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Wednesday 18 September 2013 08:03:43 AM
नई दिल्ली। 'गवर्नेंस और विकास' विषय पर जी-20 देशों के विचार विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि सम्मेलन छह मूलभूत उद्देश्यों-अंतर्राष्ट्रीय गवर्नेंस, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा का अभिरक्षण, दीर्घकालिक निवेश, वित्त, व्यापार और अभिरक्षा विभाग एवं विकास और रोज़गार जैसे व्यापक क्षेत्र में विश्व के सम्मुख अनेक चुनौतियां हैं और जी-20 में ये लगातार विचार-विमर्श के विषय रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन का आयोजन करने वालों ने विख्यात अकादमिक विद्वानों एवं जी-20 देशों के नीति निर्माताओं को इन नाजुक विषयों पर विचार-विमर्श करने और अपनी राय रखने के लिए एक मंच पर इकट्ठा किया है, जोकि एक बड़ा काम है।
पी चिदंबरम ने कहा कि वर्ष 2008 अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट का दौर रहा, जिसने जी-20 के देशों को अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक गवर्नेंस के केंद्र में लाकर खड़ा किया। जी-20 देशों की यह पूर्व भूमिका है कि इसने द्रुत, प्रभावी और समन्वित दृष्टिकोण, वित्तीय संकट के प्रति प्रकट किया, जिसके फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए अपने सदस्यों के बीच यह एक शीर्षस्थ मंच बन गया है। उन्होंने कहा कि वस्तुत: अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के इतिहास में जी-20 नेताओं की प्रक्रिया एक बहुत ही महत्वपूर्ण विकास है और इसने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक गवर्नेंस के संबंध में महत्वपूर्ण भौगोलिक भूमिका निभाई है, यह एक अलग ही शक्तिपुंज है, जहां उन्नत देश और आगे बढ़ रहे देश समान साझेदार के रूप में सामने आए हैं, जिन्होंने सहभागी विचार-विमर्श तथा कहीं प्रभावी भूमिका को वर्तमान जटिल अंतर्राष्ट्रीय चुनौती एवं अवसरों के सन्निकट रखा है।
वित्त मंत्री ने कहा कि यदि विगत रिकॉर्ड देखें तो पाएंगे कि जी-20 देश अब अस्थाई हल के स्थान पर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक गवर्नेंस के स्थायी संगठन के रूप में आगे बढ़ रहा है, जटिल मुद्दों की व्यापकता पर विचार करते हुए अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था द्वंद में है और इसका कमजोर निदान हो पाया है, सभी देशों के लिए महत्वपूर्ण है कि जी-20 लगातार सफल रहे, तथापि कुछ आंतरिक चुनौतियां हैं, जिससे जी-20 जूझ रहा है। जी-20 की स्थापना का एजेंडा अब तक प्रगतिशील देशों तक सीमित रहा। वित्तीय विनियमन तथा पारदर्शिता पर जोर दिए जाने से, चाहे यह कराधान का मामला हो अथवा उन्नत उद्योग पारदर्शिता पहल (ईआईटीआई) का मामला हो, चूंकि यह संकट मूलत: उन्नत देशों से शुरू हुआ है, इसलिए यह स्वाभाविक है कि इसके लिए उच्चतर पूंजीगत आवश्यकताओं तथा परिसंपत्ति गुणवत्ता पर बैंकिंग क्षेत्र के लिए बासल मानदंडों पर जोर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि वियुत्पन्न बाजार ने बहुविद कारक भावना के रूप में इन मानदंडों को स्वीकार किया है, तथापि कमजोर वैश्विक वसूली के संदर्भ में हमें सावधान रहना होगा कि विकासशील देशों के लिए यह प्रक्रिया दुर्भावनापूर्ण न बन जाए, वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सामने आ रहे बाजार महत्वपूर्ण हैं, अत: यह महत्वपूर्ण होगा कि जी-20 मंच विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को महत्व दिए जाने के मुद्दे पर समन्वय एवं सहयोग की दिशा में एक सशक्त पहल करने के तरीके खोजे, जी-20 का मंच वैश्विक गवर्नेंस के सशक्त गतिशील चक्र की बजाय एक कमजोर ऊर्जा साबित होगा। उन्होंने कहा कि मिशन के संबंध में एक बड़ी चुनौती विद्यमान है, अनेक विशेषज्ञों ने यह चिंता व्यक्त की है कि जी-20 एजेंडा काफी व्यापकता से विस्तार पा रहा है, जिसने अनेकानेक असंबद्ध मुद्दों को आत्मसात कर लिया है। जी-20 के प्रवर्ती अध्यक्षों की सोच की प्रक्रिया एजेंडे को विस्तार देने का लांछन लिए हुए है, जिसमें सिविल सोसायटी, अकादमी एवं अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों को महत्व दिया जा रहा है, जो अपने उद्देश्यों को आगे बढ़ा रहे हैं।
चिदंबरम ने कहा कि मैं ये नहीं कहता कि इस कार्यक्रम का विचार कोई बुरा ख्याल है, अपितु मेरा तो मानना है जी-20 अपने केंद्र बिंदु से शिथिल न पड़ जाए, वैश्विक गवर्नेंस में यह मंच एक सार्थक भूमिका निभाएगा, तीसरे वैश्विक गवर्नेंस के अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के सुधारों में जी-20 की शीर्षस्थ प्राथमिकता है, जी-20 ने आईएमएफ, विश्व बैंक तथा वित्तीय स्थायित्व बोर्ड (एफएसबी) के साथ-साथ अनेक मानक स्थापना निकायों (एसएसबी) को प्रश्रय दिया है, फिर भी अब तक हुई प्रगति काफी धीमी है और संतोष से परे है। उन्होंने कहा कि भारत और अन्य गतिशील अर्थव्यवस्थाएं अपेक्षा से नीचे हैं, विशेषकर वैश्विक वसूली और पुनर्संतुलन की प्रक्रिया में संरचनागत भूमिका के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है। जी-20 के नेताओं ने जी-20 वित्त मंत्रियों और सैंट्रल बैंक गवर्नरों को लाओस काबोस शिखर सम्मेलन 2012 में उन उपायों पर विचार करने को कहा था, जिनमें जी-20 संरचना में विकास को तेज करने तथा संरचनागत परियोजनाओं के लिए पर्याप्त निधि की उपलब्धता सुनिश्चित कर सके, जिसमें बहुविधि विकास बैंकों (एमडीबी) से वित्तीय एवं तकनीकी सहायता शामिल है, इस संबंध में वैश्विक बचत राशि को संरचनागत निवेश के लिए पुनर्संचालित करने की प्राथमिकता की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि जी-20 बैठकों के निर्णयों को तेजी से आगे बढ़ा दिया जाता है। सेंट पीटर्सबर्ग में नेताओं ने वचन दिया था कि वे भविष्य की वित्तीय नीतियों के निर्धारण तथा अन्य देशों के लिए इनके प्रबंधन में सहयोग करने की दिशा में सावधानी से आगे बढ़ेंगे। इस पृष्ठभूमि में दिसंबर 2013 में बाली में डब्ल्युटीओ की आगामी मंत्रिमंडलीय बैठक की पृष्ठभूमि में आयोजकों ने डब्ल्युटीओ के सदस्यों को आवश्यक लचीलापन अपनाने को कहा है, जिससे कि बाली बैठक के निष्कर्ष सफलता को प्राप्त हो सकें। आम राय और सहयोग की ऐसी अवधारणा विकसित एवं विकासशील दोनों देशों के हितों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।