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'एहसास-ए-मुहब्बत' का विमोचन

कृति में परिवार, समाज व मानवीय त्रासदी का दर्द

उच्चकोटि के संस्कारों की समाज को जरूरत-महापौर

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Sunday 22 June 2014 10:57:07 PM

lucknow mayor dr. dinesh sharma delivers 'ehsas-e-muhabbat'

लखनऊ। यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में नवोदित रचनाकार आयशा सिद्दीक़ी ‘तमन्ना आज़ाद’ की पहली कृति ‘एहसास-ए-मुहब्बत’ का लखनऊ के महापौर डॉ दिनेश शर्मा ने विमाचन किया। तड़क-भड़क से दूर बड़ा प्रेरक और भावना प्रधान था यह कार्यक्रम। दीपदान, माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण, वाणी वंदना और मंचस्थ अतिथियों का पुष्प गुच्छ भेंट करके उनके सत्कार से प्रारंभ हुए इस कार्यक्रम में महापौर डॉ दिनेश शर्मा ने इस काव्य संग्रह को उन रचनाकारों के लिए अनुकरणीय बताया, जो इस क्षेत्र में अपना नाम रौशन करने की इच्छा रखते हैं और आयशा सिद्दीक़ी की तरह अपने दिल में समाज के सभी वर्गों के लिए ईमानदारी से समरसतापूर्ण वातावरण विकसित करने का जुनून रखते हैं। महापौर ने काव्य संग्रह में ‌हिंदी और उर्दू के समावेश को शाइरी में एक नया और पसंदीदा प्रयोग बताया और उम्मीद जाहिर की कि इसमें आगे चलकर और निखार आएगा।
महापौर डॉ दिनेश शर्मा ने कहा कि ‘एहसास-ए-मुहब्बत’ संग्रह पर शाइरा को उसके परिवार से मिले उच्चकोटि के संस्कारों का प्रभाव है, जिसने माता-पिता, परिवार और सामाजिक जीवन की फिक्र करते हुए संघर्ष और कठिन परिस्थितियों को अपनी रचना से कहीं नज़्म तो कहीं शाइरी से पेश किया है। उन्होंने कहा कि माता-पिता और परिवार की चिंता पश्चिम देशों में देखने को कहीं नहीं मिलती, यह केवल भारतीय संस्कृति है, जहां माता-पिता, परिवार और सामाजिक रिश्तों की एक श्रंखला है, जिसे आयशा सिद्दीक़ी ने अपनी कलम से मजबूती प्रदान करने का कार्य किया है, आयशा सिद्दीक़ी ने दो भाषाओं हिंदी-उर्दू को भी परिवार की तरह एकजुट रखने का उदाहरण पेश किया है। महापौर ने ‘एहसास-ए-मुहब्बत’ की कुछ रचनाओं के कुछ अंशों को उद्धृत किया और माँ का जिक्र आने पर कहा कि उच्चकोटि के संस्कारों की समाज को बहुत जरूरत है। उन्होंने ऐसी रचनाओं के लेखन को प्रोत्साहित करने का आह्वान किया।
निकुंज मिश्र ‘किश्वर’ ने इस कृति को नई करवट की शायरी बताया और कहा कि इस शाइरी ने रवायती बंधनों को तोड़कर अपनी अलग राह बनाई है। उन्होंने कहा कि अरब के शहर अबुधाबी में पैदा हुईं आयशा सिद्दीक़ी की शाइरी पर लखनऊ और उसकी तहजीब का पूरा प्रभाव है, उन्होंने इसमें विभिन्न रंग भरे हैं, लेकिन इस कृति में जिस रंग की छटा नज़र आती है वो है-मुहब्बत, प्यार, इश्क। निकुंज मिश्र ‘किश्वर’ ने कहा कि शाइरा ने जिस तरह अपनी शाइरी में उत्तराखंड की केदारनाथ त्रासदी और उसमें प्राण गंवाने वालों के लिए जो मार्मिक ज़ज्बात शामिल किए हैं, वो उन्होंने अभी तक की किसी भी शाइरी में नहीं पाए, जिससे आयशा सिद्दीक़ी के पारिवारिक, सामाजिक और मानवीय सरोकारों से गहरे संबंधों का पता चलता है जो इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि सामाजिक बुराईयों और रूढ़िवादी जीवन शैली से निजात लेने वाले सुधारवादी मानवीय दृष्टिकोण उनकी भविष्य की रचनाओं के केंद्र में होंगे। उन्होंने आयशा सिद्दीक़ी के इस सोच और प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। निकुंज मिश्र ‘किश्वर’ ने ‘एहसास-ए-मुहब्बत’ कृति में उसका सारांश विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है।
‘एहसास-ए-मुहब्बत’ में लखनऊ की साहित्यकार स्नेहलता ने आयशा सिद्दीकी को अपनी शुभकामनाओं में कहा है कि ‘एहसास-ए-मुहब्बत’ उनके उस एहसास को बयान करती है, जिसके लिए इस बात का कोई मतलब नहीं है कि और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा। उर्दू डेली आग के संपादक अहमद इब्राहिम अल्वी ने ‘एहसास-ए-मुहब्बत’ में ‘शाइरा और उनकी सोच’ के पन्ने पर टिप्पणी की है कि आयशा सिद्दीकी इसमें अपनी सलाहियतों से ये साबित करना चाहती हैं कि वो आज की शाइरा हैं, वो आज की नाइंसाफियों और नासूदगी की वजह को खूब समझती हैं, इस पर एहतिजाज करती हैं। अहमद इब्राहिम अल्वी ने और आगे टिप्पणी की है कि ‘ये क्या हो रहा है?, कैसे कहूं डर लगता है, माँ, केदारनाथ, हाय ये क्या हो गया’ जैसी उनकी नज़्मों में जो दर्द है, उसमें शाइरा अपनी फिक्र अपनी सलाहियतों से ऐसे जहान का ख्वाब देखती है, जहां सब तरफ सुख चैन ही हो, एक दर्दमंद दिल रखने की वजह से वह शाइरी और कलम के रास्ते मज़लूम लड़कियों की मदद करना चाहती है, जिसमें वह ऐसा कुछ करे कि लड़कियों को समाज में बोझ न समझा जाए।
आयशा सिद्दीक़ी ने यह संग्रह अपनी माँ और मरहूम वालिद को समर्पित किया है। अपने वालिद अब्दुल मजीद की एकत्र उर्दू नज़्मों और ग़ज़लों से प्रेरित आयशा सिद्दीक़ी ने अपनी माँ मल्लिका मजीद का शुक्रिया अदा किया है, जिन्होंने उनके वालिद की नज़्मों और ग़ज़लों को खजाने की तरह संभाले रखा, जो आज उनको भी एक शाइरा और इस काव्य संग्रह के मुकाम तक पहुंचाने में बड़ी मददगार साबित हुई हैं। आयशा सिद्दीक़ी एक बेहद भावुक किंतु एक हिम्मती युवा रचनाकार हैं। उन्होंने अपने ‘एहसास-ए-मुहब्बत’ में उन सबका नाम लेकर भावनाप्रधान ह्दय से आभार जताया है, जिन्होंने उनके इस प्रयास में जो भी योगदान दिया है। उन्होंने अपनी माँ के लिए कहा है कि वे आज जिस मुकाम पर पहुंची हैं उसके पीछे उनकी माँ हैं। आयशा सिद्दीक़ी ने अत्यंत कठिन समय में अपनी माँ के जीवन संघर्ष और अपने बच्चों की परवरिश करते हुए उन्हें लायक बनाने तक का मार्मिक वर्णन किया है। आयशा सिद्दीक़ी ने विमोचन कार्यक्रम में अपने काव्य संग्रह की रचनाओं का उल्लेख करते हुए जब पारिवारिक संदर्भ सामने रखा तो वे और उनकी माँ अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख सकीं। उन्होंने उनका साथ देने वाले डॉ जेबी घोष और उनकी बहिन मीताश्री, चिड़ियाघर लखनऊ के पूर्व सुरक्षाधिकारी नियाज़ अहमद, उनके बेटे इसरार अहमद, टीचर आयशा सिद्दीक़ी, नरही के सभासद अतुल यादव ‘बंटू’ का उनके अनवरत सहयोग का खासतौर से जिक्र किया। उन्होंने अपने दोस्त सैयद आदिल का दुख-सुख के साथी के रूप में नाम लिया, बहन असमा, भाई अब्दुल वहाब, बहनोई वामिक, भानजे मुहम्मद राएद के सहयोग और प्यार की चर्चा की, यासमीन आपा को भी याद किया तो आज इस दुनिया में नहीं हैं। आयशा सिद्दीक़ी ने विमोचन कार्यक्रम को बिल्कुल घरेलू अंदाज में प्रस्तुत किया।
‘एहसास-ए-मुहब्बत’ के प्रकाशक नीता-नीर प्रकाशन लखनऊ के तत्वावधान में हुए कार्यक्रम में साहित्यकार पार्थो सेन ने नीता नीर प्रकाशन का संक्षिप्त परिचय दिया और आयशा सिद्दीक़ी के इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा है कि ‘एहसास-ए-मुहब्बत’ आशा और निराशा के बीच झूलती हुई ज़िंदगी खट्टे-मीठे अनुभव बटोरती है, जिनको आयशा सिद्दीक़ी ने ‘एहसास-ए-मुहब्बत’ में पिरोया है। उन्होंने कहा है कि ये रचनाएं नव कविताओं की श्रेणी में मानी जाएंगी, जिनमें भाषा रचनाओं के अनुकूल है, जिसमें हिंदी और उर्दू दोनों ही भाषाओं का मिश्रण है, ये मनोहारी रचनाएं हैं। उन्होंने शाइरा को प्रोत्साहन देते हुए कहा कि वह नव रचनाकारों के लिए प्रेरणा हैं। शायरा की माँ मल्लिका मजीद ने भी कार्यक्रम में अपनी भावनाएं रखते हुए आयशा सिद्दीक़ी को आर्शीवाद प्रदान किया। आयशा सिद्दीक़ी ने अपनी कुछ रचनाओं का पाठ भी किया। कार्यक्रम में जाने-माने साहित्यकार और पत्रकार उपस्थित थे, जिनमें डॉ रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’, नीरज मिश्रा प्रकाशक, महेंद्र भीष्म, फुरकत लखनवी, डॉ सुल्तान शाकिर हाशमी, डॉ सुरेश प्रकाश शुक्ल, गिरीश चंद्र वर्मा ‘दोषी’, शालिनी शर्मा, रामबहादुर अधीर ‘पिंडवी’, तेज नारायण श्रीवास्तव ‘राही’, डॉ जेबी घोष, इंद्रजीत त्रिपाठी, एमएम कपूर, रत्ना बापुली, टीचर आयशा सिद्दीकीकी उपस्थिति उल्लेखनीय है। डॉ सौम्या विप्लव ने विमोचन कार्यक्रम का सफल संचालन किया।

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