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Monday 23 September 2013 09:45:45 AM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत महान विविधता वाला देश है, इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि जब हम राष्ट्रीय एकता जैसे नाजुक मुद्दों पर चर्चा करते हैं, तब उस समय विचारों की अनेकता प्रकट होनी चाहिए, यहां सबने सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का उत्पीड़न रोकने के लिए बेहतरीन कोशिश करने पर रजामंदी व्यक्त की, इस प्रक्रिया में हमें अपने संविधान में उल्लेखित मूल्यों का पालन करने के लिए मजबूती से प्रयास करना होगा।
उन्होंने कहा कि आज की चर्चा से यह साफ हो गया है कि सांप्रदायिक, अलगाववादी और फिरकापरस्त ताकतें हमारी राष्ट्रीय एकता, सौहार्द और समानता के लिए खतरा हैं तथा इनके साथ सख्ती से निपटना होगा। यह धारणा आज जो प्रस्ताव पारित हुआ है, उसमें भी नज़र आती है। सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को रोकने की प्रमुख जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन और पुलिस बल की है, यह काम न केवल प्रशासन और पुलिस का है, बल्कि पूरी जनता और खासतौर से राजनीति में हिस्सा लेने वाले लोगों का भी है, इसके अलावा यह काम सभी नागरिकों को मिल जुलकर करना होगा, यह सबकी सम्मिलित जिम्मेदारी है कि हम सक्रिय रूप से ऐसा शांतिपूर्ण महौल तैयार करें, ताकि सांप्रदायिक सौहार्द कायम रह सके।
उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम इस काम के प्रति अपने आपको एक बार फिर समर्पित करें और यह सुनिश्चित करें कि एकता परिषद में व्यक्त किये गये विचार सांप्रदायिक हालात को सुधारने, अनुसूचित जातियों एवं जन-जातियों की उत्पीड़न को रोकने, मैला उठाने की परंपरा को समाप्त करने और महिलाओं के प्रति हिंसा को रोकने के लिए कारगर हों, ऐसा करने पर ही हम धर्मनिरपेक्ष, समावेशी और बहुलता वाली भारत का निर्माण कर पाएंगे, जहां प्रत्येक नागरिक को समान अवसर प्राप्त होंगे। बैठक में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, मंत्रिमंडल के सदस्य, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता, राज्यों के मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य और विशिष्ट आमंत्रित मौजूद थे।
राष्ट्रीय एकता परिषद की इस 16वीं बैठक की शुरूआत में देश के भावी राजनीतिक परिणामों से डरे केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने में नाम लिए बगैर भारतीय जनता पार्टी पर हमला किया। उन्होंने कहा कि आज हमारे सामने चिंता के तीन महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जहां विभाजनकारी ताकतें हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की अखंडता के लिए खतरा बनी हुई हैं। उन्होंने बहुलवादी समाज के मूल्यों को बनाए रखने में एनआईसी की एक मंच के रूप में सराहना की। परिषद की 15वीं बैठक 10 सितंबर 2011 को हुई थी और दो वर्ष से अधिक समय के बाद फिर से यह बैठक हुई है।
सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि पहला मुद्दा महिला सुरक्षा से जुड़ा है। महिलाएं हमारी आबादी का आधा हिस्सा हैं और देश के विकास में समान भूमिका निभाती हैं, महिलाओं के प्रति जघन्य अपराध बढ़ते जा रहे हैं, भारत सरकार ने आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन करके महत्वपूर्ण कदम उठाया है, हमें इस बात पर चर्चा करनी होगी कि वे और कौन से कदम उठाएं जाएं, जिससे समाज में महिलाओं के प्रति भेदभाव और अवमानना के मूल कारणों से निपटा जा सके, हमें महिलाओं के प्रति समाज के रवैए में बदलाव लाने की जरूरत है।
दूसरा मुद्दा अनुसूचित जाति/जनजाति और उन पर होने वाले अत्याचार से जुड़ा है, एससी/एसटी को वर्षों से अपमान झेलना पड़ रहा है और वे अब भी हाशिए पर हैं, संविधान में सकारात्मक व्यवस्था के बावजूद, वे हमारे समाज से नहीं जुड़ पाए हैं। पिछले तीन वर्षों में एससी/एसटी पर हुए अत्याचारों पर मुकदमा चलाने के बारे में भी उदासीन रवैया सामने आया है, तरह-तरह के बहाने अपना कर उन्हें न्याय से वंचित रखा जाता है, यह मंच एससी/एसटी के विकास में आनेवाली अड़चनों के बारे में चर्चा करके उपाय सुझाए कि वे शेष समाज के साथ बराबरी क्यों नहीं कर पाते, उन्हें भी सम्मानित जीवन और राष्ट्रीय विकास में समान साझीदार बनने का हक है।
तीसरा मुद्दा सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता से संबंधित है। पिछले दो वर्षों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है, पिछले कुछ महीनों की घटनाओं से स्पष्ट है कि इनके पीछे बुरी मंशा है, ऐसा लगता है कि सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हुई हैं और वे समाज का ध्रुवीकरण करना चाहती हैं, मामूली सी घटना जो तिल के बराबर होती हैं, ताड़ बना दी जाती हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि लोगों का एक छोटा समूह हमारे बीच मतभेद पैदा कर रहा है, हमें इनका मुकाबला करना है, हम मंच से आग्रह करेंगे कि इन्हें रोकने के लिए उपाय सुझाएं। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक असद्भाव, लिंग असमानता और समाज के कमजोर तबकों पर हमले के बारे में मंच से महत्वपूर्ण सुझाव आएंगे, जिससे इन मुद्दों से निपटने में मदद मिलेगी।