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Friday 19 July 2013 12:13:17 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को एसोचेम की 92वीं वार्षिक आम बैठक को संबोधित किया और कहा कि एसोचेम ने अनेक वर्षों से आर्थिक और औद्योगिक विकास के लिए देश की नीतियों को आकार देने में समय-समय पर बहुमूल्य सहयोग किया है। उन्होंने कहा कि मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि अनेक देशों के समान हम भी एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं, हमारी अर्थव्यवस्था में मंदी के बारे में व्यापारियों में बड़ी चिंता है, अर्थव्यवस्था को विकास के उच्च पथ पर वापस लाने के लिए उनकी निगाहें सरकार की ओर लगी हैं, मेरा विश्वास है कि यह उनकी उचित अपेक्षा है और हमारे दिमाग में भी यह सबसे बड़ी चिंता है। जब सब कुछ सही चल रहा हो तो सरकार को यथासंभव कम से कम हस्तक्षेप करना चाहिए, लेकिन जब हालात खराब हों, जैसा कि इस समय प्रतीत होता है तो यह सरकार का दायित्व बन जाता है कि वह अधिक अग्रसक्रिय बने।
उन्होंने कहा कि चिंता का सर्वाधिक तात्कालिक कारण विदेशी मुद्रा बाजार में हाल का उतार-चढ़ाव है। इसमें से अधिकांश अमरीका के फेडरल रिजर्व बैंक के क्वांटिटेटिव ईजिंग थर्ड (Quantitative Easing III)को वापस लेने की संभावना को देखते हुए विश्व के बाजारों की प्रतिक्रिया के रूप में है। विकासशील बाजारों से बड़ी मात्रा में राशि हटा ली गई और तुर्की, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका सहित अनेक विकासशील देशों की मुद्राओं की कीमतों में गिरावट आई। हमने भी रूपये के विनिमय मूल्य में उल्लेखनीय गिरावट देखी है, हमारे मामले में संभवत: यह स्थिति इस कारण बिगड़ गई कि अदायगी संतुलन में हमारा चालू खाता घाटा 2012-13 में सकल घरेलू उत्पाद के 4.7 प्रतिशत के कारण बढ़ा। उन्होंने आश्वासन दिया कि हम समस्या के मांग पक्ष और आपूर्ति पक्ष दोनों का समाधान करके चालू खाता घाटे को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने सोने की मांग को नियंत्रित करने के उपाय किए हैं और इसका कुछ प्रभाव पड़ा है। जून महीने में सोने के आयात में तेजी से कमी आई और आशा है कि अब यह सामान्य स्तर पर बना रहेगा। जहां तक मांग पक्ष का संबंध है, हमें व्यापार के प्रमुख घाटे के सबसे बड़े दो कारणों सोने और पैट्रोलियम उत्पादों की मांग को कम करने की आवश्यकता है। जहां तक पैट्रोलियम उत्पादों का संबंध है, हमने पिछले साल पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों को सही करने की प्रक्रिया शुरू की थी। डीजल की कीमतों में धीरे-धीरे हो रहे सुधार ने कम वसूलियों के अंतर को लगभग 13 रूपया प्रति लीटर से घटाकर 2 रूपये प्रति लीटर ला दिया है। दुर्भाग्य से इस उपलब्धि के कुछ अंश को रूपये के मूल्य में गिरावट ने निरस्त कर दिया है, तथापि कम वसूलियों को धीरे-धीरे समाप्त करने के लिए मूल्यों को समायोजित करने की हमारी नीति जारी है।
उन्होंने कहा कि जहां तक आपूर्ति का संबंध है हमें, अपने निर्यात को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, रूपये के मूल्य में गिरावट इसमें सहायक होगी।निस्संदेह निर्यात के आकार के रूपमें इसका लाभ मिलने में समय लगेगा, लेकिन जो अनुबंध अब से किए जाएंगे, उनका निश्चित रूप से लाभ होगा। हम भी लौह-अयस्क और अन्य अयस्कों के निर्यात में बाधाओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। इनके निर्यात में पिछले एक साल के दौरान विशेष गिरावट आई है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने रूपये के मूल्य में गिरावट को रोकने के कई उपाय किये हैं। शुरू में उसने डॉलरों को बाजार में फैंका। इससे किसी हद तक सहायता मिली। अभी हाल में उसने अल्पकालिक ब्याज दरें बढ़ाने के अन्यउपाए किए हैं। ये उपाय दीर्घकालिक ब्याज दरों में वृद्धि के संकेतक नहीं हैं। इनका उद्देश्य मुद्रा में वायदे के दबाव को रोकना है। एक बार इन अल्पकालिक दबावों के नियंत्रण में आने पर रिज़र्व बैंक इन उपायों को वापस लेने पर भी विचार कर सकता है।
प्रधानमंत्रीने कहा कि भविष्य की ओर देखें तो रूपये के मूल्य में गिरावट से भारतीय उद्योग को निर्यात बाजार में और हमारे बाजारों में अन्य देशों के आयात को कारगर रूप से पछाड़ने में सहायता मिलेगी। उद्योग अति प्रतिस्पर्धी बनने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है, क्योंकि हमें विश्वास है कि यह अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकता है। हमने आसियान देशों और कोरिया गणराज्य के साथ आर्थिक भागीदारी का व्यापक समझौता किया है। यूरोपीय संघ के साथ भी जल्दी ही इस प्रकार का समझौता होने की आशा है। आदर्श के तौर पर हमें अपने चालू खाता घाटे को अपने सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत तक लाना चाहिए। जाहिरा तौर पर यह काम एक वर्ष में करना संभव नहीं है, लेकिन उम्मीद है कि 2013-14 में चालू खाता घाटा पिछले साल रिकार्ड किया गया 4.7 प्रतिशत के स्तर से बहुत कम हो जायेगा। यह अगले वर्ष और कम होगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि चालू खाता घाटा समय के बीतने के साथ और कम हो इसके लिए हम मौद्रिक, आर्थिक और आपूर्ति संबंधी सभी नीतिगत उपायों को प्रयोग में लाएंगे।
उन्होंने कहा कि मध्यम स्तरीय संभावनाओं को देखते हुए हम ऐसा कर सकते हैं और हमें इस बारे में आशावादी होना चाहिए। हमारी अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांत सुदृढ़ और स्वस्थ हैं। हम सूक्ष्म मोर्चे पर असंतुलनों को ठीक करने के सभी संभव उपाय करते रहे हैं। आर्थिक घाटा जो अतीत में दिए गए आर्थिक प्रोत्साहनों का संचित प्रभाव है, बढ़ गया है। इसे कम करने की आवश्यकता है। वित्त मंत्री ने 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद के 4.8 प्रतिशत के वित्तीय घाटे को निशाना बनाया है। उन्होंनेवर्ष 2016-17 तक हर वर्ष लगभग आधा प्रतिशत के हिसाब से वित्तीय घाटे को कम करने की घोषणा की है। हमें निवेश की गति को पुनर्जीवित करने के उपाए करने की भी आवश्यकता है। पिछले कुछ महीनों के दौरान चिंता की मुख्य कारण यह रहीं है कि कई परियोजनाएं विभिन्न कारणों से रूकी हुई हैं। बिजली की उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है लेकिन कोयले की आपूर्ति एक समस्या बनी रही। ईंधन की आपूर्ति के समझौते किए जा रहे हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि 2015 तक चालू किए जाने वाले सभी संयंत्रों को कोयले की पर्याप्त आपूर्ति हो। इसमें घरेलू और आयातित कोयला शामिल है।