दिनेश शर्मा
नई दिल्ली। राहुल गांधी को भोपाल में छात्रों के बीच फिर उसी एक प्रश्न ने घेरा कि शादी कब कर रहे हो और आपकी पसंद क्या है? राहुल गांधी की अर्द्धांगिनी कौन होगी? जब राहुल गांधी अपना अड़तीसवां जन्मदिन मना रहे थे तो देश के भावी प्रधानमंत्री की अदृश्य कल्पना के साथ उस वक्त भी यह प्रश्न उनके इर्दगिर्द मंडरा रहा था। वहां ये प्रश्न औरों के मन में था और दस जनपथ के बाहर तो लोगों की जुबान पर था। राहुल गांधी की शादी को लेकर उत्सुकता तो है ही मगर उससे ज्यादा उत्सुकता यह जानने की है कि राहुल गांधी की अर्द्धांगिनी आखिर कौन होगी? क्या राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी का अनुसरण करेंगे या वे किसी भारतीय कन्या के साथ ही सात फेरे लेंगे? उनका शादी का ‘प्लान’ क्या है यह जानने की सभी में उत्सुकता अब बढ़ती ही जा रही है। राहुल की भावी अर्द्धांगिनी, देश के गैर कांग्रेसी दलों के राजनीतिक एजेंडे में प्रमुखता पर है। राहुल गांधी जैसे-जैसे राजनीति में आगे बढ़ रहे हैं, उनके सामने पारिवारिक जिम्मेदारियों और राजनीतिक चुनौतियों के पहाड़ खड़े होते जा रहे हैं। उनके लिए कुछ फैसले तो ऐसे हैं जिनसे उनके पूरे राजनीतिक जीवन की सफलताएं और विफलताएं जुड़ी हैं। इनमें उनकी शादी का फैसला सबसे महत्वपूर्ण और चुनौती भरा है।
कांग्रेस के महासचिव और अपने पिता राजीव गांधी की राजनीतिक विरासत का जल्दी ही उत्तराधिकार संभालने के बाद राहुल गांधी अब उस स्थिति में नहीं हैं कि वे चुपचाप किसी से प्यार की पेंगे बढ़ाएं और किसी रोमांटिक फिल्म अभिनेता या किसी विदेशी राजनेता की तरह अपने राज उजागर करते हुए घोषणाएं करें कि उन्होंने शादी कर ली है या उनकी फलां से मंगनी हो रही है। राहुल गांधी के राजनीतिक एवं सामाजिक हालात ऐसे बन गए हैं कि वह शादी के मामले में अपने पिता का भी अनुसरण नहीं कर सकते, जिनकी मंगनी इटली में सोनिया गांधी से हुई थी। भारत के अगले प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में नाम आने के बाद राहुल गांधी के निजी जीवन पर बहुतों की नजरें गड़ गई हैं। उनके आलोचक मौके की तलाश में हैं कि राहुल गांधी अपनी शादी का कोई अनाप-शनाप फैसला करें ताकि उसे उछाला जाए जिससे उन्हें फिर अपने राजनैतिक कैरियर को बनाए और बचाए रखने के लिए हमेशा सफाईयां देनी पड़ें।
राहुल गांधी को अब सीने पर पत्थर रखकर ही अपनी दुल्हन के बारे में फैसला लेना पड़ेगा क्योंकि उनकी मां सोनिया गांधी की विदेशी मूल की होने के कारण स्वीकार्यता में न केवल भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा अपितु उनके भारत के प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर इस देश में राजनीतिक दलों में तूफान खड़ा हो गया था। यदि सोनिया गांधी विदेशी मूल की न हुई होतीं तो वह ही इस समय देश की प्रधानमंत्री होतीं। उनके विदेशी मूल के होने के कारण ही देश भर में लोकापवाद उठा। इसीलिए अब राहुल गांधी पर यह दबाव आ गया है कि वे किसी भारतीय कन्या को ही अपनी अर्द्धांगनि चुनें और देश को और अपनी मां को, रोज-रोज के विदेशी मूल के हमलों से मुक्त करें। राहुल को यह याद रखना होगा कि उन्हें अभी राजीव गांधी के पुत्र के रूप में जाना जाता है इसीलिए इन दिनों जैसे ही देश के प्रधानमंत्री के दावेदारों का मामला उछला तो राहुल तुरंत इस दावे में शामिल हो गए। उनके बारे में कोई लोकापवाद नहीं उठा बल्कि अधिकांश लोगों ने इसे सहर्ष स्वीकार भी किया। सोनिया गांधी भी आज भारतीय और सिर्फ भारतीय हैं, उनका रोम-रोम भारतीय संस्कारों में समाहित हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद वह इस विवाद से मुक्त नहीं हैं कि वह विदेशी मूल की हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो उनके प्रधानमंत्री के दावे पर कांग्रेस में ही विरोध के स्वर न फूटते।
राजनीतिक समीक्षकों का अभिमत है कि राहुल गांधी के सामने इस विदेशी मुद्दे को हमेशा के लिए खत्म करने का इससे अच्छा अवसर कोई और नहीं हो सकता। राहुल गांधी के किसी भी भारतीय कन्या से शादी करने पर उन्हें बहुत सारी अफवाहों से मुक्ति मिलेगी। अभी पिछले दिनों भोपाल में एक स्कूल में उनसे पूछा गया कि वे शादी कब कर रहे हैं। कुछ समय से राहुल के किसी कोलंबियाई युवती के साथ होने की चर्चाएं काफी गर्म रहीं हैं लेकिन राहुल ने इस पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है। इसलिए यह लोकापवाद उतना जोर नहीं पकड़ पाया है जिससे कि राजनीतिक समस्याएं खड़ी हो जाएं। कुछ माह पहले भी एक अन्य राज्य के दौरे पर किसी ने उनसे पूछा था कि वे शादी कब कर रहे हैं तो उनका उत्तर था कि ‘पर्सनल सवालों को पर्सनली पूछेंगे तब बताऊंगा।’ राहुल का यह उत्तर बहुत लाजवाब रहा। यह उत्तर उस समय की आवश्यकता तो पूरी कर गया लेकिन वहजिज्ञासा शांत नहीं कर पाया जिसमें अधिकांश लोगों की बड़ी गहरी दिलचस्पी है। उस जवाब से यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि वह किससे शादी करेंगे। क्योंकि पूछने वाले की भी जिज्ञासा यही है कि राहुल के मुंह से इस मुद्दे पर कुछ ऐसी बात निकल जाए जिसमें राहुल के उसी कोलंबियाई मित्र या किसी विदेशी से शादी के संकेत मिल जाते हों तो यह देश के लिए एक चर्चा और उनके राजनीतिक कैरियर के लिए एक संकट की खबर हो सकती है। ऐसी स्थिति में राहुल को राजनीतिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि देश के भावी प्रधानमंत्रियों की दौड़ में राहुल गांधी नंबर वन पर आ रहे हैं और विपक्ष किसी भी प्रकार के ऐसे मुद्दे से उनके इस दावे को कुचल देना चाहता है।
राहुल गांधी एक ऐसे राजनेता हैं जिनके पास एक स्थापित राजनीतिक विरासत है। जब केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह ने राहुल गांधी का नाम देश के प्रधानमंत्री पद के लिए उछाला तो अनेक राजनीतिक दलों के नेताओं ने इसका स्वागत किया जबकि कांग्रेस की प्रतिक्रिया एक डरी हुई और निराशाजनक प्रतिक्रिया थी। इस पर कांग्रेस का बयान भी आ गया और यहां तक कहा गया कि कांग्रेसी चाटूकारिता से बाज आएं। भले ही चाहे यह बयान कांग्रेस की किसी रणनीति का हिस्सा रहा हो। बसपा अध्यक्ष मायावती के प्रधानमंत्री बनने की इच्छा प्रकट होने और सपा के कांग्रेस के साथ चल देने के बाद देश में राजनीतिक समीकरण उलट-पलट रहे हैं। इनमें निजी जीवन भ्रष्टाचार एवं सामाजिक मुद्दे काफी हावी हैं। मायावती के भ्रष्ट कारनामों के कारण उनकी इस पद पर स्वीकार्यता दिखाई नहीं पड़ती हैं। यदि कांग्रेस फिर से देश में सरकार बनाने की स्थिति में आती है तो देश के प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी के अलावा अब किसी की भी दावेदारी सामने नहीं आ पाएगी। क्योंकि अभी भी यह देश गांधी नेहरू परिवार से अलग चलने की नहीं सोचता है, इस पर बाकी राजनीतिज्ञ चाहे जो भी सोचते हों।
कांग्रेस में राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद के दावे पर सोचने के कई कारण हैं। एक तो यही कि इंदिरा गांधी के परिवार के बलिदान का इतिहास है। दूसरे भारत में जितने भी गैर कांग्रेसी राजनीतिक नेतृत्व आए हैं उनके समय में देश ने जबरदस्त राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता का सामना किया है। कांग्रेस का यह दौर जरूर अस्थिरता के ही नाम रहा भले ही कोई यूपीए के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हटाने की जिद पर नहीं खड़ा हुआ। पूरे समय कांग्रेस वामपंथियों के दबाव में ही सरकार चलाती रही, जिस कारण वह अपने पुराने तेवरों के अनुरूप कोई भी बड़ा सामाजिक, आर्थिक या विदेश नीतिगत राजनीतिक और प्रशासनिक निर्णय नहीं ले सकी। किसी तरह से ही कांग्रेस ने यूपीए सरकार के साढ़े चार साल पूरे किए हैं। इन वर्षों में कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव सामने आए हैं। कभी कट्टर विरोधी रही समाजवादी पार्टी आज कांग्रेस के साथ आ गई है। सबसे बड़ा राजनीतिक परिवर्तन तो यही सामने आया है।
देश का प्रधानमंत्री कौन हो, कैसा हो? इस पर अभी से ही जोरदार बहस छिड़ी हुई है। दूसरे दलों के पास इस पद के लिए अत्यंत सीमित विकल्प हैं, उनमें लीडरशिप का भी एक गंभीर संकट है। कांग्रेस के पास भी इसका संकट मंडरा रहा था लेकिन राहुल गांधी का नाम सामने आने पर कांग्रेस इस संकट से उबर गई है। जहां तक भारतीय जनता पार्टी के दावे का प्रश्न है तो उसने प्रधानमंत्री पद के लिए लालकृष्ण आडवाणी का नाम तो उछाल दिया हैं लेकिन उनके प्रधानमंत्री के दावे में संदेह नजर आता है। वैसे भी अटल बिहारी वाजपेयी के बाद भाजपा में नेतृत्व को लेकर खलबली है। भाजपा में अगर किसी को इस पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा है तो वह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं- भाजपा ने चाहे भले ही आडवाणी का पहले से ही नाम तय कर दिया है।
इन सारे समीकरणों को दृष्टिगत रखते हुए राहुल गांधी पर राजनीतिक, सामाजिक और निजी जीवन का एक भारी दबाव आ गया है। राहुल गांधी आज उस स्थिति में खड़े हुए हैं जिस स्थिति में उनके पिता राजीव गांधी, देश के प्रधानमंत्री बनाए गए थे। फर्क इतना है कि वह स्थितियां दुखद थीं और यह स्थितियां राजनीतिक होंगी। इन स्थितियों में राहुल गांधी को अपने निजी जीवन की भी शुरूआत करनी है, जिसमें उनकी शादी सबसे महत्वपूर्ण मामला है। कांग्रेस की प्रथम पंक्ति में आने से पहले राहुल चाहे जो करते रहे हों या करते लेकिन उसके बाद उनका घंटा मिनट सेंकेंड भी अपना नहीं रहा है। यहां तक कि उनका शादी का फैसला भी देश की भावनाओं को देखकर ही तय किया जाना है। उनके सामने अब ‘मनमानी’ भरे फैसलों की कोई जगह नहीं बची है इसलिए अब हर एक की नजर राहुल गांधी की गलतियों पर हैं चाहे वह राजनीतिक हों और चाहे वह निजी जीवन से जुड़ी हों। राहुल गांधी का नाम उन बिगड़ैल राजपुत्रों ‘राजकुमारों’ की तरह कभी सामने नहीं आया लेकिन उनके विदेशी मित्र की चर्चाएं पूरे देश में फैली हैं। चाहे वे कोरी अफवाह ही क्यों न हो।
भारत एक भावना प्रधान देश है यहां पर किसी राजनेता को पूर्ण बहुमत दिया जाता है तो वह भी छप्पर फाड़कर और गद्दी से उतारा जाता है तो वह भी खाल खींचकर। यहां गलतियों के लिए कोई सहानुभूति नहीं है, इसलिए राहुल गांधी को इन्हीं खतरों के बीच में अपनी जीवन संगिनी का चयन करने की भी चुनौती होगी। यह देश उस भाग्यशाली युवती की प्रतीक्षा कर रहा है जो देश के भावी प्रधानमंत्री की अर्द्धांगिनी कहलाएगी।