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'स्क्रीन पर स्त्री' विषय संगोष्ठी

'वास्तविक जीवन को सामने लाता है टीवी पर्दा'

हिंदू कॉलेज की वीमेंस डेवलपमेंट सेल की वार्षिकी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 9 March 2016 11:57:44 PM

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नई दिल्ली। हिंदू कॉलेज की वीमेंस डेवलपमेंट सेल के वार्षिक उत्सव में 'स्क्रीन पर स्त्री' विषय संगोष्ठी हुई। संगोष्ठी में विशेषज्ञों के बीच स्त्री को केंद्र में रखकर सिनेमा के इतिहास पर काफी चर्चा हुई। संगोष्ठी में हिंदू कालेज के अतिरिक्त बाहर के कालेजों से भी अध्यापक और विद्यार्थी आए थे, जिन्होंने इस विषय में भारी दिलचस्पी ली और विषय विशेषज्ञों को सुना। संगोष्ठी में मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार ने टेलीविजन से जुड़े पक्ष पर चर्चा करते हुए कहा कि टेलीविजन अपने चरित्रों को पहले लोकप्रिय बनाता है, तब फिर उसका हमारे वास्तविक जीवन में दखल होता है, हम वास्तविक जिंदगी में जो हैं, टेलीविजन उसे बाहर निकालकर लाता है।
विनीत कुमार का कहना था कि दिल्ली शहर में दर्जनों ऐसी शॉप, शोरूम हैं, जहां बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता है कि यहां टीवी सीरियलों की डिजाइन की जूलरी मिलती है। उन्होंने कहा कि आप चले जाइए कटरा अशर्फी और जरा खारिज कीजिए साड़ियों की डिजाइन, लहंगे की स्टाइल और रंगों को, दुकानदार आपको सीधा जवाब देगा कि आप जिसे नापसंद कर रही हैं, उसे अक्षरा, काकुली, पार्वती, प्रिया भाभी पहनती हैं, कई बार तो स्वयं दर्शक ही ग्राहक की शक्ल में इनकी मांग करते हैं। उन्होंने कहा कि दूसरी तरफ टीवी स्क्रीन का पर्दा तमाम स्त्री चरित्रों को अच्छे-बुरे में विभाजित करता है। कोहेन ने सोप ओपेरा पर अपने गंभीर अध्ययन से बताया है कि चरित्र की जो अच्छाईयां होंगी, वो परंपरा, परिवार, मूल्य, संस्कार आदि (भले ही वो कई स्तरों पर जड़ ही क्यों न हों) बचाने में सक्रिय होंगी, जबकि जो खल चरित्र होंगी वो प्रगतिशील, पढ़ी-लिखी, कामकाजी, खुद की पहचान के लिए जद्दोजद करती नज़र आएंगी। ये छवियां अकादमिक साहित्यिक दुनिया से बिल्कुल उलट हैं।
संगोष्ठी में युवा फिल्म आलोचक मिहिर पंड्या ने कहा कि हिंदी सिनेमा हमेशा नायक प्रधान होता है, जिसमें नायिका का काम नायक को उत्कर्ष तक पहुंचाना होता है। उन्होंने स्त्री को केंद्र में रखकर 'मदर इंडिया', 'क्वीन' और 'मसान' जैसी समसामयिक फिल्मों की चर्चा की। मदर इंडिया के क्लाइमेक्स पर बात करते हुए 'राधा माँ' को भारत माँ का सुपर इंपोज़ होते हुए बताया, जिसका सीधा संबंध आज़ाद भारत में प्रेम के मानक को गढ़ना था। उन्होंने वर्ष 1995 में आई सुपरहिट फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' को उदारीकरण, भूमंडलीकरण से जोड़कर देखते हुए थम्स अप जैसे उत्पादों को सिनेमा द्वारा संकेतिक रूप से स्वीकार किए जाने की बात कही। हिंदी विभाग के अध्यापक डॉ पल्लव ने वक्ताओं का परिचय देते हुए कहा कि सिनेमा और टीवी की आलोचना को अकादमिक बहसों की गंभीरता के स्तर पर चिंतन योग्य बनाने में विनीत और मिहिर के लेखन की बड़ी भूमिका है। संगोष्ठी में विद्यार्थियों ने वक्ताओं से सवाल भी पूछे। उत्सव के अतिथियों, सेल की छात्राओं और डॉ नीलम सिंह ने दीप प्रज्ज्वलन कर आयोजन का शुभारंभ किया।वीमेंस डेवलपमेंट सेल की प्रभारी डॉ रचना सिंह ने आभार व्यक्त किया।

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