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लखनऊ।बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच घटिया दर्जे का वाक-युद्ध अपने चरम पर है। उत्तर प्रदेश की तेईस करोड़ की आबादी पर समय-समय पर राज करने वाली इन दोनों राजनीतिक पार्टियों के शीर्ष नेताओं ने सत्ता को हथियाने और अपना कब्जा बनाए रखने के लिए जिन हथकंडों का इस्तेमाल किया हुआ है उनसे प्रबुद्ध वर्ग तौबा कर रहा है और आम आदमी घुट-घुट कर जी रहा है। एक पार्टी ने राज्य की जनता के 26 अरब रूपए ठेकेदारों को लुटा दिए और उसकी हर तरह से लूट-खसोट का कोई अंत नही है तो दूसरी पार्टी ने भी कोई कम कमाल नही दिखाए हैं। बसपा जानना चाहती है कि अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के फाउण्डेशन को देने के लिए 43 करोड़ रूपए अमर सिंह के पास कहां से आए? बसपा के सपा नेताओं पर हर प्रकार के और भी कई गंभीर आरोप हैं। सपा के नेता अमर सिंह कह रहे हैं कि वह मुलायम सिंह यादव के हनुमान हैं और मायावती की लंका को जलाकर रख देंगे। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य को बसपा सुप्रीमो मायावती ने सपा नेताओं से गाली-गलौज करने के लिए आगे कर दिया है और अमर सिंह ने भी नई किडनी लगवाकर जो ऊर्जा प्राप्त की है उसे वह बसपा को जलाने और मिटाने में ही लगा रहे हैं। आइए और देखिए कि एक समय देश और राजनीति को दिशा देने वाला उत्तर प्रदेश, भद्र राजनीति और राजनीतिज्ञों से आज कितना पामाल होता जा रहा है।
शिक्षा और राजनीति की नई पीढ़ी के सामने सपा और बसपा के नेता अपनी बदजुबानी से सर-ए-आम जो नंगा नाच कर रहे हैं उससे राज्य की जनता का दुखी होना स्वाभाविक है इसलिए वह फिर से कांग्रेस की ओर लौटती हुई दिख रही है। उसने भाजपा को भी देख लिया है जो जनता को धार्मिक उन्माद में फंसाकर सत्ता हासिल करने के बाद अब टुकड़े-टुकड़े हो रही है, उसने बसपा को भी देख लिया है जो पूर्ण बहुमत पाकर उसकी अकड़ मे अपने कुकर्मों को कितनी बेशर्मी से सामाजिक न्याय और आर्थिक विकास का नाम दे रही है और किस प्रकार से उसके नेताओं ने उत्तर प्रदेश के कील-कांटे को बेचकर खा लिया है। परिणाम सामने हैं-पहले बसपा ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा के चुनाव में मुंह की खाई और अब उत्तर प्रदेश की तर्ज पर हरियाणा और महाराष्ट्र में विकास का नारा देने वाली बसपा की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के एजेंडों की इन राज्यों ने भी हवा निकाल दी है। सर्वोच्च न्यायालय में भी उनका समय पहले की तरह अनुकूल नही दिख रहा है। मायावती इस समय जनता के सामने नही आ रही हैं, शायद उन्हें लग रहा है कि जो सवाल उनका पीछा कर रहे हैं उनके माकूल जवाब उनके पास है ही नहीं और यदि वे उत्तर देने की हिम्मत भी करें तो उन्हें उसमे भी फंस जाने का डर है, यानि फिर एक और मुकद्मा शुरू। मायावती इस समय प्रेस के सामने भी नही आ रही हैं। जाहिर है कि राजनीतिक स्थितियां उनके अनुकूल नही हैं इसलिए उन्होंने अपनी ओर से सीधे जवाब देने के बजाय बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य को आगे करके बयान-बाजी शुरू की है। बसपा के बयान आग में घी का काम कर रहे हैं। उसके आरोप उसे और ज्यादा विपत्तियों में डाल रहे हैं। मायावती, अमर सिंह और इनकी पार्टियों के नेताओं के बयान गौर करने लायक हैं-
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य केंद्रीय कोयला राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के बसपा के स्मारकों, संग्रहालयों, मूर्तियों और पार्कों के बारे में बयान के पीछे पड़ गए हैं और उन्होंने सीधे नेहरू परिवार और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी निशाने पर ले लिया है। स्वामी प्रसाद मौर्य कह रहे हैं कि कांग्रेसी सरकारों ने राजघाट पर अरबों रूपये की जमीन पर समाधि, स्मारक बनाने की जगह विश्वविद्यालय स्थापित किये होते तो बच्चों को उच्च शिक्षा के ज्यादा अवसर मिलते। और सुनिए! 'नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों के नाम पर पूरे देश में अरबों रूपये की सैकडों एकड़ जमीन पर समाधि, स्मारक बनाये गये हैं और लम्बे समय तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं को बाबा साहेब डा अम्बेडकर एवं मान्यवर श्री कांशीराम की याद क्यों नहीं आई कांग्रेस मात्र नेहरू परिवार की गाथाओं को गाने व परिवारवाद को बढावा देने में जुटी रही, उसे देश की गरीब जनता से कोई लेना-देना नहीं रहा।' स्वामी प्रसाद मौर्य की वो हैसियत नही है कि वह इन नेताओं के बारे में प्रश्न खड़े करें। वे यह भी भूल गए हैं कि इसी विधानसभा चुनाव में वह किस प्रकार से धूल चाटे हैं और यह भी भूल गए कि उनकी चारण-भक्ति उनका मंत्री पद भी न बचा पाई और बसपा के प्रदेश अध्यक्ष बना दिए गए। यह सबको पता है कि वहां ऐसे प्रदेश अध्यक्षों की क्या हैसियत है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी के नेता बहुजन समाज में समय-समय पर जन्में संतों, गुरूओं और महापुरूषों की स्मृति में स्थापित किये गये स्मारकों, संग्रहालयों, मूर्तियों और पार्को को लेकर अनर्गल बयानवाजी करते रहते हैं और श्रीप्रकाश जायसवाल की टिप्पणी इस का नवीनतम उदाहरण है। उन्होंने कहा कि दलित विरोधी जातिवादी मानसिकता में जकड़ी कांग्रेस पार्टी के नेताओं को जब प्रदेश की बीएसपी सरकार की आलोचना करने का कोई मौका नहीं मिलता तो उसके लोग लखनऊ में बहुजन नायकों के सम्मान में बनाये गये स्मारकों को लेकर जनता को गुमराह करने की कोशिश करने लगते हैं।
मौर्य का कहना है कि बहुजन समाज के दोनों महापुरूषों के नाम पर बने स्मारक वर्षो से उपेक्षित रहे, दलितों, पिछड़ों और अन्य दबे कुचले वर्ग के लोगों के लिए न केवल सम्मान और स्वाभिमान की जिन्दगी बसर के प्रतीक हैं बल्कि इन स्मारकों में इन वर्गो के लोग अपने सुनहरे भविष्य का प्रतिबिम्ब भी देखते हैं। ऐसे लोग और पार्टियां ही इन स्मारकों का विरोध कर रही हैं जिनकी इस देश के दलितों और पिछड़ों के प्रति जातिवादी मानसिकता अभी तक नही बदली है। मौर्य ने कहा कि बीएसपी की सरकार ने संतो गुरूओं और महापुरूषों के सम्मान में न केवल स्मारक आदि बनवाये हैं, बल्कि उत्तर प्रदेश को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए इन महापुरूषों के नाम पर अनेक विकास योजनाएं और कार्यक्रम भी संचालित किये जा रहे हैं। अम्बेडकर और कांशीराम की स्मृतियों को चिर स्थाई बनाने के लिए विभिन्न जिलों में स्थापित कराये जा रहे इंजीनियरिंग कालेजों, मेडिकल कालेजों, पॉलिटेक्निक नजर नहीं आ रहे हैं? उन्होंने कहा कि बीएसपी और उसकी सरकार सर्वसमाज के हितों को ध्यान मे रखकर काम कर रही है और इस बारे में श्रीप्रकाश जायसवाल को बसपा को कोई नसीहत देने की जरूरत नहीं है। मौर्य ने कहा कि 'आजादी मिलने के बाद केन्द्र और ज्यादातर राज्यों मे सबसे लम्बे समय तक सत्ता मे रही कांग्रेस पार्टी ने नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों के नाम पर पूरे देश में अरबों रूपये की सैकडों एकड़ जमीन पर समाधि, स्मारक आदि बनवाए, तब कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं को बाबा साहेब डा अम्बेडकर तथा मान्यवर श्री कांशीराम की याद नहीं आई, अगर कांग्रेस पार्टी ने इस दिशा में कुछ भी किया होता तो फिर शायद बीएसपी की प्रदेश सरकार को ऐसा करने की जरूरत नहीं होती, असलियत तो यह है कि जब 09 अक्टूबर सन् 2006 को मान्यवर कांशीराम जी का निधन हुआ था तो उस समय केन्द्र में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने उनके सम्मान में एक दिन का भी राष्ट्रीय शोक घोषित नहीं किया था।' मौर्य ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की तुलना में बीएसपी सरकार का प्रतिमाओं और पार्कों आदि पर किया गया व्यय तो कुछ भी नहीं है, देश केवल नेहरू-गांधी परिवार की ही जागीर है, तीन मूर्ति भवन से लेकर राजघाट की करोड़ों की जमीन और सम्पत्तियों पर सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार का कब्जा है।
स्वामी प्रसाद मौर्य का दूसरा हमला सपा के महासचिव अमर सिंह पर हुआ जिन्होंने उनके और अमिताभ बच्चन के खिलाफ कानपुर में एफआईआर दर्ज कराने पर सपा मुख्यालय पर एक संवाददाता सम्मेलन में मुख्यमंत्री मायावती की धज्जियां उड़ा दीं। उन्होंने मायावती से इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि वह माफी भी मांगें क्योंकि उसी की सरकार के अधिकारी एफआईआर मामले में कन्नी काट रहे हैं। अमर सिंह ने आक्रामक शैली में मायावती पर उनके और अमिताभ बच्चन के खिलाफ घिनौनी साजिशें रचने के एक के बाद एक आरोपों की झड़ी लगा दी और ऐलानिया अंदाज में धमकी दी कि 'मायावती एक 'लंकनी' हैं और वह उसकी लंका को राख बना देंगे।' इस पर मायावती ने स्वामी प्रसाद मौर्य के कंधे पर बंदूक रखकर अमर सिंह को निशाना बनाया है। मौर्य ने एक बयान जारी करके कहा है कि अमर सिंह दलाल संस्कृति में माहिर हैं और उनके आरोप अनर्गल, झूठ और हताशा से प्रेरित हैं। बीएसपी आम कार्यकर्ताओं के छोटे-छोटे आर्थिक सहयोग से चलने वाली इकलौती पार्टी है, अमर सिंह राजनीति को कारोबार की तरह चलाते हैं और दलाली से अरबों रूपए उगाह कर समाजवाद का नारा बुलंद करते हैं, कपटपूर्ण तरीके से फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने में अमर सिंह का कोई मुकाबला नहीं है। वे राजनीतिक ड्रामेबाजी और नौटंकी में माहिर हैं। उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। मौर्य ने आरोपों की घोर निन्दा करते हुए कहा कि जो जैसा होता है, वह दूसरों को भी उसी तरह समझता है। यह बात अमर सिंह के बारे में पूरी तरह से सच साबित होती है। वैसे तो बीएसपी दलाल संस्कृति को बढ़ावा देने वाले लोगों को कोई तवज्जो नहीं देती, लेकिन मीडिया के माध्यम से बसपा पर लगाये गये आरोपों का जवाब देना जरूरी समझती हैं।
मौर्य ने कहा कि अमर सिंह एक दलाल, भ्रष्टाचारी, बेइमान, झूठे, फरेबी एवं धोखेबाज हैं, इसलिए वह सभी के बारे में यह सोचते हैं कि दूसरे लोग भी केवल झूठ, फरेब और दलाली के सहारे ही जी रहे हैं। जनता अच्छी तरह जानती है कि बीएसपी धन्नासेठों और पूंजीपतियों की धन-दौलत के बलबूते नहीं बल्कि अपने आम कार्यकर्ताओं के छोटे-छोटे आर्थिक सहयोग से अपना काम चलाती है। आम लोगों से पार्टी के लिए पैसे एकत्र करने की यह परम्परा बीएसपी ने परमपूज्य बाबा साहेब डा अम्बेडकर से सीखी है, क्योंकि बाबा साहेब डा अम्बेडकर का सम्पूर्ण मानवतावादी मूवमेन्ट आम लोगों से प्राप्त चन्दे के बल पर ही चलता था। सभी जानते हैं कि राजनीति मे आने से पहले अमर सिंह एक निजी कम्पनी में मामूली से मुलाजिम थे, लेकिन अपनी तिकड़म और जोड-तोड़ की बदौलत कुछ ही समय में उन्होंने अकूत धन-सम्पत्ति अर्जित कर ली। आज उनकी हैसियत यह है कि अमर सिंह अमेरिका के क्लिंटन फाउन्डेशन को 43 करोड़ रूपये दान कर देते है और उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती। उन्होंने कहा कि वे जिस तरह हेराफेरी की घटिया राजनीति करते है, उसके बारे में किसी को कुछ बताने की जरूरत नहीं है। वे स्वयं भी अपने को दलाल स्वीकार करते हैं और इसमें उन्हें कोई शर्म महसूस होने के बजाय गर्व होता है। उन्होंने कहा कि अमर सिंह ने अपने कैरियर की शुरूआत एक पेशेवर दलाल के तौर पर की थी इसलिए उनके लिए यह समझना मुश्किल है कि कोई पार्टी अपने साधारण कार्यकर्ताओं और समर्थकों के छोटे-छोटे आर्थिक सहयोग की बदौलत राष्ट्रीय स्तर पर कैसे खड़ी हो सकती है।
मौर्य ने कहा कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कारोबारी अमर सिंह को मीडिया के जरिये लोगों को यह भी बताना चाहिए था कि लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में उन्होंने 50 वर्गगज क्षेत्रफल के छोटे भूखण्ड का आवंटन स्वीकार करके किसी गरीब का हक क्यों मारा? वे तो अपनी दौलत के बलबूते पर अपनी हैसियत के मुताबिक बड़ा भूखण्ड कही भी ले सकते थे। उनको यह भी बताना चाहिए कि पूर्ववर्ती सपा सरकार के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश विकास परिषद ने वास्तव में प्रदेश का कितना विकास किया है? उन्हें यह भी खुलासा करना चाहिए कि उन्होंने अपने कितने चहेतों को क्या-क्या लाभ दिलाया और इन सब के लिए उन्होंने दलाली के जरिये कितनी कमाई की? जहां तक कथित सीडी मीडिया में दिखाये जाने की बात है, तो सभी यह जानते हैं कि कपटपूर्ण तरीके से फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने में अमर सिंह कितने माहिर हैं। इसके बहुत से नमूने मीडिया और जनता के सामने पिछले कुछ सालों में समय-समय पर सामने आते रहे हैं। साथ ही सभी को यह भी मालूम है कि वह राजनीतिक ड्रामेबाजी और नौटंकी के कितने बड़े उस्ताद हैं। अमर सिंह के बयान देखकर और सुनकर किसी को भी महसूस हो सकता है कि इनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और इनका किसी अच्छे मनोचिकित्सक की देख-रेख में इलाज होना चाहिए। सच तो यह है कि अमर सिंह जैसे लोग दया के पात्र हैं और इसलिए मैं अपनी पार्टी की ओर से शीघ्र ही इनके मानसिक स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूं।
मौर्य ने कहा कि अमर सिंह को अपने काले-कारनामों की सीडी जरूर सार्वजनिक करनी चाहिए, जिसे केन्द्र में उनकी पार्टी के सहयोगी रहे दल की सरकार ने तैयार कराया था और जिसे सार्वजनिक होने से रोकने के लिए उन्होंने पूरी ताकत झोंक रखी है। सीडी जनता के सामने आते ही उनका घिनौना चेहरा पूरी तरह बेनकाब हो जाएगा और अगर कहीं इसकी जांच करा दी जाए तो उन्हें लेने के देने भी पड़ सकते हैं। यदि उनमें नैतिक साहस हो, तो वे पूरी पारदर्शिता के साथ अपनी सीडी को खुद ही सार्वजनिक कर दें, जिससे लोगों को यह मालूम हो सके कि इस तरह के लोगों के चाल और चरित्र क्या है? नोएडा के भूखण्डों के आंवटन में उनके इशारे पर किस प्रकार घोटाला किया गया था, यह जग जाहिर हो चुका है। अमर सिंह को अपने देश के लोगों से ज्यादा विदेशियों से लगाव है। एक ओर वे करोड़ों रूपये एक विदेशी संस्था को दान कर देते हैं, वहीं दूसरी ओर अपनी बीमारी का इलाज देश में कराने के बजाय सिंगापुर में कराते हैं।
किसी अपराध के बारे में साक्ष्य उपलब्ध होने पर कोई भी थाने में नियमानुसार एफआईआर दर्ज कर सकता है। कम्पनी घोटाले को लेकर पिछले दिनों कानपुर में लगभग 500 करोड़ रूपये के घोटाले की, जो एफआईआर उनके विरूद्ध दर्ज करायी गयी थी, उसका प्रदेश सरकार से कोई लेना देना नहीं है। जनता अच्छी तरह जानती है कि बीएसपी सरकार के शासन में कानून को अपने हाथ में लेने वाले किसी भी अपराधी को बख्शा नहीं जाता है, चाहे वह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो। जनता अभी तक यह नहीं भूली है कि कैसे पूर्ववर्ती सपा सरकार के कार्यकाल में अपराधी, दबंग और माफिया सरकारी संरक्षण में कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते थे। कैसे थैली शाहों और पूंजीपतियों के दलाल की तरह राजनीति करने वाले सपा नेता ने उप्र विकास परिषद की आड़ में अपने धन्नासेठ दोस्तों को करोड़ों रूपये का फायदा पहुंचाया था और प्रदेश के किसानों की बेशकीमती जमीन कौडि़यों के दाम पर इन धन्नासेठों को मुहैया कराई थी जिसके एवज में सपा नेता ने कमीशन, शुक्राने और नजराने के नाम पर मोटी रकम वसूली थी।
अमर सिंह और नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव ने राज्यपाल बीएल जोशी को एक ज्ञापन देकर उनके विरूद्ध मुख्यमंत्री मायावती के निर्देश पर दर्ज मुकदमों की जॉच केंद्रीय एजेंसी से कराने और इन साजिशों में शामिल लोगों के विरूद्ध उचित कार्रवाई की मांग की। अमर सिंह के साथ राजभवन गए प्रतिनिधि मण्डल में वीरेंद्र भाटिया सदस्य राज्यसभा, अहमद हसन नेता प्रतिपक्ष विधान परिषद, पूर्व मंत्री वकार अहमद शाह, अरविंद सिंह गोप, रघुराज प्रताप सिंह, सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी और विधायक अक्षय प्रताप सिंह शामिल थे। अमर सिंह ने राज्यपाल को मुख्यमंत्री मायावती की कार्यवाहियों के बारे में प्रमाण स्वरूप एक डीवीडी भी भेंट की। उन्होने ज्ञापन में आरोप लगाया है कि उनके विरूद्ध कानपुर के बाबूपुरवा थाने में दर्ज रिपोर्ट की साजिश में मुख्यमंत्री के अलावा आईएएस अधिकारी नवनीत सहगल, राज्य के मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, बसपा के राज्य सभा सदस्य अखिलेश दास, एडीजीपी कानून व्यवस्था बृजलाल, नीरा रावत और शिवाकांत त्रिपाठी शामिल है। उनके विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज करने वाले थानाध्यक्ष बाबूपुरवा दिनेश त्रिपाठी और एफआईआर लिखाने वाले शिवाकांत त्रिपाठी इनके सम्पर्क में हैं। इस बात के प्रमाण भी अमर सिंह ने राज्यपाल को दिए हैं। राज्यपाल से मिलने के बाद अमर सिंह ने सपा मुख्यालय पर संवाददाता सम्मेलन आयोजित करके अपने खिलाफ साजिशों का व्योरेवार उल्लेख किया। इस मौके पर एक सीडी का भी प्रदर्शन किया गया जिसमें मायावती सांसदों, विधायकों से उनकी निधियों में से कमीशन देने को कह रही हैं और अधिकारियों एवं मंत्रियों के मोबाइल और टेलीफोन नंबरों के विवरण जारी किए गए जिनका संबंध कानपुर की एफआईआर की साजिश से बताया जाता है। इस मामले में एक बात तो सबकी समझ में आ रही है कि बसपा नेता मायावती सपा नेताओं के खिलाफ साजिशें रचने में कोई कसर नही छोड़ रही हैं ये अलग बात है कि मायावती, उनके मंत्रियों और कुछ शीर्ष अधिकारियों की सपा या कांग्रेस नेताओं के खिलाफ रची जा रहीं साजिशों का भंडाफोड़ भी हो रहा है जिसमें बसपा और मायावती को बदनामियों के अलावा कुछ भी हासिल नही हो रहा है।