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Saturday 17 October 2015 04:47:12 AM
नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध कथाकार-नाटककार प्रोफेसर असग़र वजाहत ने हिंदू कॉलेज में आयोजित संगोष्ठी 'नुक्कड़ नाटक का अर्थ' में कहा है कि नुक्कड़ नाटक का भविष्य उसके बहुआयामी होने में है, कथावस्तु की विविधता सीधा सरोकार ही नुक्कड़ नाटक को लोकप्रिय बनाता है, नुक्कड़ नाटक के विषयों की विविधता के साथ-साथ उसके मंथन के संबंध में भी गंभीर बातचीत होनी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि सभी स्तरों पर जनता की भागीदारी से ही नुक्कड़ नाटक प्रासंगिक बन सकेंगे। हिंदू कॉलेज की हिंदी नाट्य संस्था 'अभिरंग' की संगोष्ठी का आकर्षण प्रोफेसर असग़र वजाहत के नुक्कड़ नाटक संग्रह 'सबसे सस्ता गोश्त' का लोकार्पण था।
संगोष्ठी की मुख्या वक्ता किरोड़ीमल कॉलेज की प्राध्यापक डॉ प्रज्ञा ने कहा कि जनता के सवालों के लिए जनता के बीच जन्मी ये विधा आठवें दशक में जब सामने आई तो इसने नाटक की दुनिया को एकदम उलट दिया। उन्होंने कहा कि सीनियम के फोर्थ वाल के सिद्धांत और पूरे तामझाम, बड़े बजट और सीमित दर्शक वर्ग को समर्पित नाटक के सौंदर्यशास्त्र को नुक्कड़ नाटकों ने बदल डाला, नाटक का एक नया सौंदर्यशास्त्र बनना शुरू हुआ। उन्होंने नाटककार प्रोफेसर असग़र वजाहत के नाटकों की एक बड़ी खासियत बताई कि ये नाटक सत्ता विद्रूपता और उसके पाखंड को उजागर करते हैं, वर्चस्व प्राप्त शक्तियों का पर्दाफाश इनके नाटकों में हुआ है, फिर वो चाहे धर्म की ताकते हों, सामाजिक ताकते हों, आर्थिक ताकते हों या राजनीतिक ताकतें। नाटककार ने इस क्रम में शोषकों के चेहरे धुंधले नहीं होने दिए हैं।
अभिरंग के युवा दल की 'ख्वाजा मोइनुद्दीन किरपा करो महाराज' शीर्षक कव्वाली की संगीतमय प्रस्तुति ने सबको प्रभावित किया। अभिरंग के परामर्शदाता डॉ पल्लव ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि साहित्य और सभी कलाएं यदि हमें बेहतर मनुष्य बनने की तरफ ले जाती हैं तो उनका महत्व है, अन्यथा यह कोरा कलावाद और वाग्विलास ही है। उन्होंने अभिरंग की एक दशक लंबी रंग यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि असग़र वजाहत जैसे नाटककार के कृतित्त्व पर चर्चा करना नई पीढ़ी को सच्चे जनपक्षधर साहित्य विरासत से जोड़ना है। आयोजन में असग़र वजाहत ने लोकार्पित पुस्तक के शीर्षक नाटक 'सबसे सस्ता गोश्त' का पाठ किया तथा विद्यार्थियों के सवालों के उत्तर भी दिए।
डॉ पल्लव ने एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत जैसे महादेश को चलाने के लिए महा उदारता की जरूरत होती है, वहीं विकास की प्रचलित अवधारणा के उलट उन्होंने कहा कि मन, बुद्धि और समझ को विकसित करना सबसे बड़ा विकास है, नाली, पुल और सड़क बनाना ही विकास नहीं होता। संयोजन कर रही अभिरंग की रंगकर्मी फरहा ने अतिथियों का परिचय दिया तथा हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ विजया सती ने फूलों से स्वागत किया। आयोजन में प्रकाशन संस्थान राजपाल एंड संस की निदेशक मीरा जौहरी ने भी विचार व्यक्त किए। अभिरंग के छात्र संयोजक आदर्श मिश्रा ने आभार प्रदर्शित किया। इस अवसर पर पुस्तक प्रदर्शनी का विद्यार्थियों ने अवलोकन किया।