स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Wednesday 22 January 2014 08:04:55 PM
नई दिल्ली। भारत में स्कूलों के बुनियादी ढांचे में कुछ हुआ सुधार है। भारत सरकार का दावा है कि देश में प्राथमिक शिक्षा के लिए दाखिला लेने वालों की संख्या बढ़ रही है और यह प्राईमरी शिक्षा के लिए 13.47 करोड़ और उच्च प्राथमिक स्तर पर 6.49 करोड़ पर पहुंच चुकी है, जिसमें लड़कियों की संख्या क्रमश: 48% और 49% है। स्कूलों में दाखिला लेने वाले अनुसूचित जाति, जनजाति और मुस्लिम बच्चों की संख्या भी काफी उत्साहवर्द्धक है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार 2012-13 तक 88% स्कूलों में प्रबंध समितियां थीं। इन समितियों के 75% सदस्य स्कूल में पढ़ने वालों बच्चों के माता-पिता हैं और कम से कम 50% महिलाएं हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर गुरू-शिष्य अनुपात में जबरदस्त सुधार हुआ है। स्कूलों के बुनियादी ढांचे में भी सुधार देखा जा रहा है। देश में प्राईमरी शिक्षा (सरकारी और गैर सहायता प्राप्त) देने वाले स्कूलों की संख्या 11,53,472 है। छात्र-कक्षा अनुपात 29% छात्र प्रति कक्षा है। करीब 95% स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध कराई गई है और लड़कियों के लिए अलग शौचालय 2012-13 में बढ़कर 69% हो गए जो 2009-10 में 59% थे। चंडीगढ़, दिल्ली, दमन और दीव, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, लक्षद्वीप, पंजाब, पुडुचेरी में सभी स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा प्रदान कर दी गई है। इस अधिनियम के अंतर्गत स्कूलों में काम करने के घंटे और निर्देश देने के घंटे तय किए गए हैं। प्रत्येक राज्य ने इस संबंध में अपनी-अपनी अधिसूचना जारी की है।
बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम एक अप्रैल 2010 को लागू किया गया था। इस अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न नियमों मानकों को हासिल करने के लिए तीन वर्ष की समय-सीमा तय की गई। इसके अमल में आने के बाद से मानव-संसाधन विकास मंत्रालय का स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग हर वर्ष राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों की प्रगति की जानकारी लेता है। हाल ही में मंत्रालय ने आरटीई तीसरा वर्ष प्रकाशित किया है, जो 2012-13 के डीआईएसई आंकड़ों पर आधारित है। इसमें प्रत्येक राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों के दाखिले, अध्यापकों की उपलब्धता और बुनियादी ढांचे के संकेतकों को शामिल किया गया है। इस प्रकाशन में पिछले तीन वर्षों में राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में हुई प्रगति की जानकारी दी गई है। राज्यवार आंकड़े एकत्र करने से प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने और आगे योजना बनाने में मदद मिलती है।