स्वतंत्र आवाज़
word map

रेलवे सुरक्षा बल का 'नन्हे फरिश्ते' मिशन

आरपीएफ को स्टेशनों, ट्रेनों में ख़तरे में पड़े मिलते हैं बच्चे

रेलवे सुरक्षा बल ने ख़तरे में पड़े 84119 बच्चों को बचाया

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 17 July 2024 05:53:53 PM

railway protection force nanhe farishte mission (file photo)

नई दिल्ली। रेलवे सुरक्षा बल 'नन्हे फरिश्ते' नामक ऑपरेशन में पिछले सात वर्ष में अग्रणी रहा है। रेलवे सुरक्षा बल का यह एक मिशन है जो विभिन्न भारतीय रेलवे जोनों में पाए जाने वाले पीड़ित बच्चों को बचाने केलिए समर्पित है। पिछले सात वर्ष के दौरान आरपीएफ ने रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में ख़तरे में पड़े या ख़तरे में पड़ने से 84119 बच्चों को बचाया है। 'नन्हे फरिश्ते' सिर्फ एक ऑपरेशन से कहीं अधिक है, यह उन हज़ारों बच्चों केलिए एक जीवन रेखा माना जाता है, जो खुद को अनिश्चित परिस्थितियों में पाते हैं। वर्ष 2018 से 2024 तक का डेटा, अटूट समर्पण, अनुकूलनशीलता और संघर्ष क्षमता की कहानी दर्शाता है। प्रत्येक बचाव समाज के सबसे असुरक्षित सदस्यों की सुरक्षा केलिए आरपीएफ की प्रतिबद्धता का एक अनुकरणीय प्रमाण है।
'ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते' की वर्ष 2018 में महत्वपूर्ण शुरुआत हुई। इस वर्ष आरपीएफ ने कुल 17,112 पीड़ित बच्चों को बचाया, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं। बचाए गए 17,112 बच्चों मेंसे 13,187 बच्चों की पहचान भागे हुए बच्चों के रूपमें की गई, 2105 लापता पाए गए, 1091 बच्चे बिछड़े हुए, 400 बच्चे निराश्रित, 87 अपहृत, 78 मानसिक रूपसे विक्षिप्त और 131 बेघर बच्चे पाए गए। वर्ष 2018 में इस तरह की पहल की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हुए ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते केलिए एक मजबूत नींव रखी गई। वर्ष 2019 के दौरान आरपीएफ के प्रयास लगातार सफल रहे और लड़कों और लड़कियों दोनों सहित कुल 15,932 बच्चों को बचाया गया। बचाए गए 15,932 बच्चों मेंसे 12,708 भागे हुए, 1454 लापता, 1036 बिछड़े हुए, 350 निराश्रित, 56 अपहृत, 123 मानसिक रूप से विक्षिप्त और 171 बेघर बच्चों के रूपमें पहचाने गए।
कोविड महामारी के कारण वर्ष 2020 आरपीएफ केलिए बहुत चुनौतीपूर्ण था, जिसने सामान्य जीवन को बाधित किया और रेल परिचालन पर काफी बुरा प्रभाव डाला। इन चुनौतियों के बावजूद आरपीएफ 5011 बच्चों को बचाने में कामयाब रही। वर्ष 2021 के दौरान आरपीएफ ने अपने बचाव कार्यों में पुनरुत्थान देखा, जिससे 11907 बच्चों को बचाया गया। इस वर्ष पाए गए और संरक्षित किएगए बच्चों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिसमें 9601 बच्चों की पहचान भागे हुए के रूपमें, 961 लापता के रूपमें, 648 बिछड़े हुए, 370 निराश्रित, 78 अपहृत, 82 मानसिक रूपसे विकलांग और 123 बेघर बच्चों के रूपमें पहचाने गए। वर्ष 2023 के दौरान आरपीएफ 11794 बच्चों को बचाने में सफल रही। इनमें से 8916 बच्चे घर से भागे हुए थे, 986 लापता, 1055 बिछड़े हुए, 236 निराश्रित, 156 अपहृत, 112 मानसिक रूपसे विकलांग और 237 बेघर बच्चे थे। आरपीएफ ने इन असुरक्षित बच्चों की सुरक्षा और उनकी अच्छी देखभाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इस साल यानी 2024 के पहले पांच महीने में आरपीएफ ने 4607 बच्चों को बचाया है। इनमे घर से भागे हुए 3430 बच्चों को बचाया गया है, शुरुआती रुझान ऑपरेशन 'नन्हे फरिश्ते' केप्रति निरंतर प्रतिबद्धता का प्रमाण देते हैं। ये संख्या बच्चों के भागने की लगातार जारी समस्या तथा उन्हें अपने माता पिता के पास सुरक्षित पहुंचने केलिए आरपीएफ के किए गए प्रयासों दोनों को दर्शाती हैं। आरपीएफ ने अपने प्रयासों से न केवल बच्चों को बचाया है, बल्कि घर से भागे हुए और लापता बच्चों की दुर्दशा के बारेमें जागरुकता भी बढ़ाई है, जिसमें आगे की कार्रवाई और विभिन्न हितधारकों से समर्थन मिला। आरपीएफ का ऑपरेशन का दायरा लगातार बढ़ रहा है। आरपीएफ रोज नई चुनौतियों का सामना कर भारत के विशाल रेलवे नेटवर्क में बच्चों केलिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने का प्रयास कर रहा है। ट्रैक चाइल्ड पोर्टल पर बच्चों की पूरी जानकारी उपलब्ध रहती है। देश के 135 से अधिक रेलवे स्टेशनों पर चाइल्ड हेल्पडेस्क उपलब्ध है। आरपीएफ मुक्त कराए गए बच्चों को जिला बाल कल्याण समिति को सौंपती है और जिला बाल कल्याण समिति बच्चों को उनके माता-पिता को सौंप देती है।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]