दिनेश शर्मा
नई दिल्ली।छियासी साल के राजनेता नारायण दत्त तिवारी का स्टिंग ऑपरेशन करा कर किसी ने उनसे खूब बदला लिया है। यह मामला एक बड़े 'राजनीतिक गेम' के आगे-पीछे चल रहा है, जिसकी भूमिका में उस कथित महिला के पीछे कोई भी खड़ा हो सकता है, इसीलिए शुरू से कहा जा रहा है कि नारायण दत्त तिवारी एक सुनियोजित साजिश के शिकार हो गए हैं। इस मामले में किसी महिला की संलिप्ता के साथ ही हो न हो 'नेता नगरी' का भी पूरा हाथ हो जिसे नारायण दत्त तिवारी अब तक अपने राजनीतिक कौशल से किसी न किसी रूप में बड़ी चुनौती देते आए हैं। उनकी चुनौती समाप्त करने के लिए यह ही सबसे अच्छा तरीका निकाला गया जिसमें सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। नारायण दत्त तिवारी भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर हमेशा से एक चर्चित राजनेता हैं जिन्हें सत्ता और राजनीति में हर वक्त एक गंभीर चुनौती माना गया है, उसे प्रभावहीन करने के लिए उन्हें किसी न किसी तरह से उलझाया जाता रहा है। आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में जीवन का शायद आखिरी राजयोग भोग रहे इस राजनेता को जिन स्थितियों में असमय इस पद से इस्तीफा देना पड़ा उससे देश की अन्य मशहूर हस्तियों के भी निजी जीवन से जुड़े अनेक प्रश्न और उनकी कहानियां चर्चाओं में आ गईं। नारायण दत्त तिवारी के साथ हुई इस होनी का विश्लेषण कई तरह से और कई घटनाओं के संदर्भ के साथ किया जा रहा है।
यह घटनाक्रम चाहे जितना सनसनीखेज क्यों न हो लेकिन इससे निकले खतरनाक सवाल न जाने कितने ऐसे ही राजनेताओं का पीछा करने लगे हैं जो अपने निजी जीवन को लेकर भारी चर्चा और गंभीर विवादों से घिरे रहे हैं और जिनके निजी जीवन से जुड़ी घटनाओं को तो आज देश की एकता अखंडता और राष्ट्रीय सुरक्षा पर संकट से जोड़कर भी देखा जाता है। क्षमा कीजिएगा! चाहे वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हों या देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू या मोहम्मद अली जिन्ना या भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर के उन जैसे या उनसे भी बड़े कोई और कद्दावर नेता। कहना न होगा कि इनमें कई राजनेता यदि आज जिंदा होते तो शायद उन्हें भी नारायण दत्त तिवारी से बद्तर दिन देखना होता। मीडिया में हाल ही में एक रिपोर्ट आई है कि पाकिस्तान के कायदे-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना भी कोई कम इश्क-फरमा नहीं थे, वे भी अपनी उम्र से तेईस साल कम अंतर वाली दार्जलिंग की षोडशी पर फिदा थे।
राजनेताओं, नौकरशाहों और अन्य मशहूर हस्तियों के नैसर्गिक प्रेम और अनेक युवतियों से रोमांस की बुलंदियों के तमाम किस्से ही किस्से हैं। लेकिन जहां तक आंध्र प्रदेश के राजभवन में राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी की किसी युवती से शारीरिक अंतरंगता की कथित फिल्म उतार कर सेक्स स्कैंडल का स्टिंग ऑपरेशन कर उसे सार्वजनिक करने का सवाल है तो लगता है कि यह मामला एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है जिसमें औरों के साथ-साथ तेलगू चैनल एबीएन आंध्र ज्योति ने भी किसी बड़े विश्वास को भेद कर इसमें पत्रकारिता का कोई पद्मभूषण पुरस्कार लेने की कोशिश की है। इसे सनसनीखेज़ ख़बर बनाकर समाचार चैनल ने तो अपनी टीआरपी बढ़ा ली लेकिन खुद को एक जिम्मेदार मीडिया हाउस कहलाने पर हमेशा के लिए एक संशय उत्पन्न कर दिया है। ध्यान रहे कि इसी समाचार चैनल ने संबंधित महिला से वह वीडियो लेकर प्रसारित किया है जिसमें एक उम्र दराज़ व्यक्ति बेहोशी जैसी या सोई हुई सी अवस्था में दो-तीन महिलाओं के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दिखाई देता है। समाचार चैनल का कहना है कि यह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि, तिवारी ही हैं।
नारायण दत्त तिवारी ने आंध्र के राजभवन में वास्तव में अपने पद की गरिमा के खिलाफ वह चर्चित कृत्य किया है कि नहीं यह तो सरकारी जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन जो असली बात सामने आ रही है उसमें सबसे पहला सवाल, राजभवन के सुरक्षा प्रशासन से जवाब मांगता है कि कोई मुलाकाती राजभवन के उस शयनकक्ष तक कैसे पहुंच गया या पहुंच गई जहां आंध्र प्रदेश के महामहिम राज्यपाल सोते हैं? अगर यह वीडियो सही भी है तो यह राजभवन और राज्यपाल की सुरक्षा में एक खतरनाक घुसपैठ हुई थी जिसका जवाब राजभवन प्रशासन को देना ही होगा। यह मामला अकेले राज्यपाल के किसी युवती के साथ अंतरंग होने का ही नहीं है बल्कि यहां राजभवन की सुरक्षा और महामहिम की सुरक्षा दोनो खतरे में डाली गई है। आंध्र प्रदेश में तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर एक आंदोलन चल रहा है जिसकी मांग मनवाने के लिए आंध्र के राज्यपाल को बंधक भी बनाया जा सकता था। यह घटना उसका रिहर्सल भी तो हो सकती है इसलिए यह यकीन करना आसान नहीं है कि छियासी साल के नारायण दत्त तिवारी इतने लापरवाह होंगे कि वे एक नहीं बल्कि तीन-तीन से रोमांस करते पाए जाएं। निश्िचत रूप से यह एक गहरी साजिश का मामला लगता है।
नारायण दत्त तिवारी देश के ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने अपने जीवन में जो राजयोग भोगा है वह उनके दौर के विरलों ने ही भोगा होगा। कहना ना होगा कि यदि देश में 1991 के लोकसभा चुनाव में नारायण दत्त तिवारी नैनीताल से लोकसभा चुनाव जीत गए होते तो वह ही तब भारत के प्रधानमंत्री होते। उनके लोकसभा चुनाव हारते ही आंध्र प्रदेश के राजनेता पीवी नरसिंह राव का राजयोग चमक उठा और वह प्रधानमंत्री हो गए। बाद की राजनीतिक स्थितियां ऐसे पलटीं कि तिवारी को नरसिंह राव की कुटिल राजनीति के सामने कांग्रेस छोड़नी पड़ी और 'तिवारी कांग्रेस' बनाकर नारायण दत्त तिवारी को कुछ समय तक कांग्रेस के बाहर रहना पड़ा। राजनीतिक स्थितियां बदलीं और तिवारी की कांग्रेस में वापसी हुई। तब से वे राजनीति की मुख्य धारा में चलते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हुए और उसके बाद आंध्र प्रदेश के राज्यपाल। इस पद पर रहते हुए एक अनपेक्षित घटना के शिकार बन गए जिसमें उन्हें आंध्र प्रदेश के राज्यपाल का पद छोड़ना पड़ा है। देश के राजनीतिक क्षेत्रों में इस घटना की या नारायण दत्त तिवारी की महिलाओं में आसक्ति की उतनी चर्चा नहीं है, जितनी इस बात की है कि आंध्र के राजभवन में नारायण दत्त तिवारी के साथ जो और जैसा हुआ है क्या वास्तव में वह सही है? तेलंगाना की आग में जलते हुए आंध्र प्रदेश में नारायण दत्त तिवारी क्या किसी और सत्ता संघर्ष की ओर बढ़ रहे थे? निश्िचत रूप से यह किसी का एक सुविचारित कृत्य था जो किसी योजना को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश करता दिखाई देता है और जिसमें किसी को इस्तेमाल करते हुए तेलगू चैनल ने भी अपनी भूमिका निभाई।
इस घटना के कुछ समय पहले भी देश के पूर्व रक्षा राज्य मंत्री प्रोफेसर शेरसिंह की बेटी उज्जवला शर्मा ने भी एक ऐसा ही एक तांडव किया था जिसमें उज्जवला शर्मा नही, बल्कि उनके पुत्र रोहित शेखर केंद्रीय भूमिका में रहे। उज्जवला शर्मा ने अपने पुत्र रोहित शेखर को उनके नारायण दत्त तिवारी के साथ संसर्ग से पैदा हुई संतान कह कर दावा किया हुआ है कि शेखर ही नारायण दत्त तिवारी का पुत्र है और उज्जवला शर्मा कहती हैं कि इस नाते वह तिवारी का वारिस है लिहाजा उनकी जो भी संपत्ति है उसका मालिक भी रोहित शेखर ही है। बहुत लोग जानते हैं कि उज्जवला शर्मा, नारायण दत्त तिवारी के यहां आया जाया करती थीं लेकिन इस संतान के पैदा होने के पैंतीस साल बाद उज्जवला शर्मा को अपना यह अधिकार याद आया और उसे पाने के लिए उन्होंने अपने पुत्र को दिल्ली उच्च न्यायालय भेज दिया। यह लड़ाई अभी बंद नहीं हुई है लेकिन यह भी सब जानते हैं कि उज्जवला शर्मा ने कुपित होकर नारायण दत्त तिवारी को कोई भी नुकसान पहुंचाने के लिए उनका हरदम और आंध्र प्रदेश के राजभवन तक पीछा किया है। इस घटनाक्रम के तुरंत बाद भी उनके पुत्र रोहित शेखर ने अपने पुराने दावे की एक और याचिका फिर से दाखिल कर दी है। जो व्यक्ति पहले से ही किसी विवाद का सामना कर रहा हो, वह अपने लिए ऐसा ही कोई नया विवाद शायद ही खड़ा करना चाहेगा। तिवारी इस विवाद में काफी परेशान रहे हैं। यह नया मामला आगे कहां तक जाता है इसमें अब शायद ही किसी की दिलचस्पी बची हो क्योंकि तिवारी राज्यपाल के पद से इस्तीफा दे चुके हैं लेकिन यह प्रश्न ख़ासतौर से मीडिया से जवाब मांग रहा है कि पत्रकारिता के लिए इस प्रकार के स्टिंग ऑपरेशन कितने जरूरी हैं और ऐसे मामलों में उसकी भूमिका कैसी होनी चाहिए जिनमें सच्चाई कम और साजिश की भावना ज्यादा पाई जाती हो।
देखा जाए तो देश के कई राजनेताओं की लोकप्रियता के खिलाफ अक्सर साजिशें रची जाती रही हैं। दिग्गज कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह और नारायण दत्त तिवारी भी उन्हीं राजनेताओं में हैं जिन्हें सत्ता के शीर्ष संघर्ष और राजनीति की मुख्य धारा से अलग-थलग रखने के लिए उनके प्रतिद्वंद्वियों ने क्या-क्या करम नहीं किए। अतीत में जाएं तो ये दोनो राजनेता एक बार नहीं बल्कि कई बार देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी के दावेदार माने गए हैं। मीडिया के लोग और उस समय के राजनेता याद करें- भारतीय दूरदर्शन पर नारायण दत्त तिवारी का साक्षात्कार लेते हुए वरिष्ठ पत्रकार एमजे अकबर ने अपना आखिरी सवाल किया था कि 'क्या वे देश के प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं?' इस प्रश्न से पूरी तरह से असहज हुए नारायण दत्त तिवारी ने कहा था कि 'मै ऐसा कभी सोच भी नहीं सकता हूं।' यह प्रश्न उनसे तब किया गया था जब बोफोर्स मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी राजनीतिक परेशानियों से घिरे हुए थे। एक समय इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी के अनन्य 'भक्तों' में गिने जाने वाले नारायण दत्त तिवारी अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में कभी भी इस परिवार से अलग सोचते हुए नहीं देखे गए, लेकिन उनकी राजनीतिक सफलताओं ने हमेशा उन्हें कांग्रेस के भीतर विवादास्पद एवं संदिग्ध बनाए रखा। टीवी पर साक्षात्कार में पत्रकार एमजे अकबर का नारायण दत्त तिवारी से वह सवाल भी उसी रणनीति का हिस्सा माना गया था इसलिए वह सवाल उनसे जानबूझ कर कराया गया था। नारायण दत्त तिवारी के राजनीतिक प्रभाव को कम करने के लिए एक नहीं बल्कि अनेक उदाहरण हैं जो इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि उनके खिलाफ राजनीतिक साजिशों की इंतिहा का इतिहास है।
ऐसा ही इतिहास कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार अर्जुन सिंह के पीछे भी खड़ा है जो एक समय तो कांग्रेस के ऐसे नेताओं में गिने जाते थे कि जिनकी मौजूदगी के बगैर कांग्रेस कार्य समिति की बैठक के फैसले टल जाते थे। अर्जुन सिंह ने मध्य प्रदेश की राजनीति में अपना सिक्का चलाया है और मुख्यमंत्री के रूप में काफी सफल रहे हैं, लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वियों ने एक ही साजिश में अर्जुन सिंह का रथ रोक दिया और वह साजिश थी मध्य प्रदेश की चुरहट लाटरी। यह लाटरी अर्जुन सिंह के राजनीतिक जीवन का जंजाल बन गई। जब भी अर्जुन सिंह प्रभावशाली स्थिति में आए तो तभी चुरहट लाटरी की फाइल खुलकर सामने आ गई। अर्जुन सिंह उससे कभी मुक्त नहीं हो पाए। अर्जुन सिंह ने अपनी राजनीतिक रणनीतियों से कांग्रेस और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के राजनीतिक संकटो को काफी हद तक दूर किया है। पंजाब के राज्यपाल के रूप में उन्होंने पंजाब समस्या पर राजीव गांधी-हरचंद सिंह लौंगोवाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ ऐतिहासिक समझौता कराया। यह समझौता पंजाब की समस्या को खत्म करने के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। इस समझौते की सफलता के शिखर तक पहुंचते ही अर्जुन सिंह से पंजाब के राज्यपाल पद से इस्तीफा ले लिया गया। कुछ समय अलग-थलग रखने के बाद उन्हें कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया तो वहां भी यही खेल हुआ। जैसे ही अर्जुन सिंह की लोकप्रियता बढ़ी वैसे ही अर्जुन सिंह को इस पद से भी हटा दिया गया। उसके बाद अर्जुन सिंह हमेशा के लिए कांग्रेस की फुटबाल बन गए और आज अर्जुन सिंह कांग्रेस के राष्ट्रीय परिदृश्य से न केवल गायब हो गए हैं अपितु कांग्रेसी लोग उनसे बात करते हुए भी डरते हैं कि कहीं अर्जुन सिंह से बात करने पर या उनसे मिलने पर कांग्रेस में या सत्ता में उनके नंबर न कम हो जाएं। इसलिए कहा जा रहा है कि यदि कोई कांग्रेसी नेता भी नारायण दत्त तिवारी के खिलाफ इस साजिश में शामिल हों तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। जहां तक तिवारी की महिलाओं में आसक्ति का प्रश्न है तो उन पर यह कोई नया आरोप नहीं है और इस प्रकार के मामलों में और भी बड़े राजनेताओं की संलिप्ता के हज़ारों किस्से किताबों में रहस्योद्घाटन करते हुए लिखे गए हैं या उद्घाटित किए गए हैं जिनमे देश के जन मानस के आदर्श दिग्गज और सम्मानित माने जाने वाले भद्र जन शामिल हैं।
नारायण दत्त तिवारी के खिलाफ राजनीतिक साजिश का एक और किस्सा बड़ा प्रासंगिक है। उनके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रित्व काल में एक बार लखनऊ में भीषण बाढ़ आई। उसमें एक भैंस बाढ़ के पानी में तैरती हुई मकान की छत पर पहुंच गई। बाढ़ का पानी उतरने पर वह छत पर ही खड़ी रह गई। नारायण दत्त तिवारी के विरूद्ध उन दिनों कई राजनीतिक गुट सत्ता हासिल करने के लिए सक्रिय थे। मकान की छत पर भैंस खड़ी पाकर इन गुटों के हाथ तिवारी से निपटने का यह अच्छा अवसर आया। आरोप लगा कि तिवारी ने बाढ़ से निपटने के सही प्रबंध नही कराए। राजीव गांधी जब लखनऊ की बाढ़ का निरीक्षण करने आए तो उन्हें ख़ासतौर से बाढ़ में मकान की छत पर पहुंची भैंस दिखाकर लखनऊ में बाढ़ की भयावहता समझाई गई और उस भैंस को तिवारी की कुर्सी के खिलाफ सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया। कहते हैं कि यह भैंस तिवारी के विरोधियों के लिए वरदान साबित हुई और राजीव गांधी ने दिल्ली पहुंचकर नारायण दत्त तिवारी को इस्तीफा देने का आदेश सुना दिया जिसके बाद पूर्वांचल के ठाकुर नेता वीर बहादुर सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। वीर बहादुर सिंह, कांग्रेस की उत्तर प्रदेश की राजनीति में नारायण दत्त तिवारी के बड़े विरोधियों में माने जाते थे। यह घटना इस बात का भी संकेत देती है कि न केवल नारायण दत्त तिवारी को स्वतंत्रता से राजकाज करने का कभी मौका नहीं दिया गया बल्कि उनके खिलाफ साजिशें भी रची गईं।
राजनीतिक साजिशों के लिए मीडिया को अक्सर ढाल बनाया जाता रहा है। बिंदेश्वरी दूबे बिहार के मुख्यमंत्री थे। उनके दो शक्तिशाली विरोधी गुटों के प्रभावी होने के कारण नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठ रही थी लेकिन कांग्रेस आला कमान इस पर सहमत नहीं था। दूबे सरकार की सालगिरह पर एक भोज आयोजित किया गया था, जिसमें सरकार के मंत्रियों और कांग्रेसी नेताओं के साथ-साथ पत्रकार और फोटोग्राफर भी बुलाए गए थे। बिंदेश्वरी दूबे को चिकन का बहुत शौक था। तल्लीनता से मुर्गे की टांग खाते हुए फोटोग्राफर ने उनका चित्र खींच लिया। चित्र में दूबे को मुर्गे की टांग दांतों में दबाकर दोनों हाथों से खींचते हुए दिखाया गया था। यह चित्र एक अखबार में प्रकाशित हुआ। दूबे विरोधियों के हाथ एक मौका आ गया। कहते हैं कि उस समय बिहार में बाढ़ जैसी कोई समस्या थी और कांग्रेस के दूबे विरोधी गुट के दूबे हटाओ अभियान का कांग्रेस हाईकमान पर कोई असर नहीं हो पा रहा था लेकिन चिकन खाते हुए बिंदेश्वरी दूबे के फोटो ने उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली। चिकन खाना क्या मुख्यमंत्री के लिए मना है? लेकिन एक फोटो का इस्तेमाल करते हुए यह स्थापित कर दिया गया कि राज्य में एक समस्या चल रही है और बिंदेश्वरी दूबे चिकन खाने में मस्त्ा हैं। राजनेताओं के जीवन में ऐसी घटनाएं भी बड़ा उलट-फेर करती आईं हैं, इसलिए राजनेताओं के खिलाफ साजिशे रची जाना कोई नई बात नहीं है। नारायण दत्त तिवारी भी ऐसी ही प्रकृति की साजिश का शिकार बने। देश के राजनीतिक इतिहास में राजभवन और उच्च संवैधानिक पद पर आसीन किसी व्यक्ति के ऐसे वीडियो पर सभी भौंचक हैं, लेकिन राजभवन ने स्टिंग के वीडियो को असत्य और तोड़-मरोड़ से पूर्ण बताया है। चूंकि हाईकोर्ट ने वीडियो के प्रसारण पर रोक लगा दी है इसलिए केंद्र सरकार की ओर से इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया देने का मामला ही समाप्त हो गया मगर देखना है कि यह मामला तिवारी के बचे-खुचे जीवन में और क्या गुल खिलाता है।
महिलाओं के प्रति आसक्ति या मुर्गे की टांग खाना भी दिग्गजों की कुर्सियों के लिए खतरा बनते आए हैं। अपनी संतुष्टी, ब्लैकमेल या किसी अन्य लाभ की आशा में राजनीतिक साजिशें रचने वालों के कारण न केवल समाज और देश संकट में खड़ा दिखाई देता है अपितु एक नहीं बल्कि कई हस्तियों और राजनेताओं का राजनीतिक जीवन समाप्त हो जाता है। जैन हवाला कांड में भी ऐसा ही हुआ था जिसमें देश के कई महत्वपूर्ण राजनेताओं को मात्र एक डायरी में अपना नाम लिखे होने से अपने पदों से इस्तीफे देने पड़े थे और एक समय बाद लगभग सभी को सीबीआई से क्लीन चिट भी मिल गई लेकिन तब तक देश की राजनीति की अग्रिम पंक्ति का भारी नुकसान हो चुका था। देखा जाए तो ऐसी साजिशें समाज, देश या शासन व्यवस्था पर किसी बाहरी हमले से कम नहीं मानी जा सकतीं।