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Saturday 29 April 2017 12:22:30 AM
लखनऊ। मुनेश्वर पुत्र नन्हें निवासी ग्राम तकरोही तहसील सदर जिला लखनऊ के राजस्व अभिलेखों में बड़ा जाना पहचाना नाम है, भूमिहीन अशिक्षित और दलित जाति से है, जिसे राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी जान गए हैं, जब मुनेश्वर फरियादियों की सुनवाई की ख़बर सुनकर इस बृहस्पतिवार को सवेरे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरकारी आवास कालीदास मार्ग पर अपनी भी चालीस साल की व्यथा-कथा लेकर जनसुनवाई में पहुंचा और अपनी बारी आने पर मुख्यमंत्री को अर्जी देकर न्याय दिलाने की गुहार लगाई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें ध्यान से सुना और कार्रवाई केलिए उसकी अर्जी अपने सचिव को दे दी। मुनेश्वर एवं और भी न जाने कितने ऐसे लोग भू-माफियाओं और जिला प्रशासन के कुछ अधिकारियों तथा कर्मचारियों के भ्रष्ट गठजोड़ से व्यथित हैं, जो न्याय की बड़ी उम्मीदों से योगी आदित्यनाथ के जनता दर्शन में पहुंच रहे हैं, अब देखना होगाकि मुख्यमंत्री जिस ऐक्शन में दिख रहे हैं, मुनेश्वर के मामले पर उसका कितना असर होता है, कितने लोगों को न्याय मिलता है।
दलित मुनेश्वर का मामला बहुत गंभीर है, जिसका सार यह हैकि उसके अनपढ़ होनेका समाज के शिक्षित वर्ग ने कैसे नाजायज फायदा उठाया हुआ है, उसे हर तरह प्रताड़ित और गुमराह किया और लखनऊ के सदर तहसील प्रशासन कुछ शातिर कर्मचारियों अधिकारियों से मिलकर उसके पट्टे की ज़मीन पर कब्जा करके उसमें इतने पेंच फंसा दिए और अवैध कब्जे करा दिए हैंकि चालीस साल हो गए हैं, कोर्ट में अधिकारी तारीख लगा देते हैं और लेखपाल अवैध कब्जेदारों से घूस खाकर केस में उनके मनमाफिक रिपोर्ट लगाते आ रहे हैं। मुनेश्वर भी हार नहीं मानरहा है, चाहे वह साहेब लोगों के दफ्तरों में न्याय की आस में धक्के ही खा रहा है। दलित मुनेश्वर को सन् 1976 में भूमिहीनों को भूमि आवंटन योजना के अंतर्गत लखनऊ के इंदिरानगर क्षेत्र के तकरोही गांव में भूखंड संख्या-98स एवं संख्या-289 दो टुकड़ों में आवंटित किया गया, जिसकी स्वीकृति तत्कालीन परगना अधिकारी ने दिनांक 12.01.1976 को प्रदान की और तत्कालीन लेखपाल विद्याधर ने सन् 1978 में मुनेश्वर को आवंटित भूमि का कब्जा भी दिला दिया।
जैसाकि शुरू में ही बताया जा चुका हैकि मुनेश्वर एक अनपढ़ व्यक्ति है और उसे कोर्ट कचहरी का कोई ज्ञान नहीं है। मुनेश्वर को भूमि का आवंटन किया जारहा है, यह बात भी उसे तत्कालीन लेखपाल से ही पता चली, जिससे यह स्पष्ट हो जाता हैकि यहां तक तो सबकुछ ठीक चला, लेकिन कुछ समय बाद यह भूखंड सोने की चिड़िया बन गया और उसे हड़पने केलिए कुछ स्थानीय माफियाओं, लेखपाल, तहसीलदार और एसडीएम ने वो चक्कर चलाया कि मुनेश्वर से यह भूमि छीनने के पूरे कर्मकांड हो गए और सबके सब इलाके के लेखपाल की भ्रष्ट रिपोर्ट पर अपनी सहमति रिपोर्ट लगाते चले गए, कब्जेवाले कब्जा करते गए। मुनेश्वर जब तकरोही पुलिस चौकी पहुंचा तो दरोगाजी ने उल्टे उसके खिलाफ 107/116 और 117 एवं 151 में कार्रवाई कर दी। एक समय ऐसाभी आया जब मुनेश्वर को लखनऊ के तत्कालीन डीएम ने न्याय दिलाया, लेकिन संबंधित अधिकारियों ने पहले की तरह सबकुछ घुमा दिया। यह अत्याचार कोई मौखिक नहीं है, बल्कि रिकॉर्ड पर बोल रहा है। बड़ा सवाल हैकि सरकार ने जब मुनेश्वर को जमीन दी तो उसके अधिकारियों ने उससे वह जमीन छीनकर भू-माफियाओं के हवाले कर दी?
मुनेश्वर ने सरकार से नहीं कहा थाकि उसे यहीं तकरोही में जमीन दी जाए। जब उसे यह जमीन दी गई थी, तब तो कोई लफड़ा सामने नहीं आया और जब इस जमीन की कीमत बन गई तो सब गिरोह बनाकर इस जमीन पर झपट पड़े हैं। इस अनपढ़ व्यक्ति की कोई सुनवाई नहीं हुई, मौके पर जाकर देखा जा सकता हैकि लखनऊ के कतिपय अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने वहां कितना नंगानाच किया हुआ है और एक असहाय व्यक्ति को उजाड़ देनेकी कितनी संगठित कोशिशें की गई हैं। मुनेश्वर ने उसदिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखकर दी अपनी व्यथा-कथा में उसके साथ अबतक जो होता आ रहा है, सबकुछ कहा है। मुनेश्वर ने मुख्यमंत्री से कहाकि उसे लखनऊ के इंदिरानगर क्षेत्रके तकरोही जंगल में भूमिहीनों को भूमि आवंटन योजना के अंतर्गत तत्कालीन ग्रामप्रधान महबूब अली ने दिनांक 6.01.1976 को टुकड़ों में कृषिभूमि भूखंड संख्या-98स एवं संख्या-289 के आवंटन का प्रस्ताव पारितकर आवंटन केलिए भेजा, जिसकी तत्कालीन परगना अधिकारी ने दिनांक 12.01.1976 को स्वीकृति प्रदत्त की। तत्कालीन लेखपाल भईयालाल ने उसे इस भूमि का आवंटन होने की मौखिक जानकारी दी। यह भूमि उस वक्त उपेक्षित थी। क्षेत्रीय लेखपाल विद्याधर ने इस भूमि का सन् 1978 में उसे कब्जा दे दिया था। कब्जा प्राप्त करने केबाद उसने आवंटित भूमि के चारों तरफ मेहनत-परिश्रम करके मेढ़ चढ़ाई और भूमि पर खेती शुरू कर दी, परंतु अगले तत्कालीन ग्रामप्रधान शत्रुघन ने उससे अचानक कहना शुरूकर दियाकि ये वादग्रस्त जमीन है और उसको आवंटित नहीं है, डिप्टी साहब के आदेश से उसको दूसरी भूमि आवंटित की गई है, जिसका उसको शीघ्र कब्जा दिलाया जाएगा।
मुनेश्वर उस समय ग्राम प्रधान की बात मान गया और उसने ग्रामप्रधान से एवज में दूसरी भूमि के आवंटन केलिए कहा, परंतु ग्रामप्रधान शत्रुघन उसको बराबर भ्रमित करता रहा। मुनेश्वर ने मुख्यमंत्री को बतायाकि ग्रामप्रधान शत्रुघन ने 1984 में उसे बतायाकि उसके पट्टे की भूमि पर डिप्टी साहब के आदेश से हरिजनों के वास्ते दुकानें बनाई जाएंगी और वे हरिजनों को आवंटित की जाएंगी, इन दुकानों में एक दुकान उसको मिलेगी, डिप्टी साहब के आदेशानुसार इस भूमि के एवज में उसको दूसरे स्थान पर दूसरी भूमि आवंटित की जाएगी। मुनेश्वर ने अपनी व्यथा-कथा में लिखाकि ग्रामप्रधान की इस बातपर उसने विश्वास कर लिया, लेकिन गांव में यह बात चल पड़ीकि डिप्टी साहब का ऐसा काई भी आदेश नहीं हुआ है, बल्कि यह ग्रामप्रधान शत्रुघन की ही साजिश है, जिसमें वह रुपया कमाना चाहता है तथा इस आवंटित भूखंड से लाभ कमाना चाहता है। मुनेश्वर ने लिखाकि जैसेही उसको मामले की सही जानकारी हुईतो उसने अधिकारियों को आवेदन पत्र दिया तथा निवेदन कियाकि उसको ग्र्रामप्रधान एवं अन्य लोगों की साजिश से बचाया जाए और न्याय दिलाया जाए, परंतु कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद ग्रामप्रधान ने 1986 में अन्य लोगों से रुपए लेकर उसके भूखंड पर स्वयं खड़े होकर अवैध मकान बनवाने शुरू कर दिए, जिसका वह आजतक बराबर विरोध करता आ रहा है, इसपर उसकी कोई नहीं सुन रहा है।
मुनेश्वर ने लिखा हैकि उसे आवंटित भूमि से सदा के लिए वंचित करने के उद्देश्य से तत्कालीन ग्रामप्रधान ने अवैध कब्जेदारों की तरफ से वर्ष 1987 में उसके आवंटन आदेश को निरस्त करने के उद्देश्य से, उसके विरुद्ध उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम 1951 की धारा-198(4) के अंतर्गत, उसके पक्षमें पारित आवंटन आदेश को निरस्त करने हेतु सरकार की तरफ से मुकद्मा पंजीकृत कराया। मुकद्मा संख्या-93/ सन् 1987-88 के रूपमें पंजीकृत हुआ, जिसमें उसने अपना जवाबदावा प्रस्तुतकर तत्कालीन ग्रामप्रधान के अवैधानिक कृत्यों से न्यायालय को अवगत कराते हुए मियाद के आधारपर वाद को निरस्त करने की आपत्ति प्रस्तुत की। तत्कालीन अपर कलेक्टर प्रशासन ने मामले की सुनवाई कर दिनांक-27.10.1988 को वाद निरस्तकर दिया तथा उत्तरप्रदेश राजस्व परिषद के आदेश दिनांक-28.09.1993 द्वारा पुष्टि भी हो गई। तत्कालीन लेखपाल ने इन तथ्यों को छिपाते हुए अवैध कब्जेदारों के दबाव में लगभग 36 वर्ष बाद उसके पक्ष में आवंटित भूमि का आवंटन निरस्त करने हेतु सरकार की तरफ से दूसरा वाद प्रस्तुत किया और मिलीभगत करके उसके पक्ष में 36 वर्ष पूर्व का आवंटन बिना उसे नोटिस तामिल कराए चुपचाप खंडित करा दिया और आवंटन आदेश दिनांक 05.03.2014 द्वारा निरस्त कर दिया गया।
मुनेश्वर ने व्यथा में लिखा हैकि गांव के भले लोगों से जानकारी मिलने पर उसने इस आदेश के विरुद्ध न्यायालय अपर आयुक्त प्रशासन लखनऊ मंडल के समक्ष निगरानी प्रस्तुत की, जिसे अपर आयुक्त लखनऊ ने निर्णय एवं आदेश दिनांक-07.04.2014 द्वारा स्वीकृत कर आलोच्य आदेश 05.03.2014 को अपास्त करते हुए पत्रावली को इस निर्देश केसाथ प्रेषित कियाकि आदेश में वर्णित तथ्यों का संज्ञान लेते हुए निगरानी का साक्ष्य एवं सुनवाई का समुचित अवसर देनेके उपरांत गुणदोष के आधार पर निस्तारण किया जाए। इन तथ्यों से विदित हैकि सरकारी तंत्र के कुछ लोग अपने अधिकार क्षेत्रका दुरुपयोग करते हुए एक बेसहारा अत्यंत ग़रीब, अनपढ़, भूमिहीन दलित किसान के विरुद्ध बार-बार उसके पक्ष में हुए 36 वर्षीय आवंटन को निरस्तकर उसका उत्पीड़न कररहे हैं। मुनेश्वर न्याय की लड़ाई लड़रहा है, परंतु अवैध कब्जेदारों के अन्याय पर विजय प्राप्त नहींकर पारहा है तथा न्याय केलिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुनेश्वर ने न्याय दिलाने का अनुरोध करते हुए यहभी कहा हैकि उत्तर प्रदेश की जनता ने उनमें विश्वास करके पूरे बहुमत से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पदपर स्थापित किया है, ताकि आप हम जैसे ग़रीब, अनपढ़, भूमिहीन दलित किसानों के साथ न्याय करके कानून का राज स्थापित करेंगे तथा पैसे के दम पर राजस्व अधिकारियों के खेल को सदा केलिए समाप्तकर न्याय का स्वर्ग लाने की उद्घोषणा करेंगे। मुनेश्वर ने लिखाकि उसने इसी उद्देश्य से यह प्रतिवेदन उनके समक्ष प्रस्तुत किया है, इसलिए उसे आवंटित भूमिपर साजिश के दोषी अधिकारियों को दंडित किया जाए, उसकी आवंटित भूमि से अवैध कब्जेदारों को बेदखल करके तत्संबंध में उनके खिलाफ आपराधिक वाद पंजीकृत करने की कार्रवाई की जाए। मुख्यमंत्री ने मुनेश्वर की बात को ध्यान से तो सुना और न्याय दिलाने का भरोसा भी दिया, मगर अभीतक कोई न्याय नहीं मिला है और आजभी यह मामला जस का तस है।