विशेष संवाददाता
नई दिल्ली। पर्याप्त साक्ष्यों के साथ केंद्रीय जांच ब्यूरो की पकड़ में आए न जाने कितने बैंक खाते और अकूत संपत्तियां हैं जो बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के राजनीतिक लक्ष्यों के लिए ज़हर बन गई हैं। भ्रष्टाचार के अधिकांश साक्ष्य मिटाए जाने के बावजूद मायावती की और भी अकूत संपत्तियों का कोई अंत नहीं है। ‘फिरौतियों’ की तरह कमाई गयी इसी ‘दौलत’ को लेकर मायावती तनाव और रात-दिन जेल जाने की आशंकाओं से ग्रस्त हैं। अपने खिलाफ मामलों को वादे के मुताबिक रफा-दफा नहीं कराने को लेकर ही कांग्रेस और मायावती के बीच में जो घमासान शुरू हुआ था वह आज अपने चरम पर पहुंच गया है।
राष्ट्रपति चुनाव में मायावती और सोनिया गांधी के बीच हुआ ‘राजनीतिक समझौता’ टूटते ही मायावती का कांग्रेस, राहुल गांधी, सोनिया गांधी और केंद्र सरकार पर हमला और ज्यादा तेज हो गया। आय से अधिक संपत्ति की जांच का शिकंजा कसने पर मायावती ने केंद्र की यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सुप्रीम कोर्ट आय से अधिक संपत्ति के मामले में मायावती को पहले ही कोई रियायत देने से इंकार कर चुका है। मायावती के ईमानदार होने का फैसला अब सिर्फ देश की अदालत को ही करना है जिससे अब इस ‘दौलत’ पर कभी भी निर्णायक मुकद्मेबाजी शुरू होनी तय है। इसमें मायावती को राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना और इस राजनीतिक अस्थिरता के कारण बसपा को फिर से एक और बड़े विभाजन का सामना भी करना पड़ सकता है। बसपा के सौ से ज्यादा विधायक इस समय मायावती के ‘टार्गेट’ से परेशान हैं और वे किसी ऐसे ही घटनाक्रम की बेसब्री से प्रतीक्षा में हैं। उधर कालेधन को सफेद करने के लिए मायावती के कुनबे के अलावा बहुजन समाज पार्टी के कुछ प्रमुख नेताओं, बसपा कार्यालय के कर्मचारियों, घरेलू नौकरों और अन्य विश्वासपात्रों के नाम से खरीदी गईं और विभिन्न तरीकों से उनके नाम दर्ज की गईं और भी चल-अचल संपत्तियों का राज खुल रहा है।
मायावती को लग गया है कि यह मामला छूटने वाला नहीं है, इसलिए वे इसे भावनात्मक तूल देकर दलित समाज में अपने लिए सहानुभूति पैदा करने की कोशिश कर रही हैं। इसीलिए उन्होंने यूपीए सरकार के विरुद्ध विश्वास मत के खिलाफ जाकर जो मुंह की खाई उसकी खीज मिटाने के लिए कह रही हैं कि एक दलित की बेटी को प्रधानमंत्री बनने से रोका गया है जबकि उन्होंने लोकसभा में प्रधानमंत्री बनने का कोई दावा पेश ही नहीं किया था और ना ही किसी और दल ने उनका नाम लोकसभा के पटल पर प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए पेश किया था। पांच दिनों तक वामदलों ओर भाजपाइयों के बीच में खड़े होकर प्रधानमंत्री बनी रही मायावती का दांव जब उल्टा पड़ गया तो उन्होंने कांग्रेस के बाद एनडीए के नेताओं पर भी धावा बोल दिया और भाजपा को घसीट लिया कि उसके कारण ही वह प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं। अब तो उन्होंने भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ चार्जशीट में अपनी हत्या कराने की धारा भी जोड़ दी है।
मायावती ने विश्वासमत से पहले देश के मुसलमानों की सहानुभूति हासिल करने के लिए एक और छद्म कार्ड खेला कि एटमी करार के बाद अमेरिका ईरान पर हमला कर देगा। यह सूचना मायावती को किस अंतर्राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी या देश ने दी, यह उन्होंने नही बताया। इससे भी पहले केंद्र सरकार पर आय से अधिक संपत्ति मामले में फंसाने का आरोप लगाते हुए मायावती ने कहा था कि सीबीआई के आईओ ने अपनी जांच रिपोर्ट में उनको निर्दोष पाया है। आईओ की रिपोर्ट सीबीआई का अत्यंत गोपनीय दस्तावेज होता है और उसमें क्या है यह मायावती को कैसे पता चला? यही प्रश्न सीबीआई के निदेशक विजय शंकर ने भी किया था जिसका उत्तर मायावती नहीं दे सकीं। मायावती ने आईओ की रिपोर्ट उनके पक्ष में होने की बात कहकर क्या अदालत में विचाराधीन मामले को प्रभावित करने और सरकार की संघीय जांच एजेंसी की सूचना लीक करने का अपराध नहीं किया? मायावती की ये ज्ञात और अज्ञात फाइलें ऐसे समय पर खुल रही हैं, जब देश में लोकसभा के चुनाव निकट हैं और आने वाले लोकसभा चुनाव में वे अपने को देश का भावी प्रधानमंत्री घोषित कर चुकी हैं।
आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई ने अपनी जांच-पड़ताल में मायावती और उनके कुनबे को कई सौ करोड़ से अधिक की चल-अचल संपत्ति का मालिक होने का अनुमान लगाया है। सीबीआई की फाइलों से किसी तरह बाहर निकली सूचनाओं पर भरोसा किया जाए तो मायावती के खिलाफ कुछ तो बेहद वजनदार आरोप बनते हैं। ताज कॉरिडोर मामले से पकड़ में आई मायावती के खिलाफ 18 जुलाई 2003 को विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज हुआ। सीबीआई को जांच पड़ताल से मिले सबूतों के आधार पर उसी साल 5 अक्टूबर 2003 को आरसी नंबर 19-ए के तहत आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में अभियोग दर्ज किया गया। राजनीतिक सौदेबाजी के चलते तब सीबीआई ऐसा कुछ खास नहीं जुटा पाई, जिसमें मायावती ताज कॉरिडोर मामले में सीधे-सीधे शामिल दिखती हों। सुप्रीम कोर्ट ने फिर भी उन 17 करोड़ रुपये पर उंगली उठाई है जिनका अभी तक पता नहीं चला है कि वे कहां गए और किसने लिए।
मायावती की सोनिया गांधी से दोस्ती के कारण सीबीआई पर यह दबाव था कि वह जांच में ज्यादा तेज न चले। इस चक्कर में सीबीआई ने कई महत्वपूर्ण सुराग अपने हाथ से गवां दिए। मायावती और उनके वकीलों को इतना मौका मिल गया कि वह मायावती की अचल संपत्तियों के ब्यौरों को कानूनी जामा पहना सकें या उन्हें इधर-उधर कर सकें। इसीलिए कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने एनेक्सी के मीडिया सेंटर में प्रेस को बुलाकार डिक्टेशन दिया था कि मायावती ईमानदार हैं और उनके पास कोई भी संपत्ति नहीं है, भ्रष्टाचार के सारे आरोप झूठे हैं। न्यायिक एवं प्रशासनिक दृष्टि से एक अफसर का यह बयान हैरत में डालने वाला रहा क्योंकि मायावती के विरुद्ध आरोपों को अभी किसी भी अदालत ने खारिज नहीं किया है। इसलिए शशांक शेखर ने यह बयान किस हैसियत से दिया?
कानूनविदों का कहना है कि केवल ताज कॉरीडोर मामले में राज्यपाल के फाइल वापस कर देने से मुकदमा खत्म नहीं माना जा सकता। दरअसल उस वक्त एक समय ऐसा आया जब केंद्र सरकार के उप्र की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार से संबंध बिगड़ गए और इसका भरपूर लाभ मायावती ने उठाया। वह मौका पाकर तुरंत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संपर्क में आ गईं। सोनिया ने मायावती पर भरोसा कर लिया और उन्हीं मायावती ने आज सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस को निशाना बना रखा है। सोनिया गांधी को मायावती से दोस्ती न केवल भारी पड़ी है अपितु कांग्रेस भी इसकी चपेट में है। उस समय सोनिया गांधी के दांव से मुलायम सरकार के खिलाफ जनता खड़ी हो गई और उसने मायावती को सत्ता सौंप दी। सीबीआई को मायावती के खिलाफ कोर्ट में अभियोग दाखिल करना था। लेकिन यहां एक राजनीतिक सौदा हुआ और राज्यपाल ने सीबीआई को मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। सीबीआई की फाइल में कई शहरों में बंगले, हीरे जवाहरात के आभूषण और कई फार्म हाऊस के जिक्र हैं। दिल्ली स्थित मायावती के दो बैंक खातों से मिले 2.5 करोड़ रुपये से ज्यादा की धनराशि के साथ ही साथ सत्ता छोड़ने के ऐन पहले के अगस्त महीने में इन खातों से निकाले गए रुपयों को ठिकाने लगाने का भी पर्दाफाश सीबीआई ने किया है। केंद्रीय अपराध जांच प्रयोगशाला और विज्ञान प्रयोगशालाओं ने भी फाइलों से छेड़छाड़ करने की पुष्टि की है।
जहां तक काले धन को सफेद करने का मामला पकड़ में आया है तो उसकी कड़ी में बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और मायावती के खास कानूनी सलाहकार सतीश चन्द्र मिश्रा और उनकी बहन आभा अग्निहोत्री के वो भूखंड भी हैं जो देहरादून में हैं और वह बढ़ी हुई धनराशि पर बहुजन समाज पार्टी के कर्मचारी महेश टमटा को बेचे दिखाए गए हैं। उनकी बकायदा देहरादून में रजिस्ट्री हुई है। महेश टमटा जैसे कई कर्मचारी हैं जिनके नाम इस प्रकार की संपत्तियां दर्ज कराई गई हैं। ऐसा ही नैनीताल में हुआ है। देहरादून में अचल संपत्तियों का जखीरा मायावती के भाई और भाभियों के नाम है। मसूरी के विधायक रहे राजेन्द्र शाह के देहरादून के नेहरू नगर में विशाल भवन की खरीदारी मायावती के भाई के नाम हुई यह संपत्ति आज करोड़ों रुपए की है। ऐसे न जाने कितने मामले केंद्रीय जांच ब्यूरो की पकड़ में हैं जिनसे पता चलता है कि मायावती ने अपने तीनों बार के शासन में इस प्रकार की संपत्तियों को पैदा करने और काला धन इधर-उधर करने के अलावा और कोई काम नहीं किया। इस कार्यकाल में भी मायावती और उनके खास लोगों के कुछ चिट्ठे सीबीआई के हाथ लगे हैं। सीबीआई को अगर दबाव में नहीं रखा गया होता तो मायावती की भ्रष्टाचार की यह श्रृंखला बहुत पहले देश के सामने आ गई होती।
आयकर विभाग की कार्रवाईयों से बचने, काले धन को सफेद करने और ऐसी संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए मायावती ने क्या कुछ नहीं किया। इसकी सच्चाई सबसे ज्यादा सीबीआई के पास है। मायावती अपने वकीलों पर विश्वास किए बैठी हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला है। मगर सच्चाई यह है कि मायावती का इसी झूठे भरोसे में काफी कुछ बिगड़ चुका है जिससे बचकर निकलने के उनके सारे रास्ते बंद हैं। सीबीआई के पास एक-एक सूचना है कि मायावती ने कब-कब और क्या-क्या किया है। आयकर विभाग की आंखों में धूल झोंकने की नाकाम कोशिश करते हुए उन्होंने न केवल अपने भाई-भतीजों या मां-बाप एवं रिश्तेदारों के नाम बैंक खातों में बड़ा धन जमा किया बल्कि उनके नाम से भवन भूखंड भी खरीदे गए। मायावती के चपरासियों एवं रसोईयों तक के नाम लाखों करोड़ों के बैंक बैलेंस एवं भूखंडों की जानकारी सीबीआई के पास है।
अगर मायावती की सार्वजनिक रूप से घोषणाओं पर यकीन करें तो उनका कोई भी भाई बहन रिश्तेदार नातेदार नहीं है। दलित समाज ही अब उनका सब कुछ है, मगर ये बैंक खाते इस बात का प्रमाण हैं कि मायावती ने बसपा को उसके कार्यकर्ताओं और हित चिंतकों से मिले धन दौलत को बड़ी ही बेशर्मी से अपने मां-बाप, भाइयों-भाभियों के नामों में बांटा और मामले का भंडाफोड़ होने पर इसे अनैतिक रूप से ठिकाने लगाने का भी असफल काम किया। प्रश्न है कि जब सभी धन बसपा और बसपा फाउंडेशन का है तो उसे दूसरों के बैंक खातों में जमा करने या छिपाने और भेद खुलने पर उसे ठिकाने लगाने का प्रयास करने की मायावती के सामने कौन सी मजबूरियां थीं? क्या मजबूरी थी कि मायावती को बिजनौर वालों ने रावली रोड बिजनौर पर जो एक शानदार कोठी खरीदकर दी थी, कुछ समय बाद मायावती ने उसके भी पैसे खड़े कर लिए। वह रकम किसके खाते में गई? मायावती ने बिजनौर में बिरादरी के लोगों के छप्परों के नीचे बैठकर अपनी राजनीति शुरू की थी। वहां का बच्चा-बच्चा जानता है कि मायावती के पास तब क्या था। तब उनके और उनके रिश्तेदारों के ये खाते कहीं नहीं थे। तब एक फूल सिंह कबाड़ीवाले और उनके कुछ सहयोगी ही अपनी साइकिल के पीछे बैठाकर मायावती को गांव-गांव ले जाया करते थे। फूल सिंह कबाड़ीवाले मर गए हैं जो यह सच्चाई बयान करते।
जिस समाज के बीच में उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया तब उसी समाज के कुछ लोग उनका जैसे-तैसे खर्च चलाते थे। दलित समाज के लोग भी अपनी हत्या की आशंका से डर कर एक दिन भी जनता दर्शन कार्यक्रम न करने वाली आयरन लेडी से पूछने लगे हैं कि उन्होंने अपने और रिश्ते-नातेदारों को तो बसपा की दौलत बांट दी, लेकिन उनके लिए क्या किया जिन्होंने अपने प्रियजनों को उनकी जातीय राजनीति पर मिटा दिया? इतना और हुआ है कि मायावती के कारण दलितों का मजदूर तबका खेतों में मजदूरी करने के भी काबिल नहीं रहा है। हालात यह हैं कि गांवों में उसे और ज्यादा नफरत से देखा जाने लगा है। अब तो दबंग गैर दलित, एससी-एसटी एक्ट की भी परवाह नहीं कर रहे हैं, जिससे दलितों पर अत्याचार और तेज हो गए हैं।
मायावती का प्रारंभिक जीवन अत्यंत आर्थिक तंगी में बीता है। दलित समाज में आक्रामक भाषा और शैली के कारण मायावती को लोग पहचानते गए। बिजनौर जिले के गांव के गांव इस बात के गवाह हैं कि मायावती का रहन-सहन कैसा था? बिजनौर में बहुत से लोग आज भी मायावती का इतिहास बताते हैं। मायावती दलितों में जाटव हैं। इनके पिता प्रभुदास उत्तर प्रदेश गौतमबुद्ध नगर जिले के बादलपुर गांव के रहने वाले हैं। दिल्ली में दूरसंचार विभाग में क्लर्क की नौकरी करते हुए वहां अपने परिवार सहित रहते आए हैं। मायावती की मां रामरती दिल्ली जैसे शहर में कभी कुछ भैंसें पालकर दूध की डेयरी से परिवार की आय के स्रोत को बढ़ाती थीं। अंदाजा लगाइए कि आय के इस स्रोत से इनके बैंक खातों में इतनी बड़ी रकम कैसे हो सकती है? वह भी तब जब दिल्ली जैसे महंगे शहर में परिवार के कई सदस्यों की भरण-पोषण की जिम्मेदारी रही हो।
सभी को मालूम है कि राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए प्रत्याशी का समर्थन करने के एवज में मायावती की यह शर्त थी कि उनके खिलाफ ताज कारीडोर और आय से अधिक संपत्ति के भ्रष्टाचार के सारे मामले रफा-दफा कर दिए जाएंगे। मायावती ने राज्य के विकास के नाम पर केंद्र के सामने एक के बाद एक करोड़ों रुपए के आर्थिक पैकेजों की फाइलें रख कर उम्मीद कर डाली कि केंद्र सरकार अगले दिन ही यूपी को मुह मांगा चैक काटकर दे देगी। इसी अंदाज में प्रदेश और देशभर में चौराहों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगवा कर तुरंत ही प्रचार करा दिया गया कि राज्य के विकास के लिए केंद्र सरकार से पैसा मांगा गया है और प्रतीक्षा किए बिना यह आरोप भी मीडिया में चलवा दिया गया कि केंद्र सरकार यूपी को मांगे गए पैकेज का धन नहीं दे रही है, यूपी की उपेक्षा की जा रही है। आर्थिक पैकेज मामलों के एक खास जानकार का कहना है कि यूपी के आर्थिक पैकेज का प्रस्तुतिकरण इतना बलहीन और तथ्यहीन है कि उसके महत्व और उद्देश्यों पर ठीक से अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। मगर साउथ ब्लाक से तो यह सुनने में आया कि असली झगड़ा मायावती के भ्रष्टाचार के मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगाने को लेकर शुरू हुआ जोकि संभव नहीं था। यूपी का आर्थिक पैकेज तो मायावती का मात्र एक बहाना था।
यह झगड़ा इतना आगे बढ़ा कि मायावती अब सोनिया गांधी परिवार पर सीधे हमले पर उतर आई हैं। मायावती केंद्र में एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी जैसी ‘बोदी’ सरकार को तो भले ही धमकाकर अपना उल्लू सीधा करती रही हों लेकिन उन्होंने यूपीए की सरकार को भी जब उसी डंडे से चलाना चाहा तो उनका सारा खेल गड़बड़ा गया। सही मायनों में तो अब उनका पाला कांग्रेस से पड़ा है। राहुल गांधी दलितों से मिलने के बाद किस विदेशी साबुन से नहाते हैं और अपने को धूपबत्ती एवं अगरबत्ती से पवित्र करते हैं, मायावती के पास बोलने के लिए इससे ज्यादा और इसके अलावा कुछ भी नहीं बचा है। इस बयान पर पूरे देश में मायावती की खूब मजाक उड़ी। यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी मायावती के इस बयान पर जोरदार चुटकी ली कि ‘वह अब लोगों के बाथरूम में भी झांकने लगी हैं।’ राजनाथ की इस टिप्पणी पर मायावती तिलमिला गईं जिस पर जन सामान्य से प्रतिक्रिया आई कि क्या मायावती को ही सब कुछ बोलने की और कोई भी कटाक्ष करने की आजादी है और दूसरों को अपने मुंह पर ताला लटकाए रहना चाहिए? मायावती के सलाहकार भी जान गए हैं कि बहिनजी जिस ट्रैक पर चलती रहीं हैं, वह उनके और उनके सपने के लिए भारी मुसीबतों का कारण बन गया है।
ये ही हैं वे खाते जो सबसे शुरू में सीबीआई के हाथ लगे
मायावती के यूनियन बैंक, मोतीबाग, नई दिल्ली खाता संख्या 9195- 2,27,94,533/-
मायावती के स्टेट बैंक, पालिर्यामेट स्ट्रीट नई दिल्ली खाता संख्या 01190526277 - 23,45,539/-
राजकुमार (मायावती के भाई) यूनियन बैंक नोएडा 32,00,000/-
राजकुमार (मायावती के भाई) विजया बैंक बुलंदशहर 16,05,649/-
राजकुमार (मायावती के भाई) कैनरा बैंक, करोल बाग 86,940/-
आनंद कुमार (मायावती के भाई)यूनियन बैंक नोएडा(खाता संख्या 59578 - 19,06,904/-
आनंद कुमार (मायावती के भाई) यूनियन बैंक नोएडा(खाता संख्या 1484 - 38,92,020/-
आनंद कुमार (मायावती के भाई) यूनियन बैंक नोएडा(खाता संख्या 1484 - 31,73,869/-
विचित्र लता (मायावती की भाभी) यूनियन बैंक नोएडा(खाता संख्या 59880 - 4,54,201/-
विचित्र लता (मायावती की भाभी) यूनियन बैंक नोएडा(खाता संख्या 1455 - 7,09,331/-
रचना (मायावती की भाभी) यूनियन बैंक नोएडा(खाता संख्या 1187 - 3,88,893/-
रचना (मायावती की भाभी) यूनियन बैंक नोएडा(खाता संख्या 584 - 5,02,506/-
निर्मला रानी (मायावती की भाभी) यूनियन बैंक नोएडा(खाता संख्या 1604 - 21,07,584/-
निर्मला रानी (मायावती की भाभी) विजया बैंक बुलंदशहर(खाता संख्या 12391 - 10,24,214/-
सुभाष कुमार (मायावती के भाई) यूनियन बैंक नोएडा(खाता संख्या 59591 - 13,77,800/-
यूनियन बैंक नोएडा(खाता संख्या 59591 - 3,75,721/-
प्रभुदयाल (मायावती के पिता)(खाता संख्या 59617 - 20,54,000/-
भाई राजकुमार और भाभी निर्मला रानी केनरा बैंक दिल्ली एफ.डी 70,44,000/-
रामरती (मायावती की मां) 36,00,000/-
भूमि-भवन (अचल संपत्ति) का ब्योरा
प्रभुदयाल (पिता) सिकंदरपुर (अलीगढ़) भूमि 2,48,000/-
बादलपुर गौतमबुद्ध नगर 5,92,000/-
राजकुमार (भाई) इंद्रपुरी नई दिल्ली, दुकान 1,83,000/-
राजकुमार (भाई) एफ-88, पश्चिम दिल्ली भवन 15,67,000/-
राजकुमार (भाई) शिवाजी मार्ग, नई दिल्ली 5,65,000/-
राजकुमार (भाई) पटेल नगर, नई दिल्ली 17,00,000/-
तेज सिंह (भाई) मौजपुर, खुर्जा भूमि 10,00,000/-
निर्मलारानी (भाभी) पत्नी राजकुमार गयासपुर बुलंदशहर भूमि 13,25,000/-
सिद्घार्थ कुमार (भाई) सेक्टर 55 नोएडा भवन 12,50,000/-
सिद्घार्थ कुमार (भाई) सेक्टर 55 नोएडा भवन 5,53,000/-
आनंद कुमार (भाई) सेक्टर 44 नोएडा भवन 81,00,000/-
आनंद कुमार (भाई) सेक्टर 44 नोएडा भवन 16,00,000/-
आनंद कुमार (भाई) ग्यासपुर, बुलंदशहर बाग 33,50,000/-
राजवीर सिंह (भाई) फरीदपुर, बिजनौर भूमि 27,40,000/-
विचित्र लता (भाभी) ग्यासपुर, बुलंदशहर भूमि 3,52,000/-
मायावती ग्यासपुर, बुलंदशहर फार्म हाउस 9,00,000/-