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Friday 15 November 2013 03:08:07 AM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने अंतर्राष्ट्रीय कानून की एशियन सोसायटी के चौथे द्विवार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय कानून किसी कार्यपालिका या विधायी शाखा या किसी केंद्रीय सत्ता की कार्रवाई से नहीं, बल्कि संप्रभु देशों के हस्ताक्षरित समझौतों और संस्थागत कानून से उत्पन्न हुआ है। यह प्रवर्तन के मामले में अलग है, जो केंद्र सरकार की शक्ति और अधिकार पर निर्भर न करके पारस्परिकता, सामूहिक कार्रवाई और अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर निर्भर करता है। ‘21वीं सदी में एशिया और अंतर्राष्ट्रीय कानून: नये क्षितिज’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय कानून और राष्ट्रीय संप्रभुता के बीच संघर्ष जोरदार बहस का विषय है तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानकों के आलोक में राज्य के घरेलू कार्यों का मूल्यांकन करने की प्रवृति बढ़ रही है। आम विश्वास है कि राष्ट्र-राज्य अंतर्राष्ट्रीय मामलों की प्राथमिक इकाई है और केवल राज्यों को स्वेच्छा से प्रतिबद्धताओं में शामिल होने का चयन करना है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि 20वीं सदी की दूसरी छमाही में अंतर्राष्ट्रीय कानून ने स्वयं मानव अधिकार, नरसंहार, मानवता के विरूद्ध अपराध और जातीय भेदभाव से संबंधित मामलों का निपटान किया है, इसने उपनिवेशवाद के विरूद्ध लोगों के आत्म निर्णय, मुक्ति आंदोलनों की वैधता और नए स्वतंत्र देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर स्थाई संप्रभुता के आत्म निर्णय के अधिकार के सवालों का निपटान किया है। उपराष्ट्रपति ने मत व्यक्त किया कि अंतर्राष्ट्रीय कानून आवश्यक रूप से राष्ट्रों, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच राजनीतिक और आर्थिक संबंधों से संबंधित हैं। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक के बाद से 21वीं सदी के पहले दशक में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में ठोस और संस्थागत दोनों ही रूप में महत्वपूर्ण विकास देखा गया है।
मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि आज अंतर्राष्ट्रीय कानून व्यापार और व्यवसाय, राष्ट्र से बाहर होने वाले अपराधों, मानव तस्करी, जलवायु परिवर्तन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, साइबर अपराध, अत्याचार, बौद्धिक संपदा अधिकार, बाल अधिकार, महिलाओं के अधिकारों, विकलांगों के अधिकारों, चोरी और अन्य मामलों से निपटते हुए लाखों लोगों के जीवन को छूते हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विकरण से परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय कानून में नये आयाम जुड़ गये हैं, इस कारण भारत और अन्य एशियाई देश यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि संप्रभु देशों के मध्य संबंध अंतर्राष्ट्रीय कानून से नियंत्रित हों न कि शक्ति का प्रयोग करके, इसलिए आवश्यक राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए इन कानूनों के लिए देशों की सक्रिय भागीदारी बढ़ रही है।