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Wednesday 12 November 2014 12:07:21 AM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसद के बालयोगी सभागार में हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि प्रोफेसर केदारनाथ सिंह को 49वें ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित किया। सम्मान स्वरूप उन्हें 11 लाख रुपए का चेक, वाग्देवी सरस्वती की कांस्य प्रतिमा, प्रशस्ति-पत्र और शॉल भेंट किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि भारत कई भाषाओं का देश है और हर वर्ष हम कुछ बेहतरीन रचनाओं के जरिए इस भाषाई विविधता का अनुष्ठान करते हैं, जो हमारी साहित्यिक विरासत में योगदान करता है। उन्होंने कहा कि हमारी इस साहित्यिक विविधता के सौंदर्य को, इसकी गहनता को और इसकी अनुगूंज को दुनिया के सभी कोनों में पहुंचाने का प्रयास होना चाहिए।
प्रोफेसर केदारनाथ सिंह की कविता का उल्लेख करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से हमें अनुप्रास एवं काव्यात्मक गीत की दुर्लभ संगति दी है और उन्होंने यथार्थ एवं गल्प को समानता के साथ समाहित किया है, उनकी कविता अर्थों, रंगों और सुग्राह्यता का समूचा चित्र प्रस्तुत करती है। राष्ट्रपति ने कहा कि अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी कवि न केवल आधुनिक सौंदर्यशास्त्र के प्रति संवेदनशील हैं, बल्कि पारंपरिक ग्रामीण समुदायों के प्रति भी उनकी संवेदना झलकती है। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि उनकी यह इच्छा है कि देश की युवा पीढ़ी कालजयी भारतीय साहित्य का गहराई से अध्ययन करे, इससे न केवल नैतिक मानदंडों को ठीकठाक करने में मदद मिलेगी, बल्कि राष्ट्र निर्माण के हमारे प्रयासों में योगदान होगा।
प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ने इस अवसर पर कहा कि एक लेखक के रूप में मैं सोचता हूं कि हमारा समय अनेक चुनौतियों से भरा है, लेखक इन्हीं चुनौतियों का सामना करता है, इस संदर्भ में उन्होंने वर्तमान समय को पहले से अधिक जटिल बताया। उन्होंने कहा कि एक विश्व नागरिक के रूप में हम चाहे कितनी ही दूर रह रहे हों, लेकिन कह सकते हैं कि इराक और सीरिया में जो हो रहा है, वह भी हमारी संवेदना के दायरे में है। उदारीकरण का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यहां ‘उदार’ शब्द स्वयं अपने अर्थ के प्रति लाचार होता हुआ दिखाई पड़ता है। उन्होंने कहा कि शब्द पर बाजार की धूल की पर्त गहरी होती जा रही है। प्रोफेसर केदारनाथ सिंह की प्रमुख रचनाओं में ‘अभी, बिल्कुल अभी’, ‘जमीन पक रही है’, ‘यहां से देखो’, ‘अकाल में सारस’, ‘बाघ’ और ‘सृष्टि पर पहरा’ शामिल हैं। उन्हें साहित्य अकादमी, भारत भारती और व्यास सम्मान सहित कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं। वे साहित्य अकादमी के भी महत्तर सदस्य हैं।
प्रवर परिषद के अध्यक्ष और प्रसिद्ध ओड़िया कवि सीताकांत महापात्र ने ज्ञानपीठ सम्मान समारोह में कहा कि हमारे समय के हिंदी के प्रमुख कवि प्रोफेसर केदारनाथ सिंह इस भाषा के 10वें ज्ञानपीठ सम्मान विजेता बने हैं, उनकी कविताओं में लोक का अन्यतम रूप देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उनका संग्रह ‘अकाल में सारस’ मेरे लिए उनका सर्वश्रेष्ठ संकलन है। उन्होंने इस अवसर पर कवि केदारनाथ सिंह की दूसरी कृतियों का उल्लेख करते हुए उनकी दो रचनाओं के अंग्रेजी अनुवाद का पाठ भी किया। डॉ इंदु जैन की सरस्वती वंदना से शुरू हुए इस सम्मान अर्पण समारोह में अतिथियों का स्वागत करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने कहा कि केदारनाथ सिंह की कविताओं में परंपरा और आधुनिकता का सुंदर तानाबाना है। यथार्थ और फंतासी, छंद और छंदेतर की महीन बुनावट उनके काव्य शिल्प में एक अलग रंग भरती है। संस्थान के प्रबंध न्यासी अखिलेश जैन ने धन्यवाद ज्ञापन किया।