसी तरफ बढ़ता दिखाई दे रहा है।
कांग्रेस ने देश में मनमोहन सिंह का कार्ड यूंही नहीं चला रखा है बल्कि वह इस कार्ड से राहुल गांधी के राजतिलक की तैयारी कर रही है, मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाकर वह देश की जनता सहित पूरे विश्व में यह संदेश भी प्रसारित करना चाहती है कि इस देश में एक बार फिर से अल्पसंख्यक और वह भी, योग्य और ईमानदार व्यक्ति का राष्ट्रपति पद के लिए चयन किया गया है। जहां तक विपक्ष की बात है तो उसके सामने भी यह भारी दुविधा रहेगी कि वह राष्ट्रपति पद के लिए मनमोहन सिंह के नाम का विरोध आख़िर किस आधार पर करे? यह बात ध्यान देने काबिल है कि अगले साल राष्ट्रपति के चुनाव में यूपीए गठबंधन की ओर से अभी किसी के नाम की चर्चा नहीं हो रही है, जबकि राष्ट्रपति के कार्यकाल में एक वर्ष बाकी रहने पर कुछ नाम चर्चा में आ जाते थे, इस बार कांग्रेस में इस पद के प्रत्याशी को लेकर कोई हलचल नहीं है। इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि कांग्रेस तय कर चुकी है कि उसे इस विषय में आगे क्या करना है।
राष्ट्रपति चुनाव से देश की भावी राजनीतिक दिशा भी जुड़ी है। समय रहते राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने से कांग्रेस को वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों का पूरा अवसर मिलेगा। भविष्य में कांग्रेस की राजनीतिक योजनाओं को सफलता पूर्वक पूरा करने में मनमोहन सिंह की सहृदयता जरूर उसके काम आएगी। कांग्रेस को बधाई कि उसकी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा पूर्ण होने का अवसर नज़दीक आता जा रहा है।