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Monday 30 September 2013 08:38:53 AM
मुंबई। भारतीय उद्योग जगत को नए भूमि अधिग्रहण कानून पर शक और एक तरह से एतराज है और वह इसे अपना विरोधी मान रहा है, जबकि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश का कहना है कि नया भूमि अधिग्रहण कानून उद्योग विरोधी नहीं है, बल्कि जनोन्मुखी है। जयराम रमेश ने भारतीय उद्योग की आशंकाओं का निराकरण करते हुए कहा है कि नया भूमि अधिग्रहण कानून परियोजनाओं को आर्थिक दृष्टि से अव्यवहार्य बनाएगा। आज मुंबई में एक संवाददाता सम्मेलन में रमेश ने कहा कि नया अधिनियम केवल उस भूमि के सिलसिले में लागू होगा, जिसका अधिग्रहण केंद्र और राज्य सरकारों के किसी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए किया जा रहा हो, नया कानून भूमि की निजी खरीद-फरोख्त पर कोई पाबंदी नहीं लगाता, उद्योग जगत को सरकार के भूमि अधिग्रहण से बाहर निकल कर देखना होगा और भूमि खरीद के अवसर तलाश करने होंगे। जयराम रमेश ने नए कानून के बेहतर कार्यान्वयन में राज्य सरकारों से सहयोग की अपील की।
उन्होंने सरकार का यह दृष्टिकोण दोहराया कि भूमि अधिग्रहण अंतिम उपाय के रूप में ही किया जाएगा और उनका मंत्रालय देश में भूमि रिकार्ड प्रबंधन में सुधार की दिशा में काम कर रहा है, ताकि जमीन की बिक्री में पारदर्शिता को प्रोत्साहित किया जा सके। उन्होंने बताया कि 1000 करोड़ रुपये की लागत से राष्ट्रीय भूमि रिकार्ड आधुनिकी कार्यक्रम लागू किया जा रहा है, जिसमें भूमि रिकार्ड के कंप्यूटरीकरण, नक्शों के डिजिटलीकरणऔर पुनः सर्वेक्षण पर बल दिया जा रहा है, महाराष्ट्र ने इस दिशा में प्रगति की है, लेकिन उसे अभी हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक और त्रिपुरा की बराबरी करनी है। रमेश ने कहा कि पंजीकरण अधिनियम 1908 में संशोधन का विधेयक संसद में पेश किया गया है, जिसके पारित हो जाने के बाद भूमि की बिक्री और पंजीकरण संबंधी सभी रिकार्डों की जानकारी सार्वजनिक की जा सकेगी। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता बढ़ने से कारपोरेट क्षेत्र के लिए भूमि खरीदना आसान हो जाएगा।
विशेष आर्थिक क्षेत्रों-सेज के बारे में ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा कि सेज के लिए भविष्य में अधिग्रहण की जानी वाली समस्त भूमि नए अधिनियम के अनुसार खरीदी जाएगी, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि अधिनियम में फिलहाल किसी सेज को विमुक्त करने संबंधी कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने यह बात दोहराई कि 119 वर्ष पुराने कानून का स्थान लेने वाला नया कानून ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा कि 1894 का अधिनियम गैर लोकतांत्रित था, क्योंकि उसमें जिला कलेक्टरों को विवेकाधिकार के व्यापक अधिकार दिए गए थे, इसकी तुलना में नया कानून मानवीय है, क्योंकि इसमें पुनर्वास और पुनर्स्थापन पर बल दिया गया है।
उन्होंने कहा कि यदि कोई कानून जनजातीय और सीमांत किसानों के कल्याण को प्रोत्साहित करता है, तो वह निश्चित रूप से राष्ट्रीय हित में है। पुराने कानून के मुताबिक सरकारें सस्ते दाम पर जमीन खरीद कर बाजार भाव से व्यापारिक घरानों को बेचती थीं, पुराने कानून में अनिवार्यता का निर्धारण कलेक्टर करता था, जबकि नए कानून में कलेक्टरों के अधिकारों को काफी कम किया गया है, जो अक्सर राज्य सरकारों के निर्देश पर काम करते थे। उन्होंने कहा कि नए कानून को संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है और राज्य सरकारें केवल किसानों के हित में मुआवजा बढ़ाने और अन्य प्रावधान कर सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नए कानून को 1 जनवरी 2014 अथवा 1 अप्रैल 2014 को अधिसूचित किया जाएगा।