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Monday 25 February 2013 07:19:25 AM
भोपाल। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही अपने नेतृत्व को सफलतम करार देकर अपनी पीठ ठोंक रहे हों, पर असलियत कुछ और भी है। मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की तिजोरियां जमकर धन उगल रही हैं, किसानों की आत्महत्या के आंकड़े हैरानी पैदा करने वाले हैं। नेशनल क्राईम ब्यूरो के आंकड़ों को देखकर सिहरन पैदा होने लगती है। एनसीबी के आंकड़ों पर अगर गौर फरमाएं तो शिव के राज में मध्य प्रदेश में भी हर दिन बलात्कार हो रहा है। मध्य प्रदेश के स्वर्णिम इतिहास का यह काला अध्याय ही कहा जाएगा कि इस तरह के राज पर विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी मौन है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस भी 53 ग्रेड की सीमेंट के मानिंद पानी की बूंदों के पड़ते ही सैट हो चुकी है। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में दहेज दिया जा रहा है, सरकार खुद दहेज के पोषक हैं।
मध्य प्रदेश पुलिस मुख्यालय और एनसीबी के आंकड़ों को अगर देखा जाए तो औसतन हर दिन एक बलात्कार का मामला सामने आ रहा है। इन मामलों का सबसे दुखद पहलू यह है कि इसमें ज्यादातर बलात्कार की शिकार बालाएं नाबालिग ही होती हैं। इसके अलावा सामूहिक बलात्कार के मामलों में भी इजाफा हुआ है। एक अखबार का दावा है कि सागर संभाग में ही 330 मामलों में से 126 मामलों में पीड़िता किशोरी ही थी। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में मध्य प्रदेश एक के बाद एक सीढ़ी चढ़ता जा रहा है। प्रदेश में महिलाओं के साथ हिंसा, बलात्कार, यौन दुराचार, हत्या, लिंग आधारित भेदभाव, भ्रूण हत्या आदि जैसे जघन्य अपराध जमकर हो रहे हैं। सरकारी आंकड़ों को अगर माना जाए तो पिछले तीन सालों में बलात्कार के दस हजार से अधिक मामले सामने आए हैं। वर्ष 2011 में प्रदेश में 3406 बलात्कार के मामलों में पीड़ित की तादाद 1262 है।
शिवराज सिंह चौहान मतदाताओं को लुभाने के लिए भले ही सामूहिक विवाह लाडली लक्ष्मी योजना चला रहे हों, पर यह भी कहा जा रहा है कि वास्तविकता में तो उनकी भानजियां सुरक्षित नहीं हैं। कुछ संगठनों ने तो कन्या दान योजना और लाडली लक्ष्मी योजना को संविधान के खिलाफ ही करार दिया है। कन्यादान योजना के विज्ञापनों में दहेज के लिए सामग्री की खरीद की निविदाएं आमंत्रित हो रही हैं। इस तरह सरकार की पैरवी पर ही दहेज का चलन फिर वापस आ रहा है। हालात देखकर किसी को यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि रामराज का दावा करने वाले शिवराज खुद ही दहेज प्रथा के पोषक हैं।
मध्य प्रदेश में ओला पाला आदि प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित किसानों को कर्ज के बोझ तले दबकर खुदकुशी के रास्ते को चुनना पड़ रहा है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार मध्य प्रदेश में आठ साल में 10 हजार 800 से अधिक किसानों ने खुदकुशी की है। आज मध्य प्रदेश किसानों की खुदकुशी के मामले में देश में चौथे नंबर पर है। आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में वर्ष 2011 में हर दिन औसतन 3 से अधिक किसानों ने मौत को गले लगाया और कई कारणों से कुल 1326 किसानों ने खुदकुशी जैसा कदम उठाया है। वर्ष 2004 से 2011 के 8 साल के बीच 10861 किसानों ने मौत को गले लगाया। वर्ष 2011 में जिन 1326 किसानों ने मौत को गले लगाया उनके कारण अलग-अलग रहे हैं। इस दौरान जिन किसानों ने खुदकुशी की है उनमें 347 ने पारिवारिक कारणों से, 16 ने आर्थिक कारणों से, 326 ने शारीरिक व मानसिक बीमारी के चलते, 120 ने नशे में और 508 ने अन्य कारणों से खुदकुशी की है।