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Friday 13 December 2013 05:48:21 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत सरकार तथा राज्य सरकारों के मंत्रियों के लिए आचार संहिता में संशोधन को मंजूरी दे दी है। अब आचार संहिता में एक नया अनुच्छेद शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है, जो इस प्रकार है-पदभार संभालने के पश्चात और जब तक भी मंत्री अपने पद पर आसीन रहें, उन्हें-(एफ) लोक सेवा की राजनीतिक निष्पक्षता बरकरार रखनी होगी और वे लोक सेवकों को ऐसा कोई भी कार्य करने को नहीं कहेंगे, जो उनके कर्तव्य तथा उत्तरदायित्वों के विपरीत हो।
केंद्र सरकार के मंत्रियों के संबंध में मंत्रियों के लिए संशोधित आचार संहिता जारी करने की तिथि से ही तत्काल प्रभाव से लागू हो जाएगी। राज्य सरकार तथा केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों के संबंध में संशोधित आचार संहिता लागू करवाने के लिए उसे मुख्यमंत्रियों को भेजा जाएगा। यह नहीं बताया गया है कि इसका उलंघन पाए जाने पर माननीय मंत्री पर किस प्रकार की कार्रवाई होगी। लोक आचरण के सिद्धांत यूं तो ऐसे या अन्य पदों पर विराजमान सभी लोक सेवकों पर नैतिक जिम्मेदारी के रूप में पहले से ही लागू हैं, आचार संहिता में इस नए अनुच्छेद के जुड़ने के बाद देखना होगा कि मंत्रियों में इसका कितना ध्यान रखा जाएगा।
देश में इस समय उच्च पदों पर बैठे महानुभावों के द्वारा ही उनके पदों के दुरूपयोग एवं उच्च नैतिक मानदंडों की अवहेलना के बेतहाशा मामले ज्यादा ही प्रकाश में आ रहे हैं। जनसामान्य में इनको लेकर एक निराशा का वातावरण है। केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों को दिलाई जाने वाली शपथ ही अपने में सारा संदेश देती है, तथापि उसका भी अवमूल्यन सामान्य सी बात हो गई है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण में उनके एक वरिष्ठ मंत्री मोहम्मद आजम खॉ को उनके मंत्री पद की शपथ इसलिए दो बार दिलाई गई, क्योंकि वे त्रुटिपूर्ण शपथ ले रहे थे,जोकि संविधान को नामंजूर थी। यही नहीं आजम खॉ सरकार में रह कर भी अपनी सरकार के विरोध में अक्सर अस्वीकार्य आचरण करते हैं। यह तो मात्र एक उदाहरण है। कुछ जजों ने भी इसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का कार्य किया है।