विशेष संवाददाता
लखनऊ।उत्तर प्रदेश में कड़े राजनीतिक संघर्ष और अपनी ही रणनीतियों के असली सच का आज सामना कर रहे हैं, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव। वे कहां खड़े हैं? यह अधिकांश को तो मालूम है लेकिन उन्हें नहीं पता कि वे अपनों के ही बिछाए हुए जाल मे उलझे हुए हैं और दूसरों पर तोहमतें लगा रहे हैं, क्योंकि वे ठहरे जो राजनीति के कुशल खिलाड़ी। मुलायम सिंह यादव धरती-पुत्र के नाम से विख्यात हैं लेकिन आज उनकी ख्याति और खिताब दोनों ही ख़तरे मे हैं। उनके सारथी अमर सिंह ने उन्हें ऐसे रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है कि अब मुलायम सिंह यादव केवल सफाई ही देते रहेंगे। उनके मुख्यमंत्रित्व में उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती में बहुचर्चित मुकदमेबाजी, अमर सिंह-अमिताभ बच्चन के खिलाफ धोखा-धड़ी समेत कई मुकदमे यूपी में दर्ज होना, सपरिवार आय से अधिक संपत्ति के मामलों में कोर्ट-कचहरी, मुलायम सिंह यादव-अमर सिंह की टेलीफोन वार्ता की टेपिंग। और भी ऐसे बहुत से मामले हैं जो मुलायम सिंह यादव को अब सीना तान कर चलने नहीं दे रहे हैं। उनकी प्रशासनिक विफलताओं, राजनीतिक लापरवाहियों और बेआबरू होकर उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर हो जाने से भी उन्होंने सबक नही लिया। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में मुलायम सिंह यादव फिर अकेले खड़े हैं और उनके साथियों को अपने नेता के राजनीतिक भविष्य को लेकर घोर आशंकाएं और चिंताएं घेर रही हैं।
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के लिए केवल यह सौभाग्य की बात बची हुई है कि उनकी प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंदी और बसपा की अध्यक्ष मायावती अपने ही विवादास्पद और भ्रष्ट कर्मो से उनका राजनीतिक पथ आसान किए रहती हैं। नहीं तो कहने वाले कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव के लिए यूपी की राजनीति में इस तरह और आगे खड़े रहना मुश्किल हो जाता। ऐसे बहुत से सवाल हैं जो हमेशा से मुलायम सिंह यादव का पीछा करते आ रह हैं जिनका सही उत्तर वे कभी नहीं देते। मुलायम सिंह यादव अक्सर मीडिया से यह आशा करते हैं कि वह उनके या सपा के या उनके अमर सिंह के बारे में खबरें उनके हिसाब से छापे। याद कीजिए कि जितनी बार भी मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री हुए हैं उन्होंने हर बार अपने सत्तारोहण के बाद मीडिया से यही कहा है कि 'पहले छह महीने हम आपसे मोहलत चाहते हैं इस बीच आप हमारा पूरा सहयोग करें उसके बाद हम मीडिया के सभी सवालों का जवाब देगें।' मुलायम सरकार के छह महीने बीते। इन छह महीनों में ही जब सरकार में शामिल नेताओं, अफसरों और कार्यकर्ताओं की दमघोटू कारगुज़ारियां जनता के सामने आने लगीं और मीडिया के धैर्य का बांध भी टूटने लगा तो मुलायम सिंह यादव कहते हैं कि मीडिया उन्हें सहयोग नहीं कर रहा है।
प्रश्न है तो क्या मीडिया उस वक्त सपा के कार्यकर्ताओं और सरकार की अमर सिंह शैली से आंखे मूंद ले? मुलायम सिंह यादव की पिछली सरकार के खिलाफ जनता कितनी नाराज़ थी? जनता पूरी तरह से खिलाफ हो गई थी, जिस प्रकार आज वह मायावती के खिलाफ हो चुकी है और जिसकी मायावती ने लोकसभा में कीमत भी चुकाई है। सभी जानते हैं कि उपचुनाव के ज्यादातर परिणाम सरकार के पक्ष में ही जाते हैं इसलिए उसकी मायावती की उपलब्धियों के साथ गणना करने का कोई मतलब नहीं है, यूपी में असली मुकाबला तो 2012 के आम चुनाव में ही होगा। अतीत में जाकर फिर मुलायम सरकार के पन्ने पलटिए तो उस समय कहा जाया करता था कि 'जिस गाड़ी पे सपा का झंडा उस गाड़ी में बैठा गुंडा' मुलायम सिंह यादव के मुह लगे कौड़ी के नेता एक साथ कई सरकारी गनर लेकर ठेकेदारी करते और वसूली करते घूम रहे थे। वह नारा ऐसा हिट हुआ कि जिसने मुलायम सिंह यादव को विधानसभा चुनाव में उनकी राजनीतिक हैसियत बता दी। यही नहीं, मतदाताओं ने उनकी असहनीय राजनीतिक दुश्मन मायावती को सत्ता सौप दी और मुलायम सिंह यादव को तिलमिलाता छोड़ दिया। उस वक्त मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह, मीडिया के सवालों पर अकड़ते और भड़कते थे। उनको जनता में तब उनकी सरकार का भारी विरोध और नाराजगी नजर नहीं आई क्योंकि तब वे सत्ता में थे और सत्ता में बैठे व्यक्ति को न आलोचना सुहाती है और न सुझाव अच्छे लगते हैं। उस समय चाणक्य भी अप्रासंगिक हो जाते हैं।
उत्तर प्रदेश में राज्य सलाहकार परिषद के गठन और उसकी कार्यप्रणाली को किसने नहीं देखा? किस प्रकार इस परिषद के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के समानांतर राज्य में अपना शासन स्थापित करने वाले अमर सिंह ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा में खुल्लम-खुल्ला काउंटर खोला हुआ था यह किसने नहीं सुना और देखा? अकेले उद्योगपति अनिल अंबानी को साथ लेकर और कुछ अन्य उद्योगपतियों की लखनऊ में नुमाईश लगवाकर पूंजी-निवेश का किस प्रकार और कितना ढिंढोरा पीटा गया किसे नहीं मालूम? अनिल अंबानी के दादरी पावर प्रोजेक्ट को छोड़ दें तो बाकी कौन से उद्योग मुलायम सिंह यादव सरकार के समय में यूपी में आए? दादरी पावर प्रोजेक्ट भी अब झगड़े में चला गया है।
और लीजिए! उत्तर प्रदेश में किसानो की दुर्घटना बीमा योजना के नाम पर राज्य के करोड़ों रूपए किस प्रकार निजी क्षेत्र के आईसीआईसीआई बैंक को दिए गए और कितने किसानों को आईसीआईसीआई बैंक ने किसान दुर्घटना बीमा योजना में बीमे का लाभ दिया जरा बताएं मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह? कौन सी छवि है अमर सिंह की जो मुलायम सिंह यादव उन्हें बार-बार देश का नेता और बहुत ऊंचे संपर्कों वाला बताया करते हैं? अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से अमर सिंह के संपर्कों का उत्तर प्रदेश को क्या लाभ मिला? यही कि वे लखनऊ आए और उन्हें अमर सिंह एण्ड कंपनी ने तैतालीस करोड़ रूपए उनके ट्रस्ट को दान किए इससे कितने भारतीय गरीबों और मजलूमों को फायदा हुआ? अक्सर प्रश्न के साथ उत्तर भी आता है कि एक दलाल का काम और क्या होता है? वह किसी को फसाता और किसी को लुटाता है। इसी से तो उसकी दुकान चलती है और भारत में ही नहीं बल्कि दुनियां में हर जगह ऐसे बहुत से दलाल होते हैं यानि अमर सिंह से ईमानदार और शक्तिशाली सत्ता के दलाल बहुत हैं यह अलग बात है कि अमर सिंह की मुठ्ठी में ऐसा क्या बंद है कि उन्होंने एक राजनीतिक परिवार को अपनी उंगली पर नचा रखा है जिसमे अमर सिंह रात कहें तो रात है और दिन कहें तो दिन।
अमर सिंह, मुलायम सिंह यादव के लिए अंधों में काने सरदार माने जाते हैं। मुलायम सिंह यादव क्या नहीं जानते कि अमर सिंह के कारण समाजवादी पार्टी के न जाने कितने जनाधार वाले नेता सपा से अलग हो गए। जो कुछ हैं भी वे जाएं तो कहां जाएं-जैसे जनेश्वर मिश्र इत्यादि। अलग हुए वो नेता हैं जिनके जन प्रभाव के सामने अमर सिंह जैसे कहीं नहीं टिकते। यही नहीं अमर सिंह ने अकेले उद्योगपति अनिल अंबानी को मुलायम सिंह यादव से जोड़कर साबित करने की कोशिश की कि देश और दुनिया का सारा उद्योग जगत मुलायम सिंह यादव के चरणों में आ गया है।
मगर सच तो यह है कि अनिल अंबानी और अमर सिंह के कारण्ा देश के कई प्रमुख उद्योगपति मुलायम सिंह यादव और यूपी से भी अलग हो गए। जिससे राज्य में औद्योगिक विस्तार न केवल रूक गया बल्कि झगड़े मे पड़ गया। तीन दशक पहले की औद्योगिक प्रगति पर नज़र डाली जाए तो यह तथ्य सामने आएगा कि इन दो दशक में उत्तर प्रदेश में ऐसा कोई औद्योगिक विस्तार नहीं हुआ जिससे राज्य के विकास को गति मिली हो। यहां के राजनेताओं और नौकरशाही के एक नापाक गठजोड़ ने उत्तर प्रदेश को तबाह कर दिया है। अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव को यह मालूम है कि उन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए विकास का नहीं बल्कि धर्मांधता में डूबी और डरी हुई जनता को और डराकर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा किया है।
उद्योगपति कोई भी हो वह अपने अनुकूल वातावरण चाहता है। उसकी न किसी राजनीतिक दल या राजनेता से दोस्ती है और न दुश्मनी। वह अपने संसाधनों में राजनीतिक दलों को भी खुश करता है विकास भी करता है और अपना मुनाफा भी कमाता है। कोर्ट कचहरी और कमीशन-खोरी के झगड़े मे अपने को नहीं घसीटना चाहता। वह चाहता है कि जो भी सरकार हो वह उसके लिए सुरक्षित परिक्षेत्र उपलब्ध कराए बाकी काम उसे करने दे। अमर सिंह ने उद्योगपतियों में ही खेमेबाजी करने की कोशिश की जिससे जो कुछ उद्योगपति यूपी के बारे में सोच भी रहे थे सो वह भी भाग गए और अकेले उद्योगपति अनिल अंबानी ही अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव के साथ दिखाई पड़ रहे हैं। अनिल अंबानी भी तब तक साथ हैं जब तक यूपी में मुलायम सिंह यादव का एक राजनीतिक भ्रम बना हुआ है।
केंद्र में इस समय कांग्रेस नीति यूपीए की सरकार है जिसमे मुलायम सिंह यादव की कोई नहीं चल रही है। अनिल अंबानी भी सोच रहे हैं कि यदि मुलायम सिंह यादव की केंद्र में नहीं चलती है और उत्तर प्रदेश में भी हालात उलटे रहते हैं तो वह भी केंद्र सरकार से ज्यादा समय तक टकराव की स्थिति में नहीं खड़े रह सकते। इसलिए उन्होंने मौके की नज़ाकत और राजनीतिक प्रतीक्षा करके अपने बड़े भाई मुकेश अंबानी से सभी विवादों को खत्म करने की पहल कर दी है। यह इस बात का संकेत है कि देर सवेर अनिल अंबानी अपने अग्रज बंधु अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव को प्रणाम करके चलने वाले हैं।
जिन लोगों ने मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की सार्वजनिक करने पर सुप्रीम कोर्ट से प्रतिबंधित टेलीफोन वार्ता सुनी हुई है वह सब जानते हैं कि यदि यह वार्ता सार्वजनिक हो जाए तो देश की राजनीति में अमर सिंह का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन मुलायम सिंह यादव का देश की राजनीति में खड़े होना और आरोपों का जवाब देना मुश्किल पड़ जाएगा। इस टेलीफोन टेपिंग में किस प्रकार की इन दोनों के बीच विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार की बातें हुई हैं और अनिल अंबानी किसी से किस प्रकार और किस अंदाज से कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश्ा में अमर सिंह के बिना कुछ भी संभव नहीं है, यह इस बात का प्रबल प्रमाण है कि अनिल अंबानी की भी नज़र में मुलायम सिंह यादव की नहीं बल्कि अमर सिंह की ही हैसियत है। यानि वह एक प्रकार से मुलायम सिंह यादव को नहीं जानते। ऐसा ही भारतीय सिनेमा जगत के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन का मामला है। वह भी अमर सिंह के भाई हैं और दोनों दोबदन एक जान हैं। यहां भी मुलायम सिंह यादव की गिनती तीसरे नंबर पर होती है भले ही सार्वजनिक रूप से अमिताभ बच्चन, मुलायम सिंह यादव के सामने कितने ही आत्मिक भाव से प्रकट होते हों।
अमिताभ बच्चन को भी अमर सिंह ने बाराबंकी की ग्राम समाज की जमीन में ऐश्वर्या के स्कूल का शिलान्यास कराकर गंभीर विवादो में फंसा दिया। अमिताभ बच्चन को इससे पहले अमर सिंह ने बाराबंकी का किसान बना दिया था। अमिताभ को इसमे कितनी फज़ीहत का सामना करना पड़ा यह किसी से छिपा नहीं है। अब उन्हें उत्तर प्रदेश सलाहकार परिषद का सदस्य होने की सजा मिल रही है जिसमे कि अमर सिंह के साथ उनके विरूद्ध भी धोखाधड़ी सहित कई मुकदमे कायम किए गए हैं। अमिताभ ने सलाहकार परिषद के सदस्य के रूप में क्या गोलमाल किया है यह तो जांच से ही पता चलेगा और यह भी सही हो सकता है कि अमिताभ बच्चन ने स्वयं नियम कानून से बाहर जाकर लाभ लेने की कोशिश नहीं की हो लेकिन उनके भाई और घर के मामलों के मुख्य प्रवक्ता अमर सिंह के खेल को कौन नहीं जानता? इसलिए कोई बड़ा ही मामला पकड़ में आया है जिसलिए मायावती सरकार ने इन पर हाथ डालने की हिम्मत कर दिखाई है। यह अलग बात है कि इस मामले में भी मायावती की सरकार के सलाहकारों ने जिस अंदाज में मामले को उछाला उससे अमर सिंह एंड कंपनी को कोई नुकसान नही हुआ बल्कि मायावती सरकार की ही फज़ीहत हुई।
मुलायम सिंह यादव निश्चित रूप से जमीन के नेता माने जाते हैं लेकिन उन्हें भी मायावती की तरह हमेशा जनता के बजाए हथियार बंद सुरक्षा कमांडों के बीच रहने और चलने का शौक है। इस सुरक्षा घेरे में रहकर उन्होंने क्या खोया और क्या पाया यह भी सबके सामने है। उनके मुख्य सुरक्षा अधिकारी और खास निजी स्टाफ ने मुलायम सिंह यादव को बर्बाद करने की बाकी कसर पूरी कर रखी है। इसके चलते बहुत से सम्मानित और महत्वपूर्ण लोग मुलायम सिंह यादव के यहां सबके सामने अपमानित होते देखे जा सकते हैं। उनके इर्द-गिर्द यह सिंडीकेट अपना शासन चलाता है और मुलायम सिंह यादव को गुमराह किए रहता है। सुरक्षा के नाम पर उनके सुरक्षाधिकारी ने वहां जिस प्रकार का वातावरण विकसित किया हुआ है उसके भी मुलायम सिंह यादव के लाभ की सच्चाईयां उसी प्रकार सामने आ जाएंगी जिस प्रकार आज अमर सिंह के लाभ की सच्चाईयां सामने आने लगी हैं। मुलायम सिंह यादव के सामने ही कई बार ऐसे अवसर जब उनके सुरक्षाधिकारी ने उनके शुभचिंतकों और नेताओं को भी सुरक्षा के नाम पर बेईज्जत किया और कराया। जहां तक निजी स्टाफ का सवाल है तो वह और भी आगे दिखाई देता है।
मुलायम सिंह यादव ने अमर सिंह और अमिताभ बच्चन के विरूद्ध कानपुर में एफआईआर के मामले में पिछले दिनों मायावती सरकार पर हल्ला बोला और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हस्तक्षेप की गुहार भी लगाई लेकिन विश्लेषकों का यह कहना भी सही ही लगता है कि मुलायम सिंह यादव उस समय कहां थे जब विकास परिषद के नाम पर अमर सिंह की दुकान चल रही थी। भ्रष्टाचार के आरोप मुलायम सिंह यादव सरकार पर कायम ही है चाहे वह भ्रष्टाचार इनमें से किसी ने भी किया हो। खुद मुलायम सिंह यादव ने ही उस एफआईआर को ज्यादा ही महत्वपूर्ण और दूसरों की दिलचस्पी का विषय बना दिया है। यही कारण है कि उसका केंद्रीय प्रवर्तन निदेशालय तक ने संज्ञान लिया। मुख्यमंत्री मायावती स्वयं भी चारों ओर से भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरी हुई हैं। उनका स्वयं का घर भी शीशे का है इसलिए वे अब दूसरों के घरों पर क्या पत्थर चला पाएंगी लेकिन यह सवाल मुलायम सिंह यादव से उत्तर मांग रहा है कि उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल को कितना साफ-सुथरा पूरा किया और वे क्यों और कैसे विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर हो गए? इसका आरोप क्या वे जनता पर लगाएंगे कि उसने साजिश रची या चुनाव आयोग पर लगाएंगे जिसने सभी के लिए सख्ती बरती या अपने अमर सिंह सरीखे सलाहकारों और उनके आगे-पीछे रहने वाले उन कुछ खास लोगों को जिम्मेदार ठहराएंगे, जिन्होंने यूपी में अपने कुकर्मो से ऐसे हालात पैदा किए कि जनता त्रस्त होकर समाजवादी पार्टी सरकार के खिलाफ खड़ी हो गई, ठीक वैसे, जैसे कि आज जनता उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के कारनामों से परेशान होकर उसके खिलाफ खड़ी हो गई है और वक्त आने पर वह अपना काम करेगी।
मुलायम सिंह यादव को मायावती और भाजपा का आभारी होना चाहिए जिनके कृत्यों से इस दौर में उन्हें राज्य और देश की सत्ता का सुख मिलता आ रहा है यदि उत्तर प्रदेश में कोई सशक्त और थोड़ा भी ईमानदारी से चलने वाला राजनीतिक नेतृत्व होता तो मुलायम सिंह यादव भी अमर सिंह जैसों के कारण कभी के उत्तर प्रदेश की राजनीति से गायब हो गए होते। लोकसभा चुनाव में उन्होंने कल्याण सिंह के पिछड़े वोटों का खूफ फायदा उठाया और मतलब निकलने के बाद उनसे किनारा कर लिया। मुलायम सिंह समझते हैं कि शायद इससे मुसलमानों के मन में उनके लिए और जगह बन जाएगी। उनका यह आकलन उनके आत्मविश्वास को जरूर ऊंचा करता हो लेकिन जनसामान्य में इसकी प्रतिक्रिया उनके पक्ष में दिखाई नही देती। उन्हें फिर से रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह से क्यों हाथ मिलाना पड़ा? तब भी फिरोज़ाबाद के उपचुनाव में अपनी पुत्रवधू को नहीं जिता पाए। राज्य के विकास के मुलायम सिंह यादव और मायावती के झांसे में अब आगे कोई नहीं आने वाला है और ना ही स्वच्छ प्रशासन देने के इनके वादे पर काई यकीन करने वाला है। प्रतिक्रियावादी भाषणों, गाली-गलौच, भेद भाव और एक दूसरे पर हमले, देश के या पूर्वजों के महापुरूषों के ख़िलाफ अपने-अपने समर्थको कोभड़का कर चुनाव लड़ना और किसी भी तरह सरकार में आना ही इनका असली एजेंडा और जरूरत बन चुकी है। जहां तक मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक भविष्य का सवाल है तो यह तथ्य भी सबके सामने है कि जो राजनेता एक समय भारत के प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदारों में सबसे ऊपर था आज उसे केवल अमर सिंह जैसों और अपनो के कारण अपने ही राज्य की और अपने ही क्षेत्र की राजनीतिक जमीन पर ऐसी पराजय का सामना करना पड़ा है जिसको विजय में बदलना अब आसान नहीं माना जा रहा है।