उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि भारतीय दर्शन के उत्कृष्ट विचारों को आमजन तक पहुंचाने के लिए देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण के साथ ही जागरुकता और ज्ञान साझा करने के लिए व्यापक स्तरपर अभियान चलाने की आवश्यकता है। उन्होंने शेयर और केयर को भारतीय दर्शन का मूल बताते हुए एक ऐसे समाज के निर्माण की आवश्यकता...
मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही ब्रहमाजी ने सृष्टि की रचना की थी और सतयुग का आरंभ भी चैत्र प्रतिपदा को हुआ था। चैत्र प्रतिपदा को ही भगवान राम और धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था, इसलिए इस तिथि को अत्यंत शुभ माना गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संस्थापक डॉ केशवराव बलिरामराव हेडगेवार और भगवान झूलेलाल का...
गीता जयंती-कर्तव्य दिवस पर 'श्रीमद्भागवत गीता और व्यवस्था परिवर्तन' विषय पर विश्व संवाद केंद्र में कर्तव्य फाउंडेशन की ओर से आयोजित संगोष्ठी में मुख्यवक्ता विद्यांत हिंदू पीजी कालेज के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ विजय कर्ण ने कहा है कि समता और कर्म के सिद्धांतों की स्थापना करना गीता और स्वामी विवेकानंद का उद्देश्य...
मोटे तौर पर संसार में दो घटक हैं। एक मैं और दूसरा संसार। ईश्वर प्रत्यक्ष नहीं है। तर्क से सिद्ध करना असंभव। प्रतितर्क भी कमजोर नहीं है। ईश्वर की खोज के सारे उपकरण संसारी हैं। योग, ध्यान, ज्ञान, भक्ति, उपासना आदि कर्मो का क्षेत्र यह संसार ही है। मूलभूत प्रश्न यह है कि विश्व जनसंख्या का अधिकांश भाग ईश्वर के प्रति आस्थालु या जिज्ञासु क्यों हैं? सीधा उत्तर है कि मनुष्य आनंद का प्यासा है और...
सृष्टि अनंत रहस्यमयी है। ऋग्वेद के ऋषियों से लेकर आधुनिक वैज्ञानिक तक सृष्टि रहस्यों की खोज में संलग्न हैं। स्टीफेन हाकिंस विरल आधुनिक भौतिक विज्ञानी हैं। वे शत प्रतिशत विकलांग हैं, बोल नहीं पाते, चल नहीं पाते तो भी सृष्टि रहस्यों पर उनका श्रम और प्रयास अनूठा है। उनके वैज्ञानिक अब तक के निष्कर्ष ऋग्वेद के सूक्तों से...
हे, जगदीश्वर! ऐसे श्रेष्ठकुलीन राजा के रूप में आपका स्मरण करते ही रामराज्य की कल्पना होने लगती है कि काश! आज भी ऐसा होता। आखिर कैसा रहा होगा आपका शासन-‘ना कोऊ दरिद्र ना लच्छन हीना।’ लेकिन प्रभु आपके प्रतिपादित संस्कारों और आदर्शों की आज अर्थी निकाली जा रही है। आपकी प्रजा भयभीत है। धर्म, व्यापार बन गया है और कर्म, कुकर्म...
विरल ब्रह्मांड विज्ञानी हैं। सृष्टि रहस्यों की खोज में उन जैसे तमाम वैज्ञानिक संलग्न हैं। बीसवीं सदी में विज्ञान पंख लगाकर उड़ा है। इक्कीसवीं सदी के डेढ़ दशक के भीतर ही वैज्ञानिक ईश्वरीय कण-गाड पार्टिकल तक उड़े हैं। विवेकानंद के व्याख्यानों का समय अलबर्ट आईंस्टीन के विशेष सापेक्षता सिद्धांत (1905) के पहले (1893-1897) का है। अद्वैत आश्रम से प्रकाशित विवेकानंद साहित्य (खंड 5 पृष्ठ 22-23) में स्वामी...
मनुष्य की अपनी उपलब्धि है। वह परंपरा में जीता है और परंपरा का विकास भी करता है। भारत हजारों वर्ष प्राचीन राष्ट्र है, इसलिए हिंदू परंपरा का प्रसाद विराट है। यह सहज उपलब्ध है, लेकिन सबको नहीं मिलता। इसे अर्जित करना पड़ता है। यों परंपरा प्रसाद मुफ्त का माल है, तो भी इसे पाने के लिए कुछ न कुछ जतन तो करने ही होते हैं। पहला प्रयास है-प्रसाद पाने की इच्छा। गहरी इच्छा कर्म में ठेलती है, तब इसके...