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Sunday 16 February 2014 11:53:07 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति भवन में आयोजित राज्यपालों के दो दिवसीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि हम राज्यपालों की सलाह को महत्व देते हैं, हमारा मानना है कि व्यापक ज्ञान और अनुभव रखने वाले पुरुष एवं महिलाएं होने के अलावा, राज्यपाल ऐसी बेजोड़ स्थिति में भी हैं, जहां से वे निकट एवं तटस्थ होकर राज्य सरकारों के कार्यों पर निगरानी रख सकते हैं और उनका विश्लेषण कर सकते हैं। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री की कैबिनेट के 8 सहयोगियों ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं, जिनमें अर्थव्यवस्था की स्थिति, राज्यपालों की भूमिका, सुरक्षा और विदेशों के साथ संबंध जैसे मुद्दे शामिल थे। इन मुद्दों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ये सम्मेलन के प्रतिभागी राज्यपालों के लिए मामलों को बेहतर ढंग से समझने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर राष्ट्रीय संदर्भ विकसित करने में भी सहायक होने चाहिएं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अनेक वर्षों तक तीव्र वृद्धि के बाद देश की अर्थव्यवस्था में पिछले दो वर्षों में कमी आई है, रुपया कमजोर होने और अन्य घरेलू तथा विदेशी घटकों का भी अर्थव्यवस्था की स्थिति पर विपरीत असर पड़ा है, किंतु भविष्य के प्रति आशावान होने के हमारे पास कई कारण हैं, सरकार के अनेक उपायों के कारण आर्थिक वृद्धि बहाल होने के संकेत हैं, इन प्रयासों में बेहतर मानसून भी सहायक रहा है, अंतिम आंकड़े जारी होने के समय चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत से अधिक रहेगी। उन्होंने कहा कि जहां तक आंतरिक सुरक्षा का प्रश्न है तो जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर और वामपंथी उग्रवाद से पीड़ित क्षेत्रों सहित वर्ष 2013 के दौरान देश में समग्र स्थिति में सुधार आया है, हिंसा का रास्ता छोड़कर हमारे संविधान के दायरे के भीतर समस्याओं का समाधान निकालने के लिए बातचीत के इच्छुक गुटों के साथ बातचीत करने की सरकार की नीति पूर्वोत्तर में कारगर सिद्ध हुई है। वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ दो तरफा नीति अपनाने का हमारा दृष्टिकोण भलीभूत हुआ है और उसके उत्साहजनक परिणाम दिखाई दिए हैं, इस नीति में लंबे और स्थाई अभियान चलाना और साथ ही वामपंथी उग्रवाद से संबंधित विकास एवं शासन के मुद्दों पर ध्यान देना शामिल है। उन्होंने कहा कि हमने वामपंथी उग्रवाद को कम करने और उससे लड़ने के लिए जो उपाय किए हैं, उनमें वामपंथी उग्रवाद से सर्वाधिक प्रभावित, चुने हुए और पिछड़े 88 जिलों के लिए समेकित कार्य योजना बनाना, सड़क और दूरसंचार संपर्क में सुधार, अनुसूचित जनजाति और अन्य वनवासी अधिनियम के अंतर्गत वन अधिकार प्रदान करने की प्रक्रिया में तेजी लाना, पुलिस स्टेशनों को सुदृढ़ करना, विशेषज्ञ बलों का निर्माण और अतिरिक्त केंद्रीय बलों की तैनाती शामिल हैं।
मनमोहन सिंह ने दावा किया कि हमारी सरकार ने आतंकवाद से निपटने के लिए भी अनेक उपाय किए हैं, इनमें अवैध गतिविधियां निवारण अधिनियम, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की संख्या में वृद्धि, बहु एजेंसी सेंटर (एमएसी) और अनुषंगी बहु एजेंसी सेंटर (एसएमएसी) को सुदृढ़ बनाना, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के चार नए केंद्र स्थापित करना, तटीय सुरक्षा में वृद्धि करना, राष्ट्रीय जांच एजेंसी की स्थापना और नैटग्रिड का निर्माण शामिल है, वर्ष 2013 के दौरान उग्रवादी हिंसा में कमी आई है, पिछले वर्ष आतंकवादी ताकतों के खिलाफ लड़ने में जबरदस्त सफलता प्राप्त हुई और कुछ कुख्यात उग्रवादियों को गिरफ्तार किया जा सका। उन्होंने कहा कि हम सब के लिए चिंता का विषय हैं पिछले वर्ष, विशेष कर कुछ राज्यों में सांप्रदायिक गड़बड़ी की घटनाओं में बढ़ोत्तरी। सभी राज्य सरकारों को इस स्थिति में बदलाव के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे, राज्य सरकारों और केंद्र सरकार दोनों के लिए यह अनिवार्य है कि वे सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी उपाय करें, यह सुनिश्चित करना भी अनिवार्य है कि दोषी व्यक्तियों को अवश्य दंड मिले और सांप्रदायिक गड़बड़ी की घटनाएं खत्म होने पर उनके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों का पता लगाया जाए, राज्यपालों को सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने में विशेष रुचि लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं विशेष रूप से चिंता की बात है, राज्यपाल राज्य सरकारों पर दबाव डालें कि वे महिलाओं से संबंधित मुद्दों के समाधान पर अधिक ध्यान दें।
प्रधानमंत्री ने देश के कुछ भागों में अन्य भागों से आने वाले लोगों के प्रति बढ़ती अहसहिष्णुता और पक्षपात की घटनाओं से संबद्ध दिल्ली की घटना का भी प्रमुखता से जिक्र किया, जिसमें देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र के एक विद्यार्थी को निरर्थक हिंसा का शिकार होना पड़ा। उन्होंने कहा कि किसी भी सभ्य समाज में ऐसी घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं और जो लोग ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं, उनके साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए, यह जरूरी है कि हम यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करें कि देश के सभी भागों में नागरिक अपने को सुरक्षित महसूस करें, चाहे वे किसी भी क्षेत्र से संबद्ध हों। उन्होंने बताया कि पूर्वोत्तर के भाई-बहनों को समस्याओं का सामना करने के विशेष मुद्दे पर उनकी सरकार ने हाल ही में एक समिति बनाई है, जो इन मुद्दों की जांच करेगी और सुधार के उपाय सुझाएगी। उन्होंने कहा कि जहां तक बाहरी सुरक्षा का प्रश्न है, हम अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के संबंध बनाए रखने के प्रति वचनबद्ध हैं, किंतु हमें अपनी सुरक्षा के बाहरी आयामों की जानकारी है और ऐसे किसी भी खतरे का मुकाबला करने के प्रति हम संकल्पबद्ध हैं, जम्मू कश्मीर में इस वर्ष घुसपैठ की घटनाओं में मामूली वृद्धि के बावजूद हमारे सशस्त्र बल सतर्क रहे हैं और उन्होंने तत्काल कार्रवाई करके यह सुनिश्चित किया है कि घुसपैठ की घटनाएं पिछले वर्षों की तुलना में कम रहें, हम सीमावर्ती क्षेत्रों में महत्वपूर्ण ढांचागत सुविधाएं विकसित करने के अनेक उपाय भी कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे देश के पिछड़े और गरीब जिलों में गरीबी और अभाव, असंतोष के प्रमुख कारण हैं, इनमें से काफी जिले अनुसूचित क्षेत्रों में हैं, इसलिए हमें ऐसे इलाकों और देश के अधिक विकसित भागों में रहने वाले लोगों के बीच बढ़ती सामाजिक, आमदनी और विकास की असमानताओं का तुरंत समाधान करने की जरूरत है, काम-काज की संवैधानिक स्कीम के अंतर्गत राज्यपालों को अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन और तेजी से विकास की विशेष जिम्मेदारी दी गई है, देश के जन-जातीय लोगों की काफी पुरानी मांग और अपेक्षाएं पूरी करने में संवैधानिक व्यवस्था की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा बल दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होगा। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर के छठी अनुसूची के क्षेत्रों में नियमित चुनाव और कोष तथा काम-काज के अधिक विकेंद्रीकरण से जन-जातीय परिषदों को मजबूत किया गया है। पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में पंचायत (अनुसूची क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम (पीईएसए) से जनता को स्थानीय शासन और सामुदायिक संसाधनों पर नियंत्रण में अधिक भागीदारी मिली है, अनुसूचित जनजाति और अन्य वन निवासियों (वन अधिकार मान्यता) अधिनियम के अंतर्गत वन अधिकारों को शामिल किए जाने से जन-जातियों को काफी सशक्त बनाया गया है, छठे अनुसूचित क्षेत्रों के विकास के संदर्भ में केंद्र सरकार पूर्वोत्तर पर पूरा ध्यान केंद्रित कर रही है, पूर्वोत्तर राज्यों के काफी समय से लंबित मुद्दों के जल्द समाधान के तौर-तरीके तय करने के लिए अधिकार प्राप्त मंत्री समूह और सचिवों की समिति का गठन किया गया है, योजना आयोग, पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास का मंत्रालय और पूर्वोत्तर परिषद के बीच तालमेल में सुधार लाने के लिए राज्यपालों के सुझावों पर भी गंभीरतापूर्वक जांच की जाएंगी।
सम्मेलन की कार्यसूची में एक मुद्दा आपदा प्रबंधन का था, जिसपर उन्होंने कहा कि इस दिशा में उठाए गए कदमों में राष्ट्रीय आपदा प्राधिकरण और अधिकांश राज्यों में राज्य और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन, राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान और राष्ट्रीय आपदा त्वरित कार्य बल और कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में राज्य आपदा त्वरित कार्य बल का गठन शामिल है। उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि हम अपनी आपदा प्रबंधन क्षमताओं में और सुधार लाएं। सम्मेलन में उच्च शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा की गई, जिसमें राष्ट्रपति ने विशेष रूचि ली। इस विषय पर हाल ही में राष्ट्रपति की कुलपतियों के साथ बैठक की भी चर्चा की गई। प्रधानमंत्री का कहना था कि पिछले 10 वर्षों मे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। उन्होंने राज्यपालों से अनुरोध किया कि वे अल्पसंख्यक समुदायों और समाज के अन्य उपेक्षित वर्गों की महिलाओं और बच्चों को शिक्षित करने में विशेष रूचि लें। प्रधानमंत्री ने भारत के विदेशों के साथ संबंधों पर कहा कि तेजी से एक-दूसरे पर निर्भर और समग्र होते विश्व के विदेशी वातावरण का भारत की सुरक्षा और आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण असर पड़ता है, पड़ौस के घटनाक्रम हमारे लिए खास तौर पर महत्व रखते हैं और ये घटनाक्रम सीमांत क्षेत्रों के राज्यों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि हमारे लिए विदेशी वातावरण जटिल है और इसमें आर्थिक अनिश्चितताएं, राजनीतिक अस्थिरताएं और सुरक्षा की चुनौतियां शामिल हैं, हमने अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में अपनी आवाज़ को कारगर बनाया है, विश्व के सभी प्रमुख देशों के साथ सशक्त सामरिक भागीदारी बनाई है। सरकार की महत्वूपर्ण उपलब्धियों में वैश्विक परमाणु व्यवस्था में समायोजन, उच्च प्रौद्योगिकी तक बढ़ती हमारी पहुंच, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधरे स्वरूप में भारत की स्थाई सदस्यता के लिए व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समर्थन, नई आर्थिक साझेदारी के समझौते और व्यापार तथा जलवायु परिवर्तन की वार्ताओं में देश की हितों की रक्षा प्रमुख हैं।