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Sunday 5 January 2014 09:53:47 PM
श्रीहरिकोटा। भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान ने श्रीहरिकोटा से देश का सबसे बड़ा रॉकेट जीएसएलवी सफलता पूर्वक लांच कर दिया। इसका पहला और दूसरा चरण कामयाब रहा। जीएसएलवी में स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल हो रहा है। इसरो और उसके विज्ञानियों को देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने बधाई दी है। इसरो के प्रवक्ता देवी प्रसाद कार्णिक ने बताया कि रविवार को शाम 4 बजकर 18 मिनट पर जीएसएलवी-डी5 के लिए उलटी गिनती शुरू हुई। योजना के अनुसार 1,980 किलोग्राम का जीसेट-14 संचार उपग्रह ले जाने वाला यह व्हीकल बिल्कुल सही ढंग से काम कर रहा है। ध्यान रहे कि स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ जीएसएलवी-डी 5 अभियान के पहले प्रयास को पिछले साल 19 अगस्त को अंतिम समय में रोक दिया गया था, क्योंकि इसके दूसरे चरण में ईंधन रिसाव पाया गया था। एल्यूमीनियम से बने टैंक एफ्नर 7020 को ईंधन रिसाव की वजह बताया गया था, जिसमें समय के साथ दरारें पड़ जाती थीं। पहले, दूसरे और तीसरे चरण में जीएसएलवी को अपने यात्री अंतरिक्षयान को ठोस, धरती पर संग्रह योग्य द्रव्य और क्रायोजेनिक प्रणोदकों के मिश्रण के साथ स्थापित करना है।
जियोस्टेशनरी सेटेलाइट लांच व्हीकल अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है, जो उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा मल्टी स्टेज रॉकेट है, जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित करता है। यह रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करता है, इसके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है। रॉकेट की ये आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरी कर सकता है, लिहाजा बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है। अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं, इसलिए विश्वभर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित किलोमीटर की ऊंचाई पर कक्षा में स्थापित कर देता है, यही इसकी की प्रमुख विशेषता है। क्रायोजेनिक का पहला प्रयास 15 अप्रैल 2010 को किया गया था, मगर वो असफल रहा था। जीएसएलवी से पांच हजार किलोग्राम का उपग्रह पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जा सकता है।
जीएसएलवी रॉकेट में प्रयुक्त होने वाले द्रव्य ईंधन चालित इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और लिक्विफाइड गैसों को ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। सॉलिड ईंधन की अपेक्षा यह कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होते हैं और रॉकेट को बूस्ट करने में मददगार साबित होते हैं, विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक आवश्यक होती है। जीएसएलवी अपने डिजाइन और सुविधाओं में पीएसएलवी से बेहतर है। ये तीन श्रेणी वाला प्रक्षेपण यान है, जिसमें पहला सॉलिड और लिक्विड प्रापेल्ड तथा तीसरा क्रायोजेनिक आधारित होता है। पहली और दूसरी श्रेणी पीएसएलवी से ली गई है। इसरो ने स्वदेशी तकनीक से निर्मित क्रायोजेनिक इंजन का आविष्कार किया है। जियोसिंक्रोनस या जियोस्टेशनरी उपग्रह पृथ्वी की भू-मध्य रेखा के ठीक ऊपर स्थित होते हैं और वह पृथ्वी की गति के अनुसार ही उसके साथ-साथ घूमते हैं। इस तरह जहां एक ओर ध्रुवीय उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है, वहीं भू-स्थिर उपग्रह अपने नाम के अनुसार पृथ्वी की कक्षा में एक ही स्थान पर स्थित रहता है। यह कक्षा पृथ्वी की सतह से 35,786 किलोमीटर ऊपर होती है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जीएसएलवी-डी 5 के सफल प्रक्षेपण पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को बधाई दी है। उन्होंने इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर बताया है। भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान जीएसएलवी-डी 5 का श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापर्वूक प्रक्षेपण किया गया। भारत के उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने जीएसएलवी-डी 5 के सफल प्रक्षेपण पर इसरो और जीएसएलवी परियोजना के सभी सदस्यों को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि देश में बने क्रायोजनिक इंजन का इस्तेमाल करते हुए किए गए इस प्रक्षेपण से भारत चुने हुए देशों के समूह में शामिल हो गया है, जिन्होंने अत्याधुनिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता हासिल कर ली है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र को वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की योग्यता, कठिन परिश्रम और प्रतिबद्धता पर गर्व है।