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Friday 6 September 2013 10:52:18 AM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उस्ताद जुबिन मेहता को सांस्कृतिक सद्भाव के लिए वर्ष 2013 के टैगोर पुरस्कार से सम्मानित किया। राष्ट्रपति भवन में आयोजित इस पुरस्कार समारोह में केंद्रीय संस्कृति मंत्री चंद्रेश कुमारी कटोच, गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी, संस्कृति सचिव रवींद्र सिंह तथा गणमान्य और प्रसिद्ध व्यक्ति मौजूद थे। इस पुरस्कार में एक करोड़ रूपए की धनराशि, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका के साथ-साथ एक आकर्षक पारंपरिक हस्तशिल्प, हथकरघा वस्तु प्रदान की जाती है।
इस वार्षिक पुरस्कार की स्थापना केंद्र सरकार ने गुरू रबींद्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती के स्मरणोत्सव के दौरान की गई थी। यह पुरस्कार सभी लोगों के लिए खुला है और इसका राष्ट्रीयता, जाति, धर्म या लिंग से कोई संबंध नहीं है। प्रथम टैगोर पुरस्कार वर्ष 2012 में भारत के सितार वादक पंडित रवि शंकर को दिया गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गठित एक उच्च स्तरीय जूरी, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अलतमश कबीर, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज एवं गोपाल कृष्ण गांधी शामिल थे।
जूरी ने 4 जुलाई 2013 को गहन विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मित से जुबिन मेहता का चयन सांस्कृतिक सद्भाव के लिए उनके उत्कृष्ट योगदान के वास्ते टैगोर पुरस्कार 2013 के लिए किया। सांस्कृतिक सद्भाव के लिए टैगोर पुरस्कार 2013 से सम्मानित किए जाने के समय जुबिन मेहता का जो प्रशस्ति पत्र पढ़ा गया, उसका मूल पाठ है-इस विभाजित विश्व में बहुत कम लोग हैं, जो राष्ट्र से ऊपर उठकर भी अपने देश से जुड़े रहते हैं और उन पर पूर्वाग्रह का कोई असर नहीं होता, साथ ही पीड़ितों के प्रति संवेदनशील होने के साथ-साथ अपने जीवन पर्यंत कार्यों के जरिए लोगों में खुशियां लाते हैं, जुबिन मेहता ऐसे ही एक शख्स हैं।
मूल पाठ में आगे कहा गया है कि यह उनकी विलक्षण उपलब्धि की कहानी है। उस समय से जब वे 60 वर्ष पहले भारत छोड़कर यूरोप में संगीत सीखने गए, तब ऐसा लगता था कि सफलता अपने आप उनको चुनती है। वियाना में एक विद्यार्थी के रूप में गौरव हासिल कर उन्होंने 25 वर्ष की आयु में विश्व में तीन प्रख्यात सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा-वियाना, बर्लिन और इस्राइल फिलहार्मोनिक आयोजित की। इसके बाद उनकी जल्दी-जल्दी नियुक्तियां की गईं, जिनमें मांट्रियल सिंफनी ऑर्केस्ट्रा (1961-67), लॉस एंजेल्स फिलहार्मोनिक ऑर्केस्ट्रा (1962-78) तथा न्यूयॉर्क फिलहार्मोनिक में संगीत निर्देशक के रूप में काम किया। बाद के दो पदों पर काम करते हुए उनकी नियुक्ति इस्राइल फिलहार्मोनिक ऑर्केस्ट्रा (1969) में संगीत सलाहकार तथा उसके बाद (1977) में संगीत निदेशक और अंत (1981) में जीवन के लिए संगीत निर्देशक की उपाधि दी गई। एक विदेशी नागरिक के लिए संगीत के इतिहास में इस तरह का सम्मान अद्वितीय है।
ज़ुबिन मेहता का असाधारण काम ऑर्केस्ट्रा म्यूजिक तक ही सीमित नहीं रहा है। मांट्रियल में 1963 में ओपेरा संचालन के रूप में करियर की शुरूआत करने वाले ज़ुबिन मेहता ने न्यूयॉर्क में मेट्रो पॉलिटन ओपेरा, विएना स्टेट ओपेरा, लंदन में रॉयल ओपेरा हाऊस, मिलान में ला स्काला और शिकागो एवं फ्लोरेंस में ओपेरा हाऊसेस की भी शुरूआत की। वे 1992 में रोम में पुकिनी का टोस्का के ऐतिहासिक प्रोडक्शन के संचालक थे। उन्होंने प्रतिष्ठित सल्ज़बर्ग उत्सव, म्यूनिख में बवेरियन स्टेट ओपेरा और अन्य स्थानों सहित वलेंशिया में प्लाऊ डी लिस आर्ट्स रेईना सोफिया का भी आयोजन किया। ज़ुबिन मेहता बवेरियन ओपेरा (1998-2006) के म्यूजिक डॉयरेक्टर भी थे और वेलेंशिया में वार्षिक उत्सव डेल मेडिटेरेनी के 2006 से अध्यक्ष हैं। ओपेरा की दुनिया में ऐसा कोई भारतीय नहीं है, जिसने ज़ुबिन मेहता की तरह उपब्लिधयां हासिल की हों।
जु़बिन मेहता बेहतरीन संगीतकार नहीं होते तो वे दुनिया भर में मानवतावादी मुद्दे को लेकर इस तरह व्यस्त नहीं होते। उन्होंने यह सब कुछ सिर्फ भाषणबाजी से नहीं, बल्कि संगीत की रचना के बल पर किया, जिसमें उन्हें महारथ हासिल है। युद्ध पीड़ितों के लिए धन जुटाने और युगोस्लावियाई युद्ध में मारे गये लोगों की याद में ज़ुबिन मेहता ने 1994 में सारायेवो के राष्ट्रीय पुस्तकालय के खंडहर पर सारायेवो सिंफनी ऑर्केस्ट्रा और गायक मंडलों के साथ हृदय को छू लेने वाली शोक-संगीत की धुन बजाई थी। सन् 1999 में उन्होंने सांकेतिक रूप से काफी अहम एक संगीत समारोह में मेहलर का पुनर्जागरण सिंफनी का प्रदर्शन किया था, जिसका आयोजन जर्मनी युद्धकाल के बुचेनवाल्ड ध्यान शिविर के पास हुआ था और इसमें बवेरियन स्टेट ऑर्केस्ट्रा और इज़राइल फिलहार्मोनिक ऑर्केस्ट्रा ने भी ज़ुबिन का साथ दिया था। भारत में त्सुनामी आने के एक साल बाद 2005 में चेन्नई में आयोजित एक यादगार संगीत समारोह में उन्होंने बवेरियन स्टेट ऑर्केस्ट्रा का संचालन किया था।
इजराइल में अरब जनसंख्या बहुल शहरों में उन्होंने नि:शुल्क संगीत समारोह का आयोजन किया और युवा अरब इजराइलियों को पश्चिमी क्लासिकल संगीत सिखाने वाले कार्यक्रम-बदलाव का नेतृत्व भी किया था। तेल अवीव में बुचमैन-मेहता म्यूजिक स्कूल और अपने गृह नगर मुंबई में मेहली मेहता म्यूजिक फाउंडेशन के जरिए ज़ुबिन मेहता युवा प्रतिभाओं को पश्चिमी क्लासिकल संगीत में शिक्षा देने में जी-जान से लगे हैं। ज़ुबिन मेहता अपनी कला में हमेशा ही प्रयोगधर्मी रहे हैं। उन्होंने एक साथ जहां सितारवादक रवि शंकर के साथ काम किया वहीं चीनी फिल्म निदेशक झांग यिमोउ के साथ पुकिनी ओपेरा के लिए काम किया। संगीत को लेकर ज़ुबिन का उत्साह किसी भी सीमा से परे रहा है।
ज़ुबिन मेहता के वैश्विक भाव में रविंद्रनाथ टैगोर की दुनिया को लेकर वह दृष्टि झलकती है, जिसमें विश्व टुकड़ों में या संकीर्ण घरेलू दीवारों में नहीं बंटा है। दुनिया को लेकर जु़बिन का नजरिया काफी व्यापक और सृजनात्मक था। उन्होंने आदमी से आदमी के बीच भेदभाव को कभी सही नहीं ठहराया और एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जो आजादी का स्वर्ग हो जहां लोगों के मन में भय नहीं हो और सिर सम्मान से ऊंचा हो।