स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 18 January 2013 04:51:10 AM
दिल्ली। गद्य की ऐसी संशलिष्ट और प्रांजल भाषा आज कम ही देखने में आती है, जैसी युवा आलोचक पंकज पराशर की पहली आलोचना कृति पुनर्वाचन में पढ़ने को मिलती है। शीर्ष आलोचक प्रोफेसरफेसर नामवर सिंह ने इस पुस्तक का लोकार्पण करते हुए कहा कि यह एक सुगठित गद्य कृति है। उन्होंने कहा कि हिंदी में इन दिनों तमाम लोग पुनर्पाठ शब्द लिख रहे हैं, जो व्याकरणिक रूप से ठीक नहीं है। सही शब्द है-पुनःपाठ। मुझे लगा कि इस चलन के असर में पंकज ने भी पुनर्पाठ लिखा होगा, मगर पंकज ने किताब में हर जगह न केवल पुनःपाठ लिखा है, बल्कि कई सारे शब्द हिंदी को दिए हैं, जिनमें इसने कालजयी शब्द के वजन का एक दिलचस्प शब्द लिखा है-सालजयी। ऐसे अनेक शब्द हैं, जिनको पंकज अपनी भाषा में पुनर्नवा भी करते हैं।
समारोह के मुख्य अतिथि भारतीय भाषा केंद्र के अध्यक्ष प्रोफेसर रामबक्ष ने इस अवसर पर कहा कि आमतौर पर लोकार्पण के अवसर पर लोगों को किताब की तारीफ करनी पड़ती है और मैं सोच रहा था कि पंकज पराशर की किताब यदि कमजोर किताब होगी, तो मुझसे झूंठी तारीफ नहीं की जाएगी, इसलिए किताब जब मेरे हाथ में आई, तो मैंने सबसे पहले किताब पढ़ी और तब मेरी जान-में-जान आई कि चलो झूंठी तारीफ करने से बचे। पंकज ने कहानियों का वाचन जिस सहृदयता से किया है, वह काबिले-तारीफ है। किशोरीलाल गोस्वामी, बंगमहिला, यशपाल से लेकर बिल्कुल आज लिख रहे अखिलेश और पंकज मित्र तक कहानी पर लिखकर इन्होंने एक बड़े कैनवास का चयन करके उसका पाठ बेहद सफलता से किया है।
उन्होंने कहा कि फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास जुलूस और रामचंद्र शुक्ल की बंगमहिला को लेकर उन्होंने कुछ ऐसी बातें की हैं, जो काफी विचारोत्तेजक हैं और इस आलोचना में बात होनी चाहिए। आयोजन में विख्यात कथाकार और 'समयांतर' के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि पंकज पराशर ने जिन कहानियों को लेकर विचार किया है, उनके चयन को लेकर लेखक के अपने तर्क हैं, पर जिन कहानियों को इन्होंने चुना है, उन पर विस्तार से विचार किया है। पंकज विष्ट ने फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास जुलूस पर पर बात करते हुए पंकज पराशर की इस कृति में पाठ आधारित आलोचना की तारीफ तो की, लेकिन कमलेश्वर के उपन्यास कितने पाकिस्तान को न केवल उपन्यास मानने से इनकार कर दिया, बल्कि कितने पाकिस्तान को एक निम्नस्तरीय कृति करार दिया।
प्रसिद्ध लेखक वीरेंद्र कुमार बरनवाल ने परिसंवाद में कहा कि मैं हिंदी आलोचना का उस तरह से विद्यार्थी तो नहीं रहा हूं, लेकिन पंकज पराशर की आलोचना की इस पहली कृति ने मुझे काफी प्रभावित किया। हिंदी की शुरूआती कहानियां जिसमें किशोरीलाल गोस्वामी और बंगमहिला ऐसे कथाकार हैं, जिनकी कहानियां बहुत कम लोगों ने देखी होंगी, इसलिए पंकज के लेखों से न केवल उन कहानियों के बारे में बल्कि उन कथाकारों के बारे में भी बहुत कुछ पता चलता है। युवा आलोचक एवं अंबेडकर विश्वविद्यालय में सह आचार्य गोपाल प्रधान ने कहा कि पंकज की पहली आलोचना कृति पुनर्वाचन में पंकज मित्र की कहानी क्विज़मास्टर के बहाने अपने समय के बारीक यथार्थ को पकड़ा है। पुनर्वाचन उस अर्थ में पुन: पाठ की किताब नहीं है, जैसी आजकल लिखी जाती है, जिसमें लेखक कृति की पाठ आधारित साहित्यिक आलोचना करता है। पंकज अपनी इस कृति में साहित्य और कहानी के बहाने साहित्य के दायरे से निकल कर अपने समय के बड़े सवालों से भी टकराने की कोशिश करते हैं।
युवा आलोचक वैभव सिंह ने कहा कि पंकज पराशर ने विश्व साहित्य की कृतियों और विमर्शों को ठीक से पढ़ा है और उसे पचाया है, यह उनकी आलोचना की पहली कृति पुनर्वाचन को पढ़ते हुए समझ में आती है। कोई भी आलोचक साहित्य पर लिखते हुए अपने समय की समीक्षा करता है और पंकज अपनी इस कृति में दस कहानियों और एक उपन्यास पर बात करते हुए यह काम करते हैं। युवा आलोचक और बनास जन के संपादक पल्लव ने पुस्तक को कथा आलोचना के क्षेत्र में उपलब्धि मूलक बताते हुए कहा कि ऐसे विस्तृत केनवास पर बहुत कम आलोचना पुस्तकें इधर के दिनों में आई हैं। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक कुछ कालजयी और कुछ नयी कहानियों का जिस ढंग से विवेचन-विश्लेषण करती है, वह सचमुच उल्लेखनीय है। आयोजन में शोधार्थी आनंद पांडेय ने भी अपने विचार रखे। संयोजन कर रहे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सह आचार्य डॉ शंभुनाथ तिवारी ने पुस्तक का परिचय भी दिया। सभागार में जेएनयू दिल्ली विश्वविद्यालय एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र एवं शिक्षकगण मौजूद थे।